महानगर की ऊंची-ऊंची इमारतें और उसमें रहने वालों का ऊंचा कद, उस इमारत में सिमटे छोटे-छोटे घर और उसमें रहने वालों का छोटा होता हृदय। सचमुच ही हृदय विदारक है।
जिंदगी जी चुके मां बाप को घर से बेदखल कर दें आखिर उनका काम ही क्या है उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी कर लीं, जिंदा क्यों हैं, बोझ बन गए हैं, ओल्डऐज होम भेज देना या घर से निकाल देना समस्या का समाधान है?
बेचारे बच्चे भी क्या करें अपनी जिम्मेदारियों के बीच इन दोनों की जिम्मेदारी बोझ ही तो है।
हर रोज मार्केट में नई-नई चीजें आ रही हैं। महंगे कपड़े, महंगी गाड़ियां और ना जाने क्या-क्या.. भाई स्टेटस मेंटेन तो करना ही पड़ेगा।
समाज में जब सब बढ़ने की होड़ में हैं तो भला हम पीछे क्यों रहें?
सोसाइटी सिंबल डॉगी को हम कैसे भूल सकते हैं भला? पर डॉगी पर होने वाले खर्च हमें बोझ नहीं लगते सिर्फ मां-बाप के खर्चे ही महंगे हैं और बाकी चीजें सस्ती। काश! कि इंसानियत के पैमाने पर भी उतना ही ऊंचा होता हमारा कद।
Bitter truth, dogi ka खर्च status और माँ बाप बोझ, उसमें भी आप doggie नहीं बोल सकते उनका नाम होता है 😉