हम स्मार्ट पेरेंट्स हैं
परवरिश करना जितना मुश्किल है इतना ही आसान है किसी के परवरिश पर उंगली उठाना। यहां मैं किसी को भी गलत नहीं कह रही क्योंकि हर मां-बाप अपने हिसाब से अपने बच्चों की बेहतर परवरिश करते हैं, बस वह लिख रही हूं जो महसूस किया है जो पर मेरी नजर ने देखा है।
आजकल के कुछ पेरेंट्स बहुत ही स्मार्ट हैं उनका मैनेजमेंट बहुत अच्छा है वह चाहे घर में कैसी भी परिस्थिति हो कोई बड़ा-बुजुर्ग, बच्चा या खुद ही बीमार हों, चाहे अस्पताल में एडमिट भी हों तो भी हर हाल में अपने बच्चों का क्लास मिस नहीं होने देते, पढ़ाई का नुकसान होने नहीं देते, उनके रूटीन में कोई रुकावट नहीं आने देते, यहां तक तो सब ठीक है पर बुढ़ापे में जब ये ही पेरेंट्स बीमार पड़ेंगे और अपने बच्चों से यह उम्मीद करेंगे कि हमारा बच्चा अपना रूटीन ऑफिस या दूसरा काम छोड़कर हमारे साथ डॉक्टर के यहां चले, हमारी सेवा करे तो क्या यह संभव है?
क्या हमने उसे बचपन में यह सिखाया है कि परिवार का कोई व्यक्ति अगर प्रॉब्लम में होगा तो पूरी फैमिली को सफर करना पड़ता है। तुम्हारा रोजमर्रा का काम या रूटीन डिस्टर्ब होगा, नहीं! तो फिर यह दोषारोपण करना कि बच्चों को हमारी फिक्र नहीं है यह सही होगा? मेरे हिसाब से नहीं, क्योंकि हमने उसे कभी यह बताया नहीं, जताया नहीं।
जिनके पेरेंट्स स्मार्ट नहीं होते अपने बच्चों को स्मार्ट बनाते हैं घर में जरूरत के वक्त उन्हें घर की जिम्मेदारी सौंपते हैं। उनकी पढ़ाई का नुकसान की भरपाई भी आने वाले दिनों में बच्चों को खुद ही करने देते हैं। वही बच्चे आगे चलकर सही मायने में स्मार्ट और संपूर्ण बनते हैं, आपकी सेवा करते हैं। परंतु आजकल
के हम पेरेंट्स तो सब कुछ बना बनाया पसरोते हैं अपने बच्चों को….