पुरुष तेरी आंखों में क्या है?
ये मर्यादित पुरुष जो स्त्रियों की मर्यादा तय करते हैं। बड़ी आसानी से किसी भी स्त्री के अंग-प्रत्यंग पर दोस्तों के साथ बात करते हैं और तो और अपनी पत्नी के सामने भी बेहिचक इस तरह की बातें करते हैं। पत्नियां चुपचाप सुनती रहती हैं पर अगर हमारे समाज की स्त्रियां इस तरह की बातें करने लगे अपने पति से तो सोचो क्या होगा? अगर स्त्रियां राह चलते पुरुष को यत्र-तत्र छूने लगे भीड़ में तो क्या होगा? वैसी स्त्री को आप किस नाम से संबोधित करेंगे? पर यह मर्यादा, यह संबोधन पुरुष के लिए क्यों नहीं है?
इसका बस सीधा और सरल उत्तर है औरतों की दुश्मन होती है औरतें। और हमारा समाज पुरुष प्रधान है, आप कभी भी किसी पति को किसी दूसरे पति की बुराई करते नहीं सुनेंगे। वह पूरा नहीं कमाता, परिवार को ढंग से खिला नहीं पाता, बच्चों की पढ़ाई अच्छे स्कूल में नहीं करवाता, पत्नी को घर में कैद करके रखता है, प्रतिभाशाली बीवी से घर के काम करवाता है। जैसे तमाम विषय हमारे समाज में चर्चा के विषय नहीं हैं।
हमारे समाज में गहन अध्ययन का विषय है ‘स्त्री’ बेचारी अकेली औरत, बन-संवर के रहने वाली औरतें, बिंदास औरतें, विधवा औरत, तलाकशुदा औरत वगैरह-वगैरह।
जहां 5 दोस्त मिलते हैं उनका फेवरेट टॉपिक होता है किसी कलिग के बारे में, सोसाइटी के किसी औरत के बारे में, आगे बढ़ती औरतों के बारे में, या पर्दे पर नाचती-गाती औरतें के बारे में। कभी कोई भी भीड़ किसी सक्सेस औरतों की तारीफ करते नहीं मिलेगी। अगर औरतें पराए मर्द की बात करें या किसी पुरुष को छेड़े यहां तक कि अगर सोचे भी तो पाप लगता है औरतों को।
पर पुरुष के जेहन में हर पल खड़ी रहती है पराई औरत, उसके हाव-भाव उसकी बोलचाल, उसका शरीर। उसके शरीर की ऊंचाई-गहराई और भी ना जाने का क्या-क्या। ये खूब मिर्च-मसाला लगाकर बात करते हैं और जोर-जोर से ठहाके लगाकर अपनी कुंठा निकालते हैं। सच पूछो- अगर इन्हें खुली छूट दे दें तो ये सचमुच भेड़िए हैं। इनकी कोई मर्यादा नहीं है, इनके स्वभाव पर अगर कोई लगाम लगाता है तो वह है डर… परिवार के टूटने का… मां-बाप का.. राम से रावण बन जाने का डर, पर बातों से तो यह बिल्कुल रावण के बाप हैं। शब्दों से किसको कहां-कहां छू लेते हैं अपना पुरुषत्व बघारने में…यह तो पूछो ही मत!
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