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मैं एक लड़की थी बदनाम!
काट खाने को दौड़ता था मेरा नाम!!
मैं रो सकती थी अंधेरी रातों में….
जहर घुला था दुनिया की बातों में….
मैं रोती थी क्योंकि…
बुजदिल थी कायर थी….
दुनिया मेरी बदनामी का गुणगान करने में…
बन गई शायर थी….. !
वृक्ष होकर हताश, गिरने जा रहा था…
तभी वाहित मिट्टी का एक तेज झोंका, आ रहा था….
जो उसकी मासूमियत और भोलेपन की पहचान कर गया!!
उसकी पवित्रता का सम्मान कर गया!
वह जीने लगी हौसला के साथ…
क्योंकि जादू कर गई थी उसकी बात!!