Galbahiyan, made for each other

प्रतीकात्मक फोटो

प्रीति प्रकाश
9 दिसंबर, 2022

अनन्या की आंखों से नींद आज कोसों दूर थी। वह बार-बार करवट बदल कर सोने की कोशिश कर रही थी पर उसका दिमाग इतनी तेजी से अतीत के गलियारे में दौड़ रहा था कि वह चाह कर भी उन यादों से छुटकारा नहीं पा रही थी। आखिर श्रद्धा ने उसके जख्म की मीठी-मीठी टीस में सेंध जो लगा दी थी।

वह भी कभी श्रद्धा की तरह 18 साल की थी हां उसने भी प्यार किया था पर श्रद्धा की तरह नहीं आज श्रद्धा ने सारी हदें पार कर दी। अपनी मां से एक लड़के के लिए इस तरह ढिठाई करना, खैर कोई नहीं वह कल प्यार से अपनी बेटी से बात करेगी और उसे समझाएगी। अनन्या फिर खो गई अपनी यादों में… हमारे जमाने में भी प्यार होता था नजरों से, मैं पगली उसके एहसास से ही प्यार करती रही हमारी संस्कृति और सभ्यता ने तो हमेशा पत्थर को पूजा पर मैं बावरी सुबह-शाम… तुमसे कभी मिली नहीं.. कभी पास से देखा नहीं… कभी तुम्हारे घर ना गई और ना ही तुम कभी हमारे घर आए।

 

कभी दो टूक हमारी बात भी ना हुई, क्या था यह प्यार! कैसा प्यार? ना साथ मिलकर कभी सपने देखे…ना कभी दो कदम साथ चले हां… तुम्हारा बार-बार इजहार करना 10 सालों तक मेरी हां का इंतजार करना तुम्हारे कातर निगाहों की मिन्नत एक नजर देख कर खुश हो जाने की ललक मेरे घर के सामने इस सर्दी-गर्मी की परवाह किए बगैर एक झलक पा लेने की तेरी तमन्ना ने पागल बना दिया था मुझे।

तुम्हारा समर्पण और तुम्हारा प्यार जिसे मैं हाथ बढ़ाकर ना जाने कितनी बार थाम लेना चाहती थी परंतु हमारी मर्यादा हमारे हमारे माता-पिता का निश्चल प्यार ने हर बार हमारे कदम बांध लिए जब भी मैं तुलना करती तुम्हारे प्यार को अपने माता-पिता के प्यार से कमतर ही पाती श्रद्धा के शब्दों में मैं शायद मूर्ख थी।

क्योंकि वह मेरे माता-पिता का प्यार नहीं मेरे प्रति जिम्मेदारी थी तो अपने माता-पिता के प्रति हमारी जिम्मेदारी कुछ भी नहीं? जब भी मेरे कदम लड़खड़ाए मैं और अधिक दृढ़ हो जाती इतराती और गर्व करती खुद पर अपनी परवरिश पर, मैं हूं ऐसी कि मुझे कोई भी प्यार कर सकता है। मेरे मां-बाप ने मुझे अपना नाम दिया इस काबिल बनाया अगर मैं लावारिस होती पढ़ी-लिखी नहीं होती गालियां बकती बात करने और रहने की तहजीब नहीं होती तो क्या यह शख्स मुझे प्यार करता? मुझे अपनाता? शायद नहीं और मैं फिर जीत जाती।

मेरे अंतर्मन में सवालों की झड़ी लग जाती और मेरे इन्हीं सवालों के डर ने मेरे प्यार को मेरे सामने आने की हिम्मत नहीं दी। मैं अपने प्यार के लिए एक परिभाषा बना चुकी थी। प्यार उस गीली लकड़ी की तरह है जो  सुलगती रहे ताउम्र एक मीठी-मीठी टीस के साथ और हमारे प्यार को जिंदा रखे। मेरे मन ने मान लिया कि प्यार पाने का नहीं खो देने का नाम है। प्यार को पा लेने के बाद प्यार, प्यार नहीं रह जाता वह खत्म हो जाता है। प्यार को ताजमहल में ही रहने दें ताजमहल को घर ना बनाएं, वरना उसकी खूबसूरती के साथ-साथ उसकी खामियां भी हमारे सामने आ जाती हैं।

पर श्रद्धा या आजकल के बच्चे हमारे प्यार के इस एहसास को उल-जुलूल शब्दों से संबोधित करेंगे, हमारा मजाक बनाएंगे। क्योंकि प्यार का तो बाजारीकरण हो गया है। गिफ्ट, मूवी, घूमना-फिरना छुट्टी के दिन सारी मर्यादा को ताख पर रखने की लालसा ही प्यार का रूप है। आज श्रद्धा ने कहा मुझसे, आप मुझे कभी ना कभी खुद से अलग करोगे किसी ना किसी के साथ शादी करके बांध दोगे, तो फिर वह आपकी पसंद का क्यों हो?

मेरी पसंद का क्यों ना हो? बस इसलिए कि आप मेरी मां हो, या मैं बच्ची हूं.. आदमी की परख नहीं है मुझमें.. नहीं मम्मा, कब समझोगे आप.. कि मैं बड़ी हो गई हूं, अपना अच्छा बुरा सोच सकती हूं। कैसे समझाती मैं उसे वह कितनी भी बड़ी हो जाए पर दुनिया के सारे रंग अभी नहीं देखे उसने। मैं उसे खुश देखना चाहती हूं बहुत खुश.. मुझे उसकी परवाह है और दुनिया के राक्षसों का डर भी। बच्चों को लगता है कि वह बहुत बड़े और अक्लमंद हो गए हैं। पर जिंदगी का तजुर्बा उम्र के साथ ही आता है और यह बात भी उम्र के साथ ही समझ में आती है।

कैसी परवरिश दी मैंने तुम्हें कहां कमी रह गई मुझसे, अब मैं थक गई हूं, मेरी परवरिश ने तुम्हें संस्कार क्यों नहीं सिखाया? मैं असफल रही मैं एक अच्छी मां नहीं बन पाई! यह सोच अनन्या को बेचैन कर रहे थे और श्रद्धा के सवाल मानो उसके कानों में चुभ रहे थे श्रद्धा ने जब मुंह खोला मानो अनन्या के लिए जहर का प्याला घोल दिया है.. उसकी खुद की बेटी ने, वह तो सोच रही थी कि उसकी बेटी ने सिर्फ ड्रिंक किया है।

धरती फटे और वह समा जाए.. कहां से लाएंगी आप राम जैसा दामाद? कौन राम बचा है… जो मैं सीता बनी रहूं… सभी मौज कर रहे हैं तो मैं क्यों नहीं? आप जो राम लाएंगी वह राम ही होगा इसकी कोई लिखित गारंटी देगा क्या मुझे? कैसे सवाल थे जिसने अनन्या को अंदर तक झकझोर दिया था। क्या कहे वह श्रद्धा से, इस समाज से, खुद से, क्या करे वह? खुद ही अनन्या एक सवाल बन गई थी यह कैसा प्यार है जो एक दिन में हमारी तहजीब, संस्कार और मां-बाप का प्यार भुला देती है। जिसमें पाना और सिर्फ पाना ही है।

ये प्यार है या जिद? आज 35 टुकड़ों में कटा ये शरीर आज की  पीढ़ी के लिए एक बहुत बड़ा सबक है जो ये भूल जाते हैं की मॉडर्न होने का मतलब मां -बाप को भुलाकर सारे संस्कारों को ताख पर रखना नहीं होता।

 

1 thought on “श्रद्धा की जिद

  1. Who gave the right to cut in many pieces a poet , a society , a love story, a humanity , a living things , …..if an animal cuts world ruin as like corona , then why not today cuts Indian heart for shardha .
    As like the time of nirbhaya . Why not people’s comes out for the justice , where is supreme court , society ,and safety . If shradha knows that she will be the piece of 35 body parts and love’s as like any Indian film story . Then she not tried in life which untold story and any poets word and also be a a tajmahal ? to found her love . every parents love is his child only and they help him to share everything but today’s truth is …shradha was stubborn girl by the pen of every poet …36 pcs vs 56 inch .

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