प्रीति प्रकाश
1 दिसंबर, 2022
मुहब्बत… एक जज्बात… एक किताबी कहानी.. अहसास…या कुर्बानी.. शब्दों में इतनी ताकत नहीं होती कि वो मुहब्बत को परिभाषित कर सके। फिर भी इतिहास के पन्ने पर एक कोशिश और एक छोटी सी कोशिश है यहां भी।
मैं छोटे से अति पिछड़े गांव में रहने वाली लड़की रति पंडित और मेरे ही क्लास का लड़का मंगल। हम उम्र के उस पड़ाव पर थे जब पलकें किसी को अपलक देखना चाहती हैं.. धड़कने और भी तेज गति से धड़कना चाहती हैं… मंगल पढ़ने में तेज था और स्वभाव से भी अच्छा…. और चोर निगाहें उसकी मुझपर अटकती भी थीं… नौवीं क्लास की गांव की लड़की को सपने दिखाने के लिए भाभी चाची द्वारा मजाक करना और कभी-कभी घर में ब्याह की भी चर्चा, मन कल्पना के पंख लगाकर वही चेहरा ढूंढता रहता घर आंगन में भी… एक दिन उसने मेरी कॉपी में एक छोटी से चिट रख दी जिसे पढ़कर मैं झूम उठी…नाच उठी और मेरे होठों पर खिलती मुस्कान ने उससे मेरे दिल की बात कह दी..
हमारा प्यार परवान चढ़ता गया हमने बोर्ड भी पास कर लिया. अब हमारा मिलना मुश्किल हो रहा था। मैं इसलिए तड़पती थी कि मुझे उसके तड़पने का अहसास होता।
पर हम कभी-कभार बड़ी मुश्किल से एक दूसरे को देख पाते… सच तो ये भी था कि मुझे अपनी परवाह नहीं होती पर उसका उदास चेहरा देख मैं रो पड़ती… एक दिन मैंने सुना मेरे घरवाले शादी की बात कर रहे हैं। ये बात मैंने उसे बताई और भाग जाने का प्रस्ताव भी रखा… पर वो समाज की दुहाई देने लगा…
पर मैं अंधी हो चली थी.. मैंने कसमों की जंजीर.. मर जाने की धमकी और ना जाने किस-किस तरह रोकर-चिल्लाकर उसे मना लिया और हम भाग गए दूर.. बहुत दूर… दिल्ली…
जहां की हवाएं भी ना पहचानती हों हमें… हम खुश थे बहुत खुश… हमने अपनी मंजिल पा ली थी.. शादी कर घर बसा लिया और मंगल ने शहर में काम भी ढूंढ लिया.
अचानक एक दिन जब मैंने देखा, दरवाजा खोला… मंगल के पापा खड़े थे। मैं सहम गई.. वो अंदर आए हमें प्यार किया… कहा उन्होंने हमें स्वीकार कर लिया है वो हमें वापस लेने आए हैं अपने गांव…
मंगल जब काम से लौटा तो थोड़ी उलझन में था उसने गांव जाने से इनकार कर दिया पर मैं फिर जिद कर बैठी। उसने लाख समझाया कसमें याद दिलाई कि हम कभी वापस गांव नहीं जाएंगे अगर मरना पड़े तो साथ मर जाएंगे… पर मैं नासमझ! अल्हड़… समाज के ठेकेदारों की चाल को नहीं समझ पा रही थी… पर मेरी जिद ने मंगल को गांव जाने पर मजबूर कर दिया.. अभी हम गांव की सरहद पर पहुंचे ही थे वहां पंचायत थी… वो पंचायत जो हमारे प्यार को पाप समझ रहा था और अपने नीच कर्मों को पुण्य…
अब हमें अलग होने को कहा जा रहा था… मेरे भइया और बाबूजी भी थे… मैंने उन्हें प्रणाम् करना चाहा तो उन्होंने मना कर दिया… कथित अगड़ी जाति के लिए यह अपमानजनक बात थी कि उसके घर की इज्जत पिछड़ी जाति के साथ थी। मेरे बाबूजी अगर मुझे स्वीकार करेंगे तो उन्हें गांव से निकाल दिया जाएगा और मंगल के बाबूजी पर उनके समुदाय ने जोर-जबरदस्ती कर उनकी बेटी का वास्ता देकर उन्हें मजबूर कर दिया था। हम दीवानों ने ये समुदाय, जाति-बिरादरी की बात कब सोची थी? हम तो बस प्यार के उस अहसास में बंधे थे जो हमें इंसान बनाती है। मंगल ने मेरा हाथ पकड़ लिया और हम भागने लगे। गांव की सरहद से पार…
अचानक पीछे से लाठी से वार हुआ मंगल पर और वो बेहोश होकर गिर पड़ा… मैं अवाक् नर्वस… मंगल से अलग नहीं होना चाहती थी… मैंने उसके बचाव के लिए उसे कवर की तरह ढक लिया… मुझे मंगल से अलग करने के लिए न जाने कितने हाथ एक साथ खींच रहे थे पर मैं अलग नहीं हो रही थी… अचानक भइया ने आवाज दी जब मैं मुड़ी तो उसने मुझे खींच कर अलग कर दिया… मंगल वहीं पड़ा था और मैं जबरदस्ती खींची जा चुकी थी। मेरे सगे भइया और उनके दोस्त सबने मिलकर मुझपर कुल्हाड़ी से वार करना शुरू किया और मैं मूली-गाजर की तरह कटती गई। मेरे शरीर के इतने टुकड़े किए गए कि मैं पहचान में ना आ सकूं…मंगल को सबने स्वीकार कर लिया उसकी शादी भी कर दी गई… पर वो पागल हो चुका है…
गांव वाले मानते हैं कि कोई भी लड़की अब प्यार करने की जुर्रत नहीं करेगी पर इश्क की इस हवा को गांव वाले आखिर कब तक रोक पाएंगे ये मंगल देख पाएगा मैं नहीं….