जब खिलखिला उठीं उदास कुर्सियां

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छह साल की देलाक्षी दक्षा की परिकल्पना

एक रेस्तरां में एक टेबल को घेरे हुए चार कुर्सियां बहुत उदास थीं। ये कुर्सियां थोड़े दिन पहले ही तो आई थीं। पुरानी कुर्सी को बाहर शिफ्ट कर दिया गया था। पुरानी कुर्सी के जाने से टेबल उदास थी और नई कुर्सी से दोस्ती करने की खुशी भी थी। पर जाने क्यों यह नई कुर्सियां ना तो बात करती ना ही कभी गलती से मुस्काती। और टेबल उनसे दोस्ती करने की तमाम कोशिश कर रहा था।

जब कुर्सियां धीरे-धीरे उनसे बात करने लगीं तो कुर्सी ने बताना शुरू किया- वह किसी घर के डाइनिंग टेबल की कुर्सियां हैं। वह रेस्टोरेंट में आकर में आकर बहुत दुखी हैं। वे चारों वहां हमेशा ठहाके लगाती थी, एक दूसरे को छेड़ना और एक दूसरे को चिढ़ाना उनकी जिंदगी का हिस्सा था। वह वहां बहुत खुश थीं मुश्किल से उन कुर्सियों का यूज़ होता था क्योंकि उस घर के लोग बहुत बिजी थे।

एक-डेढ़ घंटे के लिए ही उन कुर्सियों पर बैठते थे। सुबह घर से लोग जल्दी-जल्दी 15-20 मिनट में नाश्ता निपटाते और भागते। वहां के साहब और मेम ऑफिस जाते थे और बच्चे स्कूल। सब जल्दी में रहते थे फिर रात के खाने के वक्त सब आधे या एक घंटे के लिए उस पर बैठते थे शाम का नाश्ता सब लिविंग रूम में टीवी के समाने करते थे, पर यहां तो एक आदमी उठता नहीं है कि दूसरा बैठ जाता है।

हमारा तो रोम-रोम दुखता है। ना बोलने का मन होता है और ना ही हंसने का। जिंदगी बोझ सी लगने लगी है।

टेबल ने मुस्काते हुए कहा- बस इतनी सी बात। अरे! दोस्त, अभी दिखाता हूं एक जादू! उस मोटे को देखो। सारी कुर्सियों ने उस मोटे आदमी की तरफ देखा और सब ने अपनी आंखें भींच ली। थोड़ी देर बाद जैसे ही वह मोटा आदमी कुर्सी पर बैठने वाला था की टेबल ने कुर्सी खींच दी।

वह मोटा आदमी पीछे मुड़ा और कुर्सी अपनी तरफ खींची, पर यह क्या? कुर्सी फिर पीछे खिसक गई।

वह आदमी घबरा गया उसने फिर भी डरते हुए फिर से कुर्सी खींची, पर कुर्सी फिर पीछे खिसक गई। अब वह आदमी बुरी तरह डर गया और भूत-भूत चिल्लाता हुआ वहां से भाग खड़ा हुआ। उसके भागते ही कुर्सी के साथ-साथ टेबल के ठहाके से पूरा रेस्टोरेंट गूंज उठा।

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