प्रेम का इंद्रजाल
प्रिय..... कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा है मैंने.. समझाती हूं भूल...
प्रिय..... कितनी बार चाहा कि तुम्हें, ना चाहूं। पर, कैसे करूं जाहिर कि कितना चाहा है मैंने.. समझाती हूं भूल...
छह साल की देलाक्षी दक्षा की परिकल्पना एक रेस्तरां में एक टेबल को घेरे हुए चार कुर्सियां बहुत उदास थीं।...