हाय-हाय रे मेरी चाहत
लड़की की शादी तय होते ही वह ख्वाबों में खो जाती है। शादी अरेंज मैरिज हो या लव मैरिज इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। बहुत सारे परिपक्व लोग इस बात पर हंसते हैं कि लड़कियां पर्दे और फिल्मी दुनिया को हकीकत समझकर खुद को ठगती है। पर वो ये नहीं जानते कि यही ख्वाब उसकी कदमों में इतनी ताकत भरते हैं कि वह अपने प्रियजनों को छोड़कर पराए को अपना बना पाती है। पति के साथ-साथ सास-ससुर, देवर-ननद ससुराल का घर-आंगन भी उसके ख्वाब का हिस्सा होते हैं, पर हां! वह ठगी जाती है, जब हकीकत में उसके ख्वाबों के कुछ ही रंग पूरे होते हैं तो फिर धीरे-धीरे वह अपने ख्वाबों के रंग को धूमिल होता देख कभी टूटती है, कभी बिखरती है, कभी संभालती है और कभी फिर से उसमें रंग भरने की कोशिश करती है। उसमें उसका पति कभी उसके साथ होता है तो कभी नहीं। फिर भी वो अपनी कोशिश जारी रखती है।
लड़की से औरत बनने का सफर सारी स्वतंत्रताओं का छिन जाना, सारे ख्वाबों का धूमिल पड़ जाना, एक नए संघर्ष के लिए नए परिवेश के लिए खुद को तैयार करना, अनजानों को अपना बनाकर सबके प्रति कर्तव्य का निर्वाह करना होता है।
कभी किसी दिन अगर ऐसा हो जाए, कोई शक्ति धरती पर आए, आकर सारी स्त्रियों को बंद कर दे एक कमरे में और पूछे तुम क्या थी जब लड़की थी, क्या बनना चाहती थी यकीन मानो 80 फीसदी घर टूट जाएगा उसी दिन।