दोस्ती का उपहार…
एक वीराना से जंगल की तपती दोपहरी में एक भूखी प्यासी मधुमक्खी बहुत देर से घूम रही थी उसका गला सूखा जा रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं से भी कोई भी फूल-पत्ती उसकी प्यास बुझा दे, पर प्रचंड गर्मी ने फूल पत्तों की भी हालत खराब कर रखी थी। अब मधुमक्खी रानी थक चुकी थी वह कभी किसी पत्ते पर बैठती तो कभी किसी फूल पर उसे गर्मी से राहत नहीं मिल पा रही थी। वहीं गर्मी से बचने के लिए एक फूल एक बड़े से पत्ते की ओट में छिपा बैठा था जो बहुत देर से मधुमक्खी को देख रहा था। उसे हंसी भी आ रही थी कि किस प्रकार मधुमक्खी बेचैनी से उसे ढूंढ रही है और वह छुपा बैठा है।
अब फूल ने अपनी गर्दन निकाली और थोड़ा हिलता डोलता एक पत्ते से रगड़ खाकर आवाज करता हुआ बाहर निकला। उसकी आवाज सुनते ही मधुमक्खी भागती हुई आई और फूल पर बैठ कर अपनी प्यास और थकान बुझाने लगी। मधुमक्खी को ऐसा लग रहा था मानो एक नन्हे बच्चे को अपनी मां का गोद मिल गया हो और वह सुध-बुध खोकर अपनी मां की आंचल में सो गया है।
मधुमक्खी की इस सुकून और निश्चल प्रेम को देखकर फूल ने भी भावविभोर होकर उससे अपने पंखुड़ियों की ओट में छुपा लिया। गर्मी से राहत और गला तर हो जाने की वजह से मधुमक्खी शाम तक फूल की गोद में सोई रही जब उसकी आंखें खुलीं तो खुद को फूल की गोद में पाकर शर्मिंदगी महसूस करती है। वह फूल को धन्यवाद बोलती है और जरूरत पड़ने पर उसकी सहायता का वचन देती है।
इस पर फूल मुस्कुराकर बोलती है, यह तो मेरा फर्ज था चलो कोई बात नहीं, अबसे हम-तुम दोस्त हैं तुम वादा करो कि मुझसे रोज मिलने आया करोगे मधुमक्खी रोज मिलने का वादा करती है अब दोनों रोज मिलती हैं। दुनिया भर की बातें करती हंसी ठिठोली करती वक्त का पता ही नहीं चलता। अब तो मधुमक्खी और फूल का पूरा परिवार इनकी मस्ती में शामिल होने लगा था।
इनकी दोस्ती के किस्से भी मशहूर हो रहे थे एक बार जाने क्यों हर पल हंसती खिलखिलाती फूल कुछ उदास सी थी, रानी मधुमक्खी ने बार-बार जिद करके फूल की उदासी का कारण जानना चाहा पर फूल चुप थी। रानी मधुमक्खी बोली चलो कोई बात नहीं तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारी सहायता के काबिल नहीं हूं तो कोई बात नहीं तब फूल ने गंभीरता से कहना शुरू किया तुम्हें पता है प्रकृति के अलावा भी कोई है जो हमें बहुत प्यार करता है हमारी परवाह करता है जरूरत पड़ने पर हमें पानी देता है हमें बोता है और बदले में हम उसे कुछ नहीं दे पाते।
मधुमक्खी बोल पड़ी- तुम मानव की बात कर रही हो पर वह तो स्वार्थ बस तुम्हें बोता है, तुम्हें सींचता है, तुम्हारी हत्या भी तो करता है, माला बनाना, देवता पर चढ़ाना अपने भोजन के लिए तुम्हारी हत्या करना, तुम इतना मत सोचो परेशान मत हो। फूल बोली- नहीं सखी! वह तो जीवनदाता है.. मैं कैसे भूल सकती हूं कि वह हमारे वंश को कितना मूल्यवान सुंदर और नए-नए रंगों में परिवर्तित कर रहा है कितनी मेहनत कर रहा है हमारे परिवार के लिए हम भी कुछ करना चाहते हैं हम चाहते हैं वह फल का स्वाद ही नहीं कुछ ऐसा जादू हो कि वह हमारा स्वाद भी चखे और वाह-वाह कह उठे।
मधुमक्खी गहरी सोच में पड़ गई, जब वह अपने घर लौटी, उसने अपने छत्ते में सभा बुलाई, सारी मधुमक्खियां से फूल की समस्या बताई आखिरकार सभी मधुमक्खी ने मिलकर समाधान ढूंढ ही लिया। अब वह फूलों का ज्यादा रस निकालती, कुछ रस पीती थी और कुछ छत्ते में जमा भी करने लगी। आखिरकार मधुमक्खियों की मेहनत रंग लाई और शहद का निर्माण हुआ। जब रानी मधुमक्खी ने शहद चखा तो वह खुशी से झूम उठी और फूल को जाकर अपनी दोस्ती का उपहार दिया। अब फूलों की उदासी का कोई कारण नहीं था वह सदा-सदा के लिए मुस्कुराने लगी क्योंकि अपने दोस्त के साथ मिलकर मिठास भरी सौगात मनुष्य को भेंट किया।
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