पेंसिल का हेलमेट
स्टोर में करीने से सजी पेन, पेंसिल के बीच एक पेंसिल बहुत देर से कुलांचे भर रही थी। कभी यहां, कभी वहां, वह जल्दी से जल्दी हर कोना देख लेना चाहती थी। जितनी उत्साह से वह घूम रही थी उसके चेहरे की खुशी उदासी में बदलती जा रही थी। वह जब थक-हार कर अपनी जगह लौटी तो उसकी नींद उड़ चुकी थी। वह बहुत परेशान लग रही थी। उसकी पड़ोसी हरी पेंसिल ने पूछा- क्या बात है बहन, तुम तो बहुत खुश थी अब इतनी परेशान क्यों हो?
क्या किसी से कुछ कहासुनी हो गई?
लाल पेंसिल छूटते ही बोली- अरे नहीं, तुम्हें पता भी है हमारे साथ कितना बड़ा अन्याय हुआ है? या तो तुम लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं गया या फिर जाने किस डर से तुम लोग इतने बरसों से चुप हो। मुझे तो पेंसिल होने पर शर्म आती है। हरी पेंसिल परेशान हो गई, बताओ तो हुआ क्या, लगता है कोई गंभीर समस्या है। लाल पेंसिल बोली- देखो, अपनी चारों तरफ ध्यान से देखो! जितने भी पेन हैं सबने अपनी सुरक्षा के लिए हेलमेट पहन रखा है और यह आधुनिक पेंसिल, इसकी तरफ भी देखो! यह तो हमारी बिरादरी की है ना! उसे भी उसकी सुरक्षा के लिए हेलमेट पहनाया गया है तो हमें क्यों नहीं? यह मानव बहुत चालाक है, हमें ओछा और नीच समझता है, इतनी सारी चीजों का निर्माण कर लिया। हमारी ही बिरादरी में कितना नयापन ला दिया और हमारे लिए एक छोटी सी टोपी नहीं बना पाया। यह भेदभाव आखिर हमारे साथ ही क्यों है? हरी पेंसिल भी गहरी सोच में पड़ गई, हां! तुम बात तो सही कह रही हो।
लाल पेंसिल फिर बोली- ऐसा करते हैं हमारी बिरादरी का सबसे पुराना और मुखिया पेंसिल से मिलकर इसका हल पूछते हैं। अब दोनों पेंसिल साथ-साथ मुखिया के पास पहुंचीं और अपनी उधेड़बुन बताया कि आप इतने बरसों से आखिर चुप क्यों हैं? सुनते ही मुखिया पेंसिल मुस्काई और बोली- मेरे बच्चों! पहली बात यह है कि , आधुनिक पेंसिल हमारी बिरादरी की नहीं है बल्कि हमारे बच्चे हैं, उनकी तरक्की से जलने और चिढ़ने की बजाय हमें खुश होना चाहिए, उनकी तरक्की को हमारी खुद की तरक्की समझना चाहिए। और यही सच भी है।
और दूसरी बात यह सुरक्षा जो इन्हें दी गई है उसकी आवश्यकता हमें है ही नहीं। वह हेलमेट अगर हम पहने तो वह हमारा भार बढ़ाएगा। कैसे सुनो! बॉल पेन के प्वॉइंट में एक छोटा सा बॉल होता है, जो अगर गलती से निकल जाए तो वह महत्वहीन है। क्योंकि पूरे पेन का अस्तित्व छोटे से बॉल से ही संचालित होता है, वह पेपर पर घूम-घूम कर शब्द बनाता है।
और नींब पेन इसलिए हेलमेट पहनता है कि वह अगर गिरकर उसकी नींब टूट गई तो उस में इतराने वाला इंक किसी काम का नहीं रह जाता। उसके सुंदर शरीर का भी कोई मोल नहीं रह जाता।
परंतु हम हैं सबसे ताकतवर घिसते जाते हैं और लिखते जाते हैं, आखिर तक। जब तक शरीर होता है लिखते जाते हैं, मर्जी जितनी बार टूटे फिर से प्वॉइंट निकाल लो और लिखते रहो आखिर तक जब तक ना हो जाए हम पूरा खत्म! फिर बताओ क्या करोगे इस हेलमेट का, अब लज्जा नहीं गर्व करो!
लाल और हरी पेंसिल की सारी दुविधा खत्म हो गई थी।
वह खुश थी और गौरवान्वित भी!
इसलिए बच्चों कुदरत या मानव की बनाई कोई भी चीज हो सबकी अपनी अलग-अलग पहचान है, हमें खुद को दूसरे से तुलना करके दुखी नहीं होना चाहिए, बल्कि अपनी प्रतिभा को पहचान कर उस पर गौरवान्वित होना चाहिए और और अपनी प्रतिभा को निखारते रहना चाहिए।