बूंद
समुद्र में पलने वाली
एक छोटी-सी बूंद की खता
लगाकर दिल विशाल आसमां से लेती है मजा
दौड़ती, मचलती, चलती जाती है अनंत दूरियां
मिलाती नजरें, पास न पहुंच पाने की मजबूरियां
हैं छोटी मगर
इतराती, इठलाती
तोड़ती है पत्थर
और खिलखिलाती है
मचलती हुई
दोस्तों संग डुबोती नौका
मुस्काती है
आकर जोश में पहाड़ से टकराती है
बघारती हुई शान
नजरें उठा देखती आसमान
गुनगुनाती है प्रफुल्लित हो
आज बढ़ा है मेरा मान
इंतजार-इंतजार खत्म हो जाता
आकर आसमां की तपिश उसे संग अपने ले जाता
खो अपना अस्तित्व, आसमां ही जाती है बन
समझती सच्चाई, ठोस बनती
खोकर अपना तन-मन
सिसकती, गरजती, बंध गई है,
ना मचलना, ना इठलाना
जलती पल-पल देख आसमां का दिल लगाना
अपनी ही सखियों से नजरें मिलाना
आसमां का सच सखियां पहचान हो पातीं
विशालता की विकृत छवि काश वो समझ पाती
होती हताश और निराश
है टकराती और गरजती
बारंबार टकराकर बिखरती और बरसती
लुटाकर अपना सबकुछ
पुनः आ मिलती है
बन जाती है एक छोटी सी बूंद
ये चक्र चलता है और चलता ही जाता है
यही तो जीवन और मरण कहलाता है।।