खुदा का अक्स
समंदर की तरह असंख्य प्यार की मोती समेटे…
ऊपर से सख्त और अंदर से मोम की तरह पिघलते,
कैसा सख्त हृदय है इनका… एकदम क्रंची…
जाने कितने आघात के दरारों के संग
होठों पर बस दुआ ही दुआ…
पूरे परिवार की समस्या का हल…
सुनी आंखों से सबके सपने पूरा करते…
अपने सपनों को सबके सपने के बोझ तले दबाते
हर घड़ी सबके लिए सुविधाएं जुटाते…।।
क्या कभी थकते नहीं?
इनकी कमर अकड़ती नहीं?
अपने सपनों को क्यों मरने से बचाते नहीं?
अपना हर घड़ी, हर पल, परिवार के नाम करते हुए…
एक कतरा अपने लिए क्यों बचाते नहीं?
सर्दी, गर्मी, बरसात से सब की रक्षा करते,
खुद मौसम की मार से क्यों घबराते नहीं?
इतने सारे समझौते करते हुए…
ये पत्थर के हो जाते हैं…
पर
फिर भी कोई इन्हें पूजता नहीं…
इनकी महानता को महान कहता नहीं…
ये हमेशा तिरस्कृत ही रह जाते हैं…
दुनियादारी की समझ भले कूट-कूट कर भरी हो इनमें…
परिवार को नहीं समझ पाने का दंश झेलते हैं ताउम्र….
ये पल-पल खर्च होते हैं,
तो खड़ी होती है घर की दीवारें..
दरवाजे पर खड़ी होती है गाड़ियां…
सज पाती हैं स्त्रियां…
बच्चे पढ़ जाते हैं मोटी-मोटी किताबें…
भर जाता है सब कुछ पर भरती नहीं इनकी जेबें…
रह जाती है खाली ही सदा…
कौन समझता है इन्हें?
मानो ये हों मंदिर में खड़ी मूरत…
सब आते हैं…सुनाते हैं अपना दुख-दर्द
पर वे अपना दर्द कह नहीं पाते…
फिर भी होठों पर मुस्कान लिए सदा मुस्काते हैं…
इन्हें हम पिता कहें या कहें परमपिता…
पिता… जो हर गम हो पीता…
पा – पा… जो चाहो, सो पाओ…
सूरज से पहले जग जाने वाले…
मुझे नहीं पता, मैं आपकी परी हूं या नहीं…
पर खुदा की रहमत कहूं या कहूं खुदा का अक्स…
हमेशा आप में ही पाया है…
Luv u papa allways