हमेशा युवा दोषी नहीं…

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इंसान के अंदर ना ही ममत्व की थाह है और ना ही प्यास की सीमा रेखा! ये ममत्व और प्यास की महत्वकांक्षा ही आज  की युवा पीढ़ी को लिविंग रिलेशनशिप की तरफ अग्रसर करती है। युवा पीढ़ी को दोष देना और उस पर दोषारोपण करना यह सदियों से होता आया है, पर क्या हर बात के लिए अकेला युवा ही दोषी होता है, बिल्कुल नहीं।

आज के युवाओं की जड़ों  को माता-पिता प्यार से सींचते ही नहीं। इसलिए वो प्यार और दुलार के अथाह सागर से वंचित रह जाते हैं।

कामकाजी महिलाएं अपने ऑफिस के काम में बिजी रहती हैं तो घरेलू औरतें किटी पार्टी और फैशन में। वह खुद की फ्रीडम को लेकर इतनी सचेत रहती हैं घर की जिम्मेदारियां को बोझ समझती हैं।

स्वार्थ में लिप्त नारियां यह नहीं देख पाती कि उनके बच्चों को उनकी और उनके वक्त की जरूरत है। वह अपना अकेलापन कैसे दूर कर रहा है किस तरह से अपने मां-बाप से दूर जा रहा है।

किशोरावस्था में प्रवेश करते बच्चे बहुत सारी समस्या से घिरे होते हैं। उन्हें एक अदद साथी की जरूरत होती है। हार्मोनल चेंजिंग के साथ-साथ विपरीत लिंग के प्रति आकर्षित होना एक आम बात है।

ऐसे में उनका भटकाव सही- गलत से दूर उन्हें दूसरी ही दुनिया में ले जाता है जहां वो अपने लिए वक्त और परवाह खोजते हैं। स्वार्थ में लिप्त परवरिश एक किशोर को भी स्वार्थी बना देता है और वे मां-बाप, समाज को भूलकर विद्रोही स्वभाव के हो जाते हैं।

आधुनिकता से लिप्त माता-पिता की तरह बच्चे भी एक दूसरे की तरह नकल करने लगते हैं या अपने आसपास के माहौल से प्रेरित होकर आसानी से वह सब करते हैं जो अपने आसपास देखते हैं।

यूं कहें कि भीड़ में रहने की आदत हो जाती है हमारे समाज को। एक होड़ है भीड़ में बढ़ते जाने की। कोई रुक कर सही गलत सोचना नहीं चाहता, सब नकल करते जाते हैं एक-दूसरे की।

जो लोग हॉस्टल में रहते हैं या रह चुके हैं वह अगर अपने बेस्ट फ्रेंड को अपना रूममेट बनाते हैं तो उन्हें महसूस होता है कि वह अपने बेस्ट फ्रेंड को सही से समझ ही नहीं पाए थे, क्योंकि जब हम किसी से बाहर मिलते हैं पूरी तैयारी से मिलते हैं।

सुलझे बाल, महकती सांसे, सुलझे हुए कपड़े और सुलझे व्यक्तित्व के साथ। असली पहचान तो साथ रहने पर होती है ।ठीक इसी प्रकार लव मैरिज, लिविंग रिलेशनशिप वाले के लिए भी साथ रहना, जिंदगी बिताना शॉकिंग हो जा ता है।

हम सोचते हैं जिसे हम जानते हैं, सच तो यह होता है कि हम उन्हें जानते ही नहीं। एक कमरे में साथ-साथ रहना हमें एक-दूसरे से नया परिचय कराता है। आए दिन फ्रिज में लाशों का मिलना ये जताता है कि युवाओं के अंदर ममता की प्यास और उनकी परवरिश में हुई गलतियों का उदाहरण है।

माता-पिता को भी अपने बच्चों को समझने की जरूरत है। उन्हें भीड़ से अलग करने की जरूरत है। उन्हें इतना स्ट्रांग बनाने की जरूरत है कि वह झुंड में हो रही गलती को गलत कह सकें या गलत समझ सकें।

गलत और सही में फर्क करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। हर वह काम गलत होता है जो हमें अपने बड़ों से छुपाने की जरूरत होती है जिसे हम सबके सामने बेबाकी से बोल नहीं पाते वह गलत होता है। बस इतनी सी समझदारी आपको और आपके बच्चे के परवरिश के लिए जरूरी है।

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