भोली-अल्हड़ मस्तानी सी वह
एक लड़की अल्हड़ सी, अदाएं भी मासूम…
मंडराती है भंवरे सी कलियों को चूम-चूम
नहीं जानती है कली वह ताजातरीन
नहीं समझती वह युवा है और हसीन
ललचाई घूरती नजरों से अनजानी है
बहुत वाचाल और समझदारों की नानी है
पर देखा नहीं है दुनिया का रंग
कर देगा उसकी मस्ती को भंग
उसकी अदाएं हैं अनमोल बड़ी
बूढ़े की आंखें भी है उस पर जड़ी
कौन सी घड़ी थी जाने वह
छिन गया जब उसका सब
चट्टान पिघलाकर बहाया
शायद रोया ना हो कभी इतना नभ
विक्षिप्त हो गई पत्थर बन गई
पर बची हैं सांसें
नहीं चढ़ता है कोई भी रंग
चाहे सारी दुनिया नाचे
फर्क है इतना आज
जानती है दुनिया के रंग को
गमगीन है उसका जहां और खुशियों के संग को