मत आओ करीब मेरे

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जी करता है…

अंतरात्मा के कठघरे में कर दूं खड़ा तुझे

 पूछूं अनेक सवाल और दिखाऊं

जख्म जो तूने दिए मुझे

 कितने तार-तार हैं हम और आत्मा हमारी

कितने बेबस आंसू आंखों से ना छलके

 उसे डर है अट्टहास की तुम्हारी

कितने सपने मेरे टूट गए तेरी लापरवाही से

 मेरे कितने नौका डुबोए तूने

 पूछो मुझ माझी से

 एक बार बस पांव डालो मेरे भावनाओं के समंदर में

कितने हैं मेरे अरमानों के लाश दफन इसके अंदर में

फिर भी अगर दर्द को मेरे समझ ना पाओ

 तो काश! कह पाती कि मेरे करीब मत आओ

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