डॉक्टर… जिसे दरिंदों ने रेप के बाद मार दिया… कहानी उसी की जुबानी!
यह एक सच्ची घटना है हैदराबाद के शमशाबाद की… जहां एक खुशमिजाज डॉक्टर अपने हुनर से जानवरों को पीड़ा से मुक्ति दिलाती थी..पर समाज के कुछ इंसानी जानवरों ने उसे ऐसी पीड़ा पहुंचाई कि पूरा सभ्य समाज शर्मसार हो गया… हंसती-खिलखिलाती प्यारी सी डॉक्टर को दरिंदों ने अपने कुकर्मों से ऐसी दुनिया में भेज दिया जहां से लौटकर आना उसके लिए संभव न हो सका…तो आइए सुनते हैं ये कहानी उसी डॉक्टर की जुबानी….
मैं उस समय केवल 12 साल की थी… अभी परिपक्वता और दुनिया का रंग मुझपर ठीक से चढ़ा भी नहीं था… एक दिन स्कूल से लौटते वक्त गली में मुझे एक घायल कुत्ता नजर आया… उसके पैर जख्मी थे वो चल नहीं पा रहा था और एक जगह बैठ कर कराह रहा था… वो शायद कुछ दिनों से यहीं पड़ा था… मैंने उसे अपने वाटर बोतल से पानी पिलाया और टिफिन से बचा खाना भी खिलाया… अगले दिन स्कूल जाते वक्त मैंने उसके लिए कुछ बिस्किट रख लिए… आज फिर स्कूल से लौटते वक्त मैं उसके पास गई और उसे बिस्किट दिया… वह मुझे प्यार करने लगा… उसकी आंखों में मेरे लिए कृतज्ञता मैं स्पष्ट देख पा रही थी… वो एकटक मेरी आंखों में देख रहा था और मेरे बाल मन ने उन आंखों में अपने लिए थैंक्स और ना जाने कितने शब्दों का ताना-बाना बुन लिया… अनायास ही मेरी आंखों से आंसू निकल पड़े… फिर अगले दिन मैंने उसके घाव साफ किए उस पर टींचर लगाया उसे खाना खिलाया उसकी देखभाल की… मैंने कोई कमी नहीं छोड़ी… पर उसका घाव ठीक होने की बजाए बढ़ता गया… वो बेबसी से मेरी राह देखता, मेरा इंतजार करता… मैं भी उसके ठीक होने का इंतजार कर रही थी… पर एक दिन उसकी इंतजार भरी आंखें सदा के लिए बंद हो गईं… मुझे बहुत दुख हुआ… उसके लिए मेरी दुआ भी काम न आ सकी थी, जिसके लिए मैंने अपने दोस्तों की बात नहीं मानी… मेरा वो दोस्त मुझे छोड़कर जा चुका था… उसे नगर निगम वाले उठाकर ले जा रहे थे…
ऐसी कई कहानियां हमारे आस-पास रोज घटित होती हैं पर हम इंसान हैं हमें जानवरों के बारे में सोचने का वक्त कहां मिलता है?
पर मैं शायद थोड़ी अलग थी मुझसे बेजुबान जानवरों का दर्द सहन नहीं होता था… ऐसे ही एक गाय की कहानी ने मेरी जिंदगी बदल डाली… वो गाय हर दिन अपने बछड़े के साथ हमारे मुहल्ले में आती और हर दरवाजे पर कुछ पा लेने की उम्मीद में आती और घरों से उसे कुछ ना कुछ खाने को जरुर मिलता जिसे खाकर वो आगे बढ़ जाती… एक दिन किसी बेरहम ने उसे पॉलिथीन से भरा अनाज खिला दिया जिससे उसकी तबीयत बिगड़ी और भरे बाजार में उसने दम तोड़ दिया… इस घटना से मेरे अंतर्मन में फिर से द्वंद छिड़ गया… गाय के अनाथ बछड़े की आवाज ने पूरे मुहल्ले को सोने नहीं दिया मानो वो नन्ही सी जान रातभर रोकर हम इंसानों से हजारों सवाल कर रहा हो… मैं रातभर इसी उधेड़बुन में रही कि एक बिन मां का बच्चा किस हाल में हो सकता है?
उस बछड़े का दुख दर्द समझने वाला समझदार इंसान कम से कम हमारे मुहल्ले में तो नहीं था… यह इंसानों की बस्ती है जहां इंसान को समझने में सारी उम्र गुजर जाती है वह तो बछड़ा था… बेजुबान जानवर भला उसकी भाषा कौन समझ पाता… पर मैं समझना चाहती थी… एक बेजुबान का दर्द और उसके दर्द को कम भी करना चाहती थी… इसका केवल एक ही रास्ता था- जानवरों का डॉक्टर होना… काश! कि मैं डॉक्टर होती तो शायद वो गली का कुत्ता और मेरे मुहल्ले की गाय को मैं बचा पाती… इस विचार के साथ मेरा निश्चय दृढ़ हो गया कि मैं वेटनरी डॉक्टर ही बनूंगी और कुछ नहीं…
मेरी इस चाहत को अंजाम तक पहुंचाने में सबने मेरा साथ दिया… मेरा परिवार… मेरा भगवान् सबने मेरी इच्छा पर मुहर लगाई.. और वो दिन भी आ गया जब मैं एक डॉक्टर बन गई। मैं खुश थी…बहुत खुश.. मेरी मुराद जो पूरी हो गई थी… मेरे पैर जमीन पर रुक ही नहीं रहे थे मानो मुझे पंख लग गए हों और मैं उड़ रही हूं… वो सारे सपने वो सारा सेवा भाव सबको समेट कर मैंने अपनी एक नई दुनिया बना ली… जिसमें ना जाने मेरे कितने बेजुबां साथी जुड़े…दोस्ती की… ठीक हुए और चले गए… अभी मेरे पशु चिकित्सालय में 14 जानवर हैं और मैं उसका इलाज कर रही हूं…. सब पहले से बेहतर हैं और मुझे पहचानने भी लगे हैं… मैं पूरी तन्मयता से इनके इलाज में लगी हूं…
आज 27 नवंबर 2019 है… मेरा मेरे स्किन के डॉक्टर के साथ अपॉइन्टमेंट है मुझे घर पहुंचने में देर हो जाएगी ये बताकर मैं घर से निकल चुकी थी… फिर भी सारे काम निपटाकर मैं घर जल्दी से जल्दी पहुंचना चाहती थी.. पर डॉक्टर से दिखाकर जब मैं अपनी स्कूटी के पास पहुंची तो ये क्या मेरी स्कूटी तो पंक्चर है… मैं थोड़ा घबरा गई क्योंकि अंधेरा हो गया था और ये जगह भी सुनसान थी… मैं अपनी स्कूटी को खींचकर ट्रक के आगे तक आई ही थी कि दो लड़के मेरे पास आए और मुझसे बोला आपकी स्कूटी तो पंक्चर है लाइए मैं पास से बनवाकर ला देता हूं और दूसरे लड़के से कहा तू मैडम के साथ ही रहना मैं अभी आता हूं… मैं थोड़ा डर गई क्योंकि बचपन से ही सिखाया गया है कि अजनबियों पर भरोसा मत करो… पर मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था… इसलिए मैंने उसे बनवाने के लिए स्कूटी दे दी… और थोड़ी दूर जाकर अपनी छोटी बहन को फोन कर दिया कि मैं टोल के पास हूं और फंसी हुई हूं मैंने ये भी कहा कि मुझे यहां ठीक नहीं लग रहा है क्योंकि यहां कुछ ट्रक ड्राइवर हैं
छोटी बहन ने समझाते हुए कहा कि तुम किसी तरह टोल तक पहुंचो फिर डरने की कोई बात नहीं.. थोड़ी देर बाद वो लड़का स्कूटी लेकर आ गया मैंने जब उसे पैसे देने चाहे तो उसने मना कर दिया मैं थोड़ी निश्चिंत हो गई क्योंकि मेरी स्कूटी सही सलामत मेरे पास थी… मैं स्कूटी पर जैसे ही बैठी अभी उसे स्टार्ट करने ही वाली थी कि एक हाथ ने मेरे मुंह को दबोच लिया तो दूसरे लड़के ने घसीटकर स्कूटी से नीचे खींच लिया… मैं कुछ समझ पाती इससे पहले ही मैं दो और लोगों से घिर चुकी थी… चारों जानवरों के बीच मैं अकेली… मैंने अपनी पूरी ताकत लगाई पर खुद को उन हैवानों से छुड़ा ना सकी… वो चारों मुझे उठाकर एक ऊंची चाहरदीवारी से घिरी जमीन पर ले गए और पटक दिया… थोड़ी देर के लिए जमीन पर गिरते वक्त मैं स्वतंत्र हो पाई तो मैंने जोर से चिल्लाने की कोशिश की पर उनलोगों ने मेरे मुंह में शराब की बोतल ठूंस दी और मेरे बाल खींच लिए… कोई मेरी टांगे नोंच रहा था कोई मेरा हाथ दबा रहा था शरीर का कोई हिस्सा नहीं था जहां मैंने दर्द महसूस नहीं किया हो… इन चारों नशे में धुत्त हैवानों से कब तक लड़ती मैं… मैं थककर बेहोश हो गई और बेहोशी की हालत में ही चारों ने मेरे शरीर को नोंच डाला… मेरे साथ रेप किया… असहनीय पीड़ा हो रही थी मुझे… मानों प्राण निकल जाएंगे मेरे… पर मैं हारना नहीं चाहती थी… मैंने अपनी सारी शक्ति समेटी और दर्द से परे खुद को महसूस करने की कोशिश की तो पाया कि मेरे शरीर पर कंबल लपेटकर वो मुझे कहीं ले जा रहे हैं… मैंने फिर अपनी पूरी ताकत के साथ चीखना शुरू किया परंतु उन जालिमों ने फिर मेरा मुंह दबा दिया और मेरे ऊपर चढ़ गए मैं फिर से बेहोश हो गई…
इतने दर्द झेलने के बाद भी मैं जीवन से हारी नहीं थी, जीना चाहती थी अभी मेरी उम्र ही क्या है केवल 26 साल… अभी तो मैंने ठीक से दुनिया देखी भी नहीं, मैं जीना चाहती हूं…अभी मुझे बहुत कुछ करना है अभी तो सफर शुरू ही किया है मैंने पर इन दरिंदों और हैवानों को कौन समझाए कि किसी और को दर्द से छुटकारा देने का सुख क्या होता है ये तो दर्द और सिर्फ दर्द देना जानते हैं… मेरा गला दबाकर मार दिया मुझे… इतने से भी इन जानवरों का मन नहीं भरा तो मेरे शरीर पर पेट्रोल डालकर जला दिया…
कहते हैं जुर्म करने वाला कुछ ना कुछ सबूत छोड़ ही जाता है… यहां भी कुछ वैसा ही हुआ… मेरे अधजले शरीर को हैवानों ने फ्लाईओवर से नीचे तो फेंक दिया लेकिन उससे उठ रहे सबूत के धुएं ने वहां पुलिस को ला खड़ा किया… फिर क्या था… पुलिस तो पहले से ही छीछालेदर झेल रही थी… पड़ताल तेजी से शुरू हुई… और दूसरे ही दिन पुलिस के हाथ दरिंदों के कॉलर तक जा पहुंचे…
मैं अब मुक्त थी… पर मैंने देखा कि मेरा शरीर तो वहीं जला पड़ा है… ओह! तो क्या अब मैं आत्मा बन गई हूं? शरीर से अलग हो गई हूं… मैं मर चुकी हूं… इस ख्याल के आते ही मेरी आंखों से आंसू बहने लगे… फिर मैं भागी बेतहाशा अपने परिवार के पास… वहां देखा सब परेशान हैं.. रो रहे हैं.. मैं ना तो उनके आंसू पोंछ पा रही हूं ना सांत्वना दे पा रही हूं.. बेबस सी मैं दीवार के पास बैठ गई… छोटी,… पापा…, मम्मी… सब फोन पर परेशान मुझे ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं… मैं यहीं हूं… अपने ही घर में… पर सब मुझे बाहर ढूंढने के लिए भागे जा रहे हैं… पुलिस चौकी… टोल प्लाजा और ना जाने कहां-कहां…!
आखिर हैदराबाद के पास नेशनल हाईवे-44 पर जहां मुझे जलाया था वहां मेरे परिवार के लोग पुलिस के साथ पहुंच गए… मेरी बहन बिना डरे…, बिने हिचके उस अधजले डरावने लाश पर मेरी पहचान ढूंढ़ रही है… अचानक वो चीख पड़ी… हां!…. पापा!…. दीदी…! उसने मेरे गले का गणेशा पैंडेंट दिखाते हुए कहा- ये पैंडेंट….! छोटी…, पापा से लिपटकर बिलख पड़ी… और पापा के कदम लड़खड़ा गए… जिसकी बेटी का ये हाल हो वो पिता आखिर खुद को संभाले भी तो कैसे…? काश! कि मैं अपने पापा और बहन को संभाल पाती और बता पाती कि मैं यहीं हूं पापा… छोटी…! टूटो मत… बिखरो मत… संभालो… मुझे इंसाफ दिलाओ…
जब सब घर पहुंचे तो मम्मी हैरान-परेशान दरवाजे पर ही खड़ी थी… क्या हुआ वो पूछ बैठी? हमारी खोज पूरी हुई मां…. और साथ ही हमारा परिवार अधूरा हो गया… ये कहते हुए छोटी ने मां को संभाल लिया जो गिरते-गिरते बची थी… अब हमें लड़ना है… दीदी को इंसाफ दिलाना है इसके लिए सबको मजबूत बनने की जरुरत है… उन जालिम गिद्धों को हम किसी भी हालत में छोड़ेंगे नहीं… इसके बाद मानों हमारे हंसते खिलखिलाते परिवार के जीवन का उद्देश्य ही बदल गया… वो पुलिस के साथ मिलकर सिर्फ और सिर्फ मुझे इंसाफ दिलाना चाहते थे..
दुनिया के बहुत सारे लोग अनायास ही मेरे साथ जुड़ गए… नेता… अभिनेता… आम जनता… किसी ने मेरे लिए भला कहा तो किसी ने बुरा भी… पर अब क्या फर्क पड़ता था मुझे… मैंने तो दुनिया का सबसे बड़ा नर्क भोगा था… पुलिस पर दबाव बनने लगा… वही पुलिस जो कल तक मेरी गुमशुदगी की रिपोर्ट भी नहीं लिखना चाह रही थी वो मेरे सपोर्ट में आ गई… बहुत सारे अनजाने लोगों ने मुझसे नाता जोड़ लिया… मुझमें अपनी बहन…बेटी की छवि देखने लगे.. तमाम कोशिशों और सीसीटीवी फुटेज ने मेरे साथ हुई क्रूरता की सारी कहानी कह दी… अब पुलिस का गुस्सा और जनता के रोष ने एक नए प्लान को जन्म दिया… पुलिस ने चारों दरिंदों को धर दबोचा फिर उनका वारंट लिया और घटना स्थल पर क्राइम सीन रिक्रिएट करने उन्हें ले गई… उसी दौरान धुंध का फायदा उठाकर चारों दरिंदों ने भागने की कोशिश की… उन्हें रोकने और पकड़ने की कोशिश के दौरान पुलिस ने एनकाउंटर में उन्हें ढेर कर दिया… मैं वहीं थी… सब देख रही थी…
इस एनकाउंटर पर कई सवाल उठे… कई मानवाधिकार संगठनों ने कानून की दुहाई दी… लेकिन आम जनता जिनमें कल तक रोष था पुलिस के इस रवैये से खुश थी और इसका अंदाजा पुलिस वालों को भी था… मेरे परिवार वालों ने भले ही पुलिस का ढीला रवैया देखा लेकिन यहां ताबड़तोड़ ऑपरेशन से मेरे परिजनों के चेहरे पर भी संतोष के भाव थे… अलबत्ता पुलिस के आलाधिकारियों ने बिना किसी सवाल-जवाब के एनकाउंटर और दरिंदों के भागने की कहानी मीडिया के सामने साझा किया…
मैं अब वापस तो नहीं आ सकती थी लेकिन घटना के पूरे 10 दिन बाद मेरे परिवार वालों के चेहरे पर एक सुकून और शांति का एहसास था… वो इस बात से खुश थे कि मेरी आत्मा को शांति मिली होगी… पर मैं ये चाहती हूं कि जो दर्द और दरिंदगी मैंने सहा है वो किसी और बेटी को ना सहना पड़े इसके लिए हमारे समाज को नैतिक मूल्यों पर ध्यान देना होगा और पुलिस प्रशासन को अपने कर्तव्यों पर… साथ ही समाज के तमाम लोगों से ये भी पूछना चाहती हूं कि अंधेरे में किसी पुरुष का निकलना अगर सही है तो स्त्री का क्यों नहीं…. इस दोहरे रवैये से हमारा समाज कब मुक्ति पाएगा…
Bitter truth
Engaging (well written)