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वह क्षण, वह पल जब मैं

हताशा के हिमालय पर खड़ा था…

काश की मां!

तुम एक बार बाहों में भर लेती,

छुपा लेती मुझे खुद में कहीं…

उस मासूम की तरह,

जब मेरी गलतियां,

तेरे चेहरे पर मुस्कान ले आती थी..

गोद में बिठाकर मुझे पुचकारती थी…

कहकर कोई काल्पनीक कहानी।

मुझे समझाती थी

तो आज तुम्हारे हाथों से छूटता नहीं…

गले लगा कर रो लेता अगर……..
तुमसे अपने दर्द कह लेता अगर…

यह कदम कभी उठाता नहीं!

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