एक चेहरा ऐसा भी
मेरे पति स्वभाव से ही सामाजिक हैं। समाज सेवा करना उन्हें बहुत पसंद है। शुरुआती दिनों में वह हमारी परिवारिक जिम्मेदारी से ज्यादा तवज्जो समाज सेवा को देते थे। जिसकी वजह से मैं हमेशा दुखी रहती थी पर वक्त के साथ धीरे-धीरे वह बदलते गए, परिवार की प्राथमिकता उनको समझ में आने लगी।
पर इंसान खुद को कितना भी बदल ले अपना मौलिक गुण नहीं छोड़ पाता है। कुछ महीनों पहले की बात है। मेरे पति अर्णव का जन्मदिन था। हम जन्मदिन मनाने एक मॉल में गए वहां बेटे ने नॉनवेज खाने की फरमाइश की तो हमने करीम्स से कुछ खाने का आर्डर किया। मैं आदतन सेल्फी और फोटोग्राफी में बिजी थी इसलिए पतिदेव इधर-उधर की बातें करते रहे। जैसे ही हम फूडकोर्ट से बाहर आने लगे उन्होंने मेरा हाथ पकड़ मुझे अपनी तरफ खींच लिया। मैंने आईब्रो ऊपर करते हुए इशारे से पूछा- क्या हुआ?, वह लगभग फुसफुसाते हुए बोले- उस टेबल की तरफ देखो!
मैंने कहा– हां क्या हुआ? आप उसे जानते हो, वह बोले अरे! नहीं,
उनके बच्चे के साथ जो नैनी है, उसको देखो।
मैंने देखा एक कपल अलग टेबल पर बैठ थे और उन्होंने बहुत सारा खाना ऑर्डर किया था साथ ही उन्होंने अपनी बेवी के लिए भी कुछ आर्डर किया था।
जिसे नैनी खिलाने की कोशिश कर रही थी पर नैनी के लिए वहां ना कोई प्लेट था और ना ही खाना। कपल की टेबल पर खाने की इतनी वेरायटी थी कि जाहिर था, वह दोनों उतना खाना नहीं खा पाते। काश! कि उन्हें इस बात का भान होता और अपने आर्डर के खाने का थोड़ा हिस्सा नैनी को भी दे देते। दुनिया में कैसे-कैसे इंसान हैं, जो इंसान को इंसान नहीं समझते, जिसे अपने साथ अपने प्रियजनों के ख्याल रखने वाले की लालसा और भूख का भूले से भी ख्याल नहीं आता।
खैर! हम वहां से चले आए। आइसक्रीम कॉर्नर की तरफ वहां हम सब आइसक्रीम खा रहे थे। मैं अपने पति के अंदर मचे तूफान और उथल-पुथल से अनजान थी।
तभी वहां से एक सफाई कर्मचारी गुजरा। अर्णव ने उसे आवाज लगाई। मुझे लगा शायद वो जानते होंगे क्योंकि उनकी जान-पहचान ऊपर से नीचे तबके के लोगों तक से होती है। वह सबसे ऐसे बात करते हैं मानो जन्मों-जन्मों की पहचान हो और जरूरतमंदों को चुपके से कब छोटी रकम या टीप (बख्शीश) थमा देते हैं मैं जान भी नहीं पाती। मैं कितनी बार अनजान बनने का ढोंग भी करती हूं क्योंकि उनकी इस आदत पर मुझे भी फक्र होता है।
कितनी बार मैंने देखा है बुजुर्गों को भी अर्णव के पांव छूते हुए। पहले मुझे यह बहुत अटपटा लगता था। पर अब जान गई हूं किसी बहुत बड़े मुसीबत से अर्णव ने उसे बचाया होगा। कितनी बार तो दूर से आता ऑटो खुद ही रुक जाता।
सर, चलिए ना! कहां छोड़ दूं, कहां जाना है? कितनी बार हम बैठ भी जाते पर वो ऑटो ड्राइवर हमसे किराया नहीं लेना चाहता।
अर्णव जबरदस्ती उसकी जेब में रुपए ठूंसते।
थोड़ी देर सफाई कर्मचारी से बात करने के बाद अर्णव वापस आए और मुझसे बोले- मैं अपने जन्मदिन पर कुछ दान करना चाहता हूं। मतलब यह था कि वह मेरी सहमति चाहते थे। मैंने पूछा क्या? उन्होंने सफाई कर्मचारी की तरफ इशारा करते हुए कहा उसे खाना खिलाना चाहता हूं। मैंने कहा- देख लो, वह खाना चाहेगा तो खिला दो।
फिर अर्णव ने उसको नाम से संबोधित करके पुकारा। वह लगभग भागता हुआ सा आया। जी सर…
अर्णव बोले- अपनी पसंद की आइसक्रीम ले लो। वह झेंप रहा था फिर अर्णव ने खुद ही एक आइसक्रीम लेकर उसे दिया।
हम फिर करीम्स की तरफ बढ़े और सफाई कर्मचारी के लिए खाना ऑर्डर किया।
मैं समझ रही थी की अर्णव की यह टीस उस नैनी के लिए है। अर्णव को इंसानियत का वह चेहरा अंदर ही अंदर तोड़ रहा है, मानवता का यह रूप उनके अंदर के मानव को झकझोर रहा है। वो खुद को दोषी मान रहे हैं और उस पीड़ा से मुक्त होने के लिए किसी गरीब को खाना खिला रहे हैं। अर्णव उस कपल की बेशर्मी से यह उम्मीद लगाए थे कि शायद उनकी इंसानियत जाग जाए और नैनी के हिस्से भी कुछ खाना आ जाए।