घटना उन दिनों की है जब दुराचारी रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया था और भगवान राम युद्ध को तत्पर हो उठे थे। भगवान श्रीराम की वानर सेना ने लंका का घेराव किया हुआ था। एक दिन रावण के दो दूत शुक और सारण वेश बदलकर गुप्तचरी करते हुए पकड़े गए। वानर सेना उन्हें रस्सियों से बांधकर भगवान के सामने प्रस्तुत किया। दोनों ने भगवान के समक्ष स्वीकार किया कि वे रावण के आदेश पर उनकी सेना की गुप्त जानकारी लेने आए थे। श्रीराम जो उचित समझें उन्हें दंड दे सकते हैं।
भगवान श्रीराम मुस्कराए और बोले- तुम लोग अपने स्वामी के आदेश से यहां आए हो और इसलिए व्यक्तिगत रूप से किसी दंड के अधिकारी नहीं हो। तुम लोग लौटकर रावण से कहना कि वह जिस छल और बल से सीता का अपहरण करके ले गया था उसका सही प्रत्युत्तर उसे युद्धभूमि में मिलने वाला है। इतना कहकर भगवान श्रीराम ने अपने सहचरों को निर्देश दिया कि शस्त्रहीन अवस्था में पकड़ा हुआ दूत वध के योग्य नहीं होता। इन दोनों को धर्माचरण के तहत मुक्त कर दो। भगवान का मर्यादामय आचरण देखकर दोनों राक्षसदूत उनके सामने नतमस्तक हो उठे।