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मैं बोकारो से जमशेदपुर जा रहा था। मैं खुश था कार ड्राइव करते हुए अपने पसंद का गाना सुन रहा था। दो दिन बाद ही जमशेदपुर में मेरी मौसेरी बहन की शादी थी। मेरी बहनों के साथ अच्छी दोस्ती थी, बहुत दिनों से उनसे मिला भी नहीं था इसलिए शादी की खुशी के साथ-साथ उनसे मिलने की भी खुशी थी। पिछले कुछ दिनों से अपने कामों में ऐसा उलझा था कि कहीं आने-जाने की फुर्सत ना थी। एक ब्रेक और जिम्मेदारियों से मुक्त होना चाह रहा था और इस शादी में मुझे वह मौका दिया था। यह शादी-विवाह का समारोह भी हम व्यस्त आदमी की जिंदगी में राहत की तरह आता है। कुछ वक्त अपने सगे संबंधियों के साथ बिताकर कुछ पल खुशियों के अपने साथ समेट ले जाते हैं हम, पर मैं यह नहीं जानता था की यह वक्त मेरी जिंदगी को एक नया अनुभव देने वाला है। जब मैं अपनी मौसी के घर पहुंचा तो बहुत से मेहमान आ चुके थे। हल्दी, मेहंदी जैसे रस्म शुरू हो गए थे। मैं वहां पहुंच कर थोड़ा थकान महसूस कर रहा था इसलिए सीधे बाथरूम की तरफ भागा। शादी का घर खचाखच भरा था खुद की थकान मिटाने के लिए नहाने का ऑप्शन सबसे बेस्ट लगा मुझे। जब नहा कर आया मेरी छोटी सिस्टर रानू के कहने पर मैं डायनिंग चेयर पर बैठ गया। मेरे बैठते ही वो खाना ले आई वही लिविंग रूम में सोफे पर कुछ मेहमान बैठे थे तो कुछ मेहमान नीचे गद्दी पर बैठे थे। एक छोटे से एरिया में सोफा दीवारों से सटाकर रखा गया था बीच में सेंट्रल टेबल की जगह पर दो गद्दे बिछे थे और दो गद्दे साइड में। दूसरे कोने में डायनिंग सेट कर दिया गया था।

 

अचानक मेरी नजर एक खूबसूरत सी लड़की पर पड़ी। मैंने ध्यान से देखा वह गुलाबी सूट पहनी थी, सूट पर कहीं-कहीं धागे की कढ़ाई से प्रिंट की तरह फूल बना हुआ था। कॉलर के साथ स्वीट हार्ट नेक लाइन उस पर बहुत फब रहा था। ऐसा लग रहा था मानो कोई गुलाबी परी वहां खड़ी हो। उसके कंधे तक छोटे-छोटे खुले बाल उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। मेकअप के नाम पर उसने सिर्फ मुस्कान चिपका रखी थी अपने होठों पर। उसका यह रूप मेरे मन में अंदर तक उतरता चला गया। मैं अभी उसे भरपूर निगाहों से देख ही रहा था कि रानू आ गई और मुझसे पूछ बैठी भैया कुछ और ले आऊं। मैं उसके सवालों का क्या जवाब देता मैं तो खुद ही सवालों में उलझा बैठा था। मैंने पूछा वह लड़की कौन है गुलाबी सूट में। रानू मुस्कुराते हुए बोली मेरी कजन है छोटे अंकल की बेटी, पर ज्यादा ध्यान मत दो उसका इंगेजमेंट हो गया है। उसके शब्द ने मानो मेरे बाबरे मन को जोर से धक्का दे दिया और मैं गिरते-गिरते बचा? फिर थोड़ा संयमित होकर बोला मजाक कर रही हो। वह मुस्कुराते हुए वहां से चली गई। मेरे मन मस्तिक में उथल-पुथल मच गई फिर मन ने मस्तिष्क को समझाया अभी शादी नहीं हुई है… ऑप्शन है। घबरा मत!

धीरे-धीरे मेहमानों की संख्या बढ़ती जा रही थी। इक्का दुक्का बचे गेस्ट भी आ गए थे। मेरी मौसी आने वाले मेहमानों से बधाई कबूल करते हुए कहती यह मानवी है मेरे देवर की बेटी। इसका भी इंगेजमेंट हो गया है। ऐसा लग रहा था कि मेरी प्यारी मौसी आज मेरी दुश्मन बन गई है। उनकी बातें मुझे किसी चुभते हुए तीर सी-प्रतीत हो रही थीं। अचानक शाम को संगीत के बाद सबने निर्णय किया कि मानवी के इंगेजमेंट का वीडियो देखेंगे टीवी पर।

 

कैमरा से जोड़कर इंगेजमेंट का वीडियो चलाया गया। वह उठकर वहां से चली गई। पर रानू ने चाय पकड़ा कर कहा- अहान भैया को दे आओ। मैं डाइनिंग चेयर पर ही बैठा था वह चाय लेकर मेरे पास आई पर उसकी नजर टीवी स्क्रीन पर टिकी थी। चेहरे पर एक चमक, होठों पर लज्जा और मुस्कान का मिश्रित भाव था। मैं उसे ही देख रहा था वह पास से और भी खूबसूरत लग रही थी। मैंने कहा- वह तुम हो? तुम्हारा इंगेजमेंट हो रहा है?  वह कुछ नहीं बोली- उसके होठों की मुस्कान और भी फैल गई और गालों की लालिमा भी गहरी हो गई।

वह बिना कुछ बोले वहां से चली गई। अगले दिन शादी थी। सुबह से ही गहमागहमी हो रही थी। मेरे पेरेंट्स मुझ पर शादी का दबाव बना रहे थे पर कोई लड़की मुझे पसंद नहीं आ रही थी और यह लड़की थी जिसे देखते ही दिल हार जाने को कहता था, पर मेरी किस्मत…

इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं था मैं। अपनी दीदी को फोन कर बुला लिया। तुम आ जाओ मुझे एक लड़की पसंद आई है। शाम को दीदी के साथ मम्मी भी आ गई और रानू भी मेरी मदद कर रही थी।

मानवी की मम्मी की चूड़ियां सफर के दौरान टूट गई थीं जो वह शादी में साड़ी के साथ पहनने वाली थीं। अब उनकी मैचिंग चूड़ियां खरीदने की जिम्मेदारी मानवी पर थी, पर यह शहर उसके लिए नया था। रानू ने मानवी से कहा तुम अहान भैया के साथ चली जाओ मुझे बहुत काम है, वह मेरे साथ जाने के लिए तैयार हो गई। यूं तो चूड़ियों की दुकान पास ही थी पर मैं बहुत खुश था। सीढ़ियां उतरते वक्त मेरे मन में ख्याल आया पैदल ही जाता हूं ज्यादा समय मिलेगा साथ रहने का, मैंने मानवी से कहा पास ही है पैदल चलोगी उसने हामी भर दी। मेरा दिल बल्लियां उछलने लगा, मैं रास्ते में उससे पूछता रहा

 

क्या पढ़ती हो किन-किन चीजों में रूचि है और अपने बारे में भी बताता रहा। मैं कंस्ट्रक्शन का काम करता हूं पैसा तो बहुत है इसमें पर समय नहीं होता मेरे पास, मैं उसे बता भी रहा था और उसकी राय भी जानना चाह रहा था, पर वह कम से कम शब्दों में मेरे सवालों का जवाब दे रही थी। उसने चूड़ियां खरीद लीं कोई कंफ्यूजन नहीं था उसे। उसकी यह बात मेरे दिल को और भी लुभा रही थी। मैंने कहा बहुत स्मार्ट हो तुम।

लड़कियां बहुत वक्त लगाती है तुमने तुरंत डिसाइड कर लिया। वह बस मुस्काई- फिर मैंने कहा कुछ और ले लो अपने लिए भी, शायद जरूरत हो तुम्हें, पर उसने बिना देरी किए कहा नहीं मेरे पास है सब है। उसकी आंखों में मैं आम लड़कियों की तरह सौंदर्य प्रसाधन के प्रति जो लालसा या लालच होता है। वह देखना चाह रहा था। पर उसकी आंखों में ऐसा कुछ भी नहीं था जो मुझे उसके आकर्षण में और भी बांध रहा था। लड़कियां शॉपिंग करने जाएं तो उसका एक नया रुप दिखता है वही रूप में उसमें देखना चाह रहा था पर मुझे निराशा ही हाथ लगी।

मैंने रास्ते में उसे कहा तुम आम लड़कियों से अलग हो, पर मन की बात कह नहीं पाया। ना तो वह खुल रही थी ना ही मुझे खुलने दे रही थी। एक अजीब सा बैलेंस बना रखा था उसने।

बार-बार चाह कर भी अपने मन की बात उससे कह नहीं पा रहा था। दुल्हन को मेकअप के लिए पार्लर जाना था इसलिए मेरी कार में दुल्हन के साथ रानू और मानवी दोनों आ बैठे। मैं चाह रहा था कि मानवी आगे की सीट पर मेरे साथ बैठे। मैंने रानू से कहा तुम दुल्हन की ड्रेस और भी सामान लेकर पीछे बैठ जाओ पर मानवी बोली मैं दुल्हन का सारा सामान संभाल लूंगी रानू तुम आगे बैठ जाओ। मैं और रानू एक दूसरे को देखने लगे। रानू आगे की सीट पर आ बैठी।

जब तीनों लड़कियां तैयार होकर निकली मेरी आंखें चौंधियां गईं। मैंने दुल्हन के साथ रानू की भी तारीफ की और आगे कहा ऑरेंज ड्रेस वाली  लड़की पहचान में नहीं आ रही है, बहुत सुंदर लग रही है। रानू और डॉली जोर-जोर से हंस पड़ी, पर मानवी पुरानी मुस्कान के साथ चुपचाप पीछे बैठ गई। दीदी, मम्मी सबको मानवी पसंद आ गई थी। मेरी दीदी ने भी बातों-बातों में उससे बहुत सारे सवाल पूछे, बहाने-बहाने से छोटी-छोटी परीक्षाएं भी ले ली। मानवी हर तरह से संस्कारी और सुलझी हुई लड़की साबित हो रही थी। वरमाला के बाद मेरी दीदी उसके साथ बैठी थी वहीं कुर्सी पर, मैं भी था। दीदी बार-बार मुझे इशारा कर रही थी, कह दे मन की बात! पर मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। इतने लोगों के बीच यह ठीक नहीं लग रहा था मुझे। पता नहीं मानवी प्रतिक्रिया क्या हो?

दो दिन पहले ही इसका इंगेजमेंट भी हुआ है, ऐसी तमाम बातें मेरा रास्ता रोक रही थी। मैं हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था और दीदी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।  रानू और मानवी हमउम्र थी इसलिए दोनों खुलकर बातें करती थीं, जैसे दोनों बहन ही नहीं दोस्त भी हों। रानू की किसी बात पर मानवी खिलखिला कर हंस पड़ी। मुझे तो उसकी हंसी बहुत प्यारी लगी पर दीदी का गुस्सा बेचारी मानवीय पर निकल गया। दीदी ने जोर से डांट दिया उसे। मानवी के चेहरे का रंग उतर गया वह वहां से उठकर जाने लगी। मैंने रानू को इशारा किया- रानू ने उसे रोकना चाहा पर मानवी बोली सुबह हमारी ट्रेन है रातभर जागकर शादी देखूंगी तो शायद बीमार पड़ जाऊं इसलिए ऊपर जाकर थोड़ा आराम कर लेती हूं।

उसकी इन बातों ने मानो वक्त की रफ्तार तेज कर दी। मेरे पास अपने दिल की बात कह देने के लिए बिल्कुल समय नहीं है मैं मानवी के पीछे भागा और सीढ़ी चढ़ती मानवी के साथ ही सीढ़ियां चढ़ने लगा। पर बोल मेरी जुबान से निकल नहीं रहे थे। वह बोली- आप कहां जा रहे हो? मैंने कहा प्यास लगी है- यह कैसा बेहूदा जवाब था कि पानी पीने ऊपर जा रहा हूं। वह एक कमरे में चली गई और दूसरे कमरे में मैं। बार-बार सोच रहा था उसके पास कोई नहीं है हम दोनों अकेले हैं एक बार उससे जाकर मन की बात कह दूं। एक बार हिम्मत करके मैं गया पर कमरे के दरवाजे से वापस आ गया।

सुबह दुल्हन की विदाई के साथ ही वह भी जाने लगी। विदाई का यह गमगीन माहौल मेरे लिए महागमगीन हो चला था। मैं बहुत गुस्सा था खुद से भी और मानवी से भी। पर किस अधिकार से गुस्सा जताता। वह स्टेशन के लिए निकले उससे पहले ही मैं कार पर सवार होकर फुर्र हो गया। मेरी हरकतें उसे शायद अजीब लग रही थी। वह दूर से मुझे गौर से देख रही थी। मैं गुस्से से लाल-पीला हुआ जा रहा था। जब मैं वापस आया वह जा चुकी थी। हमेशा-हमेशा के लिए मेरी जिंदगी से दूर, मैं बहुत निराश हो गया पर मौसी और रानू ने समझाया। एक बार बात करके देखते हैं। दूसरे दिन रानू ने फोन किया, हेलो! मानवी, ठीक से पहुंच गई, फिर रानू ने कहा- तुम्हें अहान भैया ने रात में जो कहा उसके बारे में तुमने क्या सोचा? मानवी बोली-  अहान ने तो कुछ नहीं कहा। तुम क्या बोल रही हो?

रानू सीधे मुद्दे पर आ गई- वह तुमको पसंद करता है यह बात उसने तुझे नहीं बताई? मानवी बोली- नहीं तो! मुझे लगा वह आम लड़कों की तरह फ्लर्ट कर रहा है मुझसे। लड़कों की तो आदत होती है। लड़की देखी नहीं कि फ्लर्ट शुरू। रानू बोली- नहीं मानवी वह सच में तुझे बहुत पसंद करता है। तुम उसे पसंद करती हो?

मानवी बोली- नहीं! मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है। रानू बोली कोई नहीं चाची से बात कराओ। मैंने यह तक कहलवाया मैं एक भी पैसा दहेज नहीं लूंगा शादी के सारे खर्चे उठाने के लिए तैयार हूं। रानू बोली- उसकी मम्मी और दीदी भी बहुत अच्छी है, कोई तकलीफ नहीं होगी चाची। पर ना तो मानवी मानी और ना ही उसकी मम्मी।

मेरे सपने के घरौंदे को सबने मिलकर तोड़ दिया। शुरुआत मैंने ही की थी, काश! कि अपने दिल की बात एक बार हिम्मत करके कह देता और सामने से मानवी के जवाब भी सुन लेता। यह टीस आज भी दिल में कहीं दबी है मेरे।

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