करोड़ों की रानी के जिंदा दफन होने की दास्ताँ!
आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रहा हूं। एक ऐसी कहानी जिसमें एक राजा है। और एक रानी है। दोनों की जिंदगी हर लिहाज से खूबसूरत है। किसी को भी उनसे रश्क हो सकता है। लेकिन… एक दिन अचानक ऐसा हुआ जिसके बारे में सोचकर भी दिल बैठ सा जाता है। पूछेंगे नहीं ऐसा क्या हुआ था? हम जानते हैं आप बेकरार होंगे। तो चलिए चलते हैं तीस साल पुराने रची गई एक ऐसी दुनिया में जिसमें बसती थी रानी की जान।
दोस्तों…
ये कहानी है रूप और धन की मलिका शकीरा खलीली की। पूछिए कौन शकीरा खलीली। मैसूर के दीवान की प्यारी सी नतिनी। वो बेंगलुरू में रहा करती थी। जैसे-जैसे वो बड़ी होती गई उसके रूप के चर्चे मशहूर होते गए। और उसे एक दिन अपने सपनों का राजकुमार भी मिल गया। एक IFS अफसर। अकबर खलीली तो उसके पीछे पागल ही थे। अलग-अलग मुल्कों में तैनाती, अलग-अलग तरह के लोग, अलग-अलग तरह की संस्कृति और माहौल। जिंदगी में रोमांच था। और फिर वो दिन भी आया जब शकीरा एक प्यारी सी बेटी की मां बनीं। खुदा ने उन्हें चार बेटियों की दौलत से नवाजा। लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों शकीरा खोई खोई सी रहतीं। जैसे अंदर कुछ घुट रहा हो। लेकिन वो अपनी तकलीफ किसी से न कहतीं।
शौहर कई बार पूछा करते। कुछ तो बताइए बेगम। लेकिन शकीरा बस मुस्कुरा देतीं। समय पंख लगाकर गुजरता जा रहा था। बच्चे बड़े हो रहे थे। उनकी अपनी दुनिया बन रही थी। सलाम करने वालों की कमी न थी लेकिन ये शकीरा को सुकून न देता। वो भीड़ से घिरी रहतीं लेकिन अंदर से एक तनहा।
बात 1983 की है… रामपुर के नवाब के बुलावे पर शकीरा एक आयोजन में दिल्ली आई थीं। पार्टी रंगीन और उनके मिजाज के हिसाब से थी। देर तक चली पार्टी में शकीरा की मुलाकात मुरली मनोहर मिश्रा उर्फ स्वामी श्रद्धानंद से हुई… श्रद्धानंद के पास रामपुर के नवाब की संपत्ति की देखभाल का जिम्मा था… कहते हैं जमीन के मामले में उसकी जानकारी इतनी अच्छी थी कि बड़े-बड़े लोग उसकी सलाह लिया करते थे…. ये वही समय था जब लैंड सीलिंग के कानून ने रईसों की नींद उड़ा रखी थी। शकीरा भी इसे लेकर बेहद परेशान सी थीं… उन्होंने श्रद्धानंद से बेंगलुरू आकर मदद की गुजारिश की। श्रद्धानंद बातूनी स्वभाव का था और खूबसूरत शकीरा पूरी तरह बेलौस…. समय मिलते ही श्रद्धानंद ने बेंगलुरू की राह पकड़ी और शकीरा के पास जा पहुंचा…. करीब 38 हजार वर्गफुट में फैले आलीशान बंगले में पहुंचकर उसे ऐसा लगा जैसे स्वर्ग में पहुंच गया हो… दोनों के बीच बातों का सिलसिला ऐसा चला कि व्यक्तिगत नजदीकियां सारी हदें पार करने लगी…
शकीरा के मन में सालों से जो टीस थी उसका पता श्रद्धानंद को चल गया था… उसने अपनी बातों से शकीरा को बहकाना शुरू किया… अब शकीरा को श्रद्धानंद पर खुद से ज्यादा विश्वास हो चला था… उसने पारलौकिक शक्तियों के जरिए सालों पुरानी शकीरा की चाहत को पूरा करने का भरोसा दिया… शकीरा अब पूरी तरह श्रद्धानंद की होना चाहती थी… चार बेटियों की मां शकीरा ने अपने पति से तलाक की बात कही.. पति अकबर खलीली को काटो तो खून नहीं… तलाक की बात सुनते ही उन्हें काठ मार गया… लेकिन बीवी से मोहब्बत ऐसी कि उन्होंने ये भी कबूल कर लिया।
शकीरा ने 1985 में पति से तलाक लेकर श्रद्धानंद से शादी कर ली… अब शकीरा को उम्मीद थी कि उसकी सबसे बड़ी चाहत जल्द ही पूरी होगी… जी हां… उसकी सबसे बड़ी चाहत… लेकिन अब श्रद्धानंद बदलने लगा था.. जब भी शकीरा इस बारे में बात करती वो कतराने लगता… इधर शकीरा के जेहन में एक बेटे की मां बनने की तमन्ना रोज नई अंगड़ाई ले रही थी… शकीरा का दबाव बढ़ता देख श्रद्धानंद के दिमाग में कुछ और ही खुराफात सूझने लगी। उसे लगने लगा की शकीरा उसकी अमीरी के रास्ते में आ रही है। उसने कुछ ही सालों में शकीरा की तमाम संपत्तियों का मालिकाना हक अपने नाम करवा लिया.. साथ में कई साझा बैंक खाते और लॉकर भी खुलवा लिए… उसे डर था कि अगर उसके इरादों की भनक शकीरा को लगी तो करोड़पति बनने का उसका सपना चूर-चूर हो जाएगा… उसने मन ही मन बड़ा फैसला ले लिया… फैसला था शकीरा को रास्ते से हटाने का…
28 मई 1991 को आखिरकार वह दिन आया जिसका श्रद्धानंद को बेसब्री से इंतजार था.. सभी नौकरों को एक दिन पहले ही उसने छुट्टी पर भेज दिया… फिर धोखे से शकीरा को चाय में नींद की गोलिंया देकर गहरी नींद में सुला दिया… इस बीच उसने सो रही शकीरा को बेडशीट समेत खींचा और कुछ दिन पहले घर के पास खोदे गए गड्ढे में डालकर जिंदा दफना दिया….
इधर शादी के बाद शकीरा अपने पुराने रिश्तेदारों से पूरी तरह कट चुकी थी… लेकिन मुंबई में रहने वाली उसकी दूसरी बेटी सबा रोज ही मां से बात करती थी… कई दिनों तक जब मां से बात नहीं हुई तो उसने श्रद्धानंद से मां के बारे में पूछा… श्रद्धानंद के गोल-मोल जवाब से हताश शकीरा के बेटी आखिरकार बेंगलुरु आ पहुंची… श्रद्धानंद ने सबा को बताया कि शकीरा गर्भवती है और बच्चे को जन्म देने अमेरिका गई है… कुछ दिनों बाद सबा को मां का पासपोर्ट मिला… श्रद्धानंद पर सबा का शक यकीन में बदल गया… इस बीच श्रद्धानंद ने शकीरा की कई संपत्तियां औने-पौने दाम में बेच डाली… लॉकर और बैंक खाते खाली कर डाले…
करीब एक साल बाद सबा ने 10 जून 1992 को शकीरा के गायब होने का केस अशोक नगर थाने में दर्ज कराया… इधर श्रद्धानंद का रसूख भी काफी बढ़ गया था… तमाम प्रयासों के बाद भी शकीरा के बारे में कुछ पता नहीं चला… मार्च 1994 में केस सेंट्रल क्राइम ब्रांच के हवाले किया गया… क्राइम ब्रांच की टीम ने एक महीने के भीतर ही सारी गुत्थी सुलझा डाली….
पुलिस ने संदेह के आधार पर श्रद्धानंद को गिरफ्तार कर लिया था.. सख्ती से पूछताछ करने पर श्रद्धानंद टूट गया और उसने सारा सच उगल दिया… श्रद्धानंद की निशानदेही पर 30 मार्च 1994 को शकीरा की लाश निकाली गई… इस घटनाक्रम का वीडियो भी बना जिसे कोर्ट ने बतौर साक्ष्य माना… कोर्ट में 11 साल सुनवाई चली और श्रद्धानंद को फांसी की सजा सुनाई गई… 2006 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा लेकिन दो जजों की राय अलग होने के चलते इस मामले में 22 जुलाई 2008 को अंतिम फैसला हुआ… श्रद्धानंद की फांसी की सजा को बदलकर उम्र कैद में बदल दिया… एक ऐसे उम्र कैद में जिसमें उसे मरते दम तक अपनी करनी का फल भोगना होगा….
खूबसूरत जिंदगी की हकदार शकीरा तो जिंदा दफ्न कर दी गई…. लेकिन समाज के लिए एक सीख छोड़ गई…. संतान चाहे बेटा हो या बेटी आज के जमाने में दोनों किसी से कम नहीं हैं…. जरुरत है कि दकियानूसी के आइने से उन्हें ना देखा जाए…. अगर समझदार शकीरा इतनी मामूली सी बात को समझ लेती तो उसकी बेटियों के सिर से मां का साया ऐसे न उठता। वो किसी बेईमान श्रद्धानंद की गिद्ध नजरों की शिकार न होती।
तो दोस्तों….
समय कि हम सब इसे समझें और आसपास के लोगों को समझाएं कि बेटियां जन्नत का नूर होती है। वो हंसती हैं तो फूल झरते हैं। और गाती हैं तो हवाएं गाती हैं कायनात की खूबसूरती के गीत। बेटे की आरजू में हम इस नेमत की तौहीन न करें। …