“जिम्मेदारी या बोझ”
शब्दों का मायाजाल है संसार, जिससे बनती है जीत हार, धागे यह मोह के ना...
शब्दों का मायाजाल है संसार, जिससे बनती है जीत हार, धागे यह मोह के ना...
तुम दिन व दिन बड़े होते गए मेरे अंदर फैलती गई जड़े तुम्हारी खिला दिए...
हुई ऐसी तलब तुम्हारी, की धड़कनें थमने सी लगी… कभी घबराई, कभी बेचैनी बढ़ने लगी…...
यह दस दिन पलक झपकते ही बीत जाता, ऐसा नहीं था की बच्चे साल के...
(आए दिन भगदड़ की घटनाएं होती रहती हैं, हम इस तरह की घटनाओं से इस...
प्रकृति में कितनी विविधताएं हैं और प्रकृति से जुड़े त्यौहार कि भारत में। चमकीले रंग-...
यह जो महफ़िल सजी है, लगी है भीड़… खुशी में ठहाके लगाने वालों की बस्ती...
रिश्ते- नाते, परंपरा, मर्यादा, सामाजिक दायरे…. के सारे गिरह खोलकर, तोड़कर… मैंने तुमसे गांठ लगाया।...
वह वह दिन भी आ गया जब दोनों को मुंबई वापस जाना था तन्मय आज...
मेरे महबूब की महबूबा सुनो, सोचती हूं मैं, तुम कैसी दिखती होगी? जिन आंखों में...