एक लल्ला है हमारा…

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एक लल्ला है हमारा…
और हम सब उसकी यशोदा मैया!
उसे रोज नहलाते हैं, रूटीन से खाना खिलाते हैंं, सर्दी-गर्मी हर मौसम से सुरक्षा करते हैं, कभी कंबल ओढ़ाते हैं तो कभी कूलर…

उसे रोज पालने पर झूलाते हैं और लोरी (शाम का भजन) गाकर सुलाते हैं।

पर जब हमारा पेट जाना लल्ला हर घर माखन चुराएगा तो हमारी क्या स्थिति होगी? कभी सोचा है! शायद हम डिप्रेशन में चले जाएं, हमें लगेगा कि हमारा बच्चा दुनिया का सबसे खराब बच्चा है। हम झल्लाएंगे, अपने लल्ला पर हाथ भी उठा लेंगे, अपने घर का पूरा माहौल खराब कर देंगे पर कभी सोचा है- कान्हा की शरारतों के बारे में और अपने बच्चों की शरारत के बारे में, नहीं ना!

जब आपका बच्चा शरारत करे तो कान्हा की शरारत याद करके मुस्कुराइए। कान्हा की बाल लीला से जो शिक्षा मिली है उसे अपनी जिंदगी में उतार कर देखिए। हम अपने बच्चे में एक दोस्त पाएंगे यशोदा की तरह सजा भी देना जरूरी है उसकी गलतियों पर पर उसकी शरारत और गलतियों में अंतर करना सीखना होगा हमें।

अगर यह अंतर हम बखूबी कर पाएं तो अपने बच्चों के बचपन को इंजॉय करने में बहुत मजा आएगा। बस शरारत और गलती के इस बारिक फर्क को समझने की जरूरत है।

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