भागी लड़की का दर्द
आज सुबह से ही मेरे पड़ोस में गहमागहमी का माहौल था। जोर-जोर से आवाजें आ रही थीं। मैं भी परेशान थी आखिर मेरे बेस्ट फ्रेंड पारुल के घर में क्या हुआ होगा? तभी मम्मी मेरे कमरे में आई और मुझसे पूछ बैठी- बेबी तुम्हें पता है वहां क्या हुआ है? मैंने कहा- नहीं मम्मी । मम्मी चली गई। मैं अभी फ्रेश होकर आई ही थी कि पापा बोले तुम आज कॉलेज नहीं जाओगी। इस सवाल का जवाब अभी मैं सोच पाती कि पीछे से मम्मी भी आ गई। पापा के जाने के बाद मम्मी बोली- पारुल भाग गई है। क्या? मैं चीख पड़ी। मम्मी थोड़ा रुकते हुए बोली, तुम्हें पता नहीं! यह बात हम लोगों को हजम नहीं हो रही। पापा बहुत गुस्से में हैं।
पर मम्मी यह क्या कह रही हो तुम? भला- पारुल मुझे बताकर भागेगी? हां उसकी दोस्ती थी एक लड़के के साथ, पर दोनों भाग जाएंगे यह मैं कैसे जान सकती हूं? मेरी दोस्त है पारुल, पर जरूरी नहीं कि मैं उसके बारे में सब जानती हूं। बात आई-गई खत्म हो गई क्योंकि पारुल का पूरा परिवार शहर छोड़ जा चुका था। मैं निश्चिंत हो गई पर हां! कभी-कभी पारुल की याद आती उसके साथ ही दिमाग में उठते थे हजार सवाल…
एक दिन में मैं मार्केट में सब्जी खरीद रही थी कि एक चिर परिचित आवाज ने मेरा ध्यान अपनी तरफ खींचा। मैंने देखा बगल के ठेले पर एक दुबली-पतली उम्रदराज औरत सब्जी खरीद रही है।
ना उसने ढंग के कपड़े पहने थे और ना ही अच्छी फैमिली की लग रही थी। वह किसी गांव की औरत की वेशभूषा में थी। मैं अभी मुड़ने ही वाली थी कि मैंने फिर उस औरत की तरफ देखा और पल भर को हमारी आंखें टकरा गईं। वही बोलती आंखें और होठों पर वही मुस्कान खिल गई और मैंने उसे तुरंत ही पहचान लिया। अरे! पारूल तुम! वह हंस पड़ी- हां बेबी, बताओ कैसी हो? ठीक हूं। पर तुम तो पहचान में ही नहीं आ रही, मैंने कहा।
उसने कहा और तू भी और खिलखिला कर हंस पड़ी। यही पास में मैं रहती हूं अगर चाहो तो वहां चलो, पारुल बोली। पर मैं थोड़ा झिझक रही थी एक तो उसकी वेशभूषा और दूसरा अभी नई-नई शादी हुई थी मेरी, पता नहीं पतिदेव क्या सोचें? मैंने कहा- रुको थोड़ा, एक फोन कर लूं। और मैंने जब अपने पति से पूछा तो वे बोले कोई नहीं चली जाओ। मैं उसको साथ चल पड़ी- एक छोटा सा कमरा, जो जरुरतों के सामान से भरा पड़ा था। पर हां! उसने सारी चीजें सलीके से रखी थी उसने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया और ग्लास में मेरे लिए पानी ले आई।
सवालों की झड़ी तो मैं लगाना चाहती थी पर शुरुआत उसने ही की। क्या करते हैं जीजू? लगता है तुम्हें बहुत प्यार करते हैं। तुम्हारा निखरा हुआ चेहरा ही बता रहा है कि बहुत प्यार करने वाला पति पाई है मेरी दोस्त।
मैं ठठाकर हंस पड़ी। हां! विक्की बहुत अच्छे हैं। मुझे बहुत प्यार करते हैं। छोड़ो, तुम अपनी बताओ, कैसी हो और यह क्या हाल बना लिया? तुम कैसे भाग गई, क्यों? मुझे कुछ बताया नहीं और तेरा पति कहां है, क्या करता है? मेरे जेहन में हजार सवाल थे जो मैं पूछ लेना चाहती थी।
पारुल थोड़ा उदास हो गई और बोली सब बताती हूं बस जरा इत्मीनान से बैठो तो सही।
अरे यार! बता दे कहीं बिन बताए तुम फिर भाग गई तो मेरे सवालों का जवाब कौन देगा और मैं हंस पड़ी। हंसते-हंसते जब मेरी नजर पारुल पर पड़ी तो उसकी आंखों से झर-झर आंसू बहे जा रहे थे। अरे! यह क्या? बोलते हुए आदतन मैंने उसे अपने गले से लगा लिया। वो थोड़ी देर फफक-फफक कर रोती रही फिर शांत होने के बाद उसने कहना शुरू किया- तुम्हें तो पता है मेरा इंगेजमेंट हो गया था और मैंने रमन को साफ-साफ मना भी कर दिया था कि अब हम नहीं मिलेंगे। मैंने रिश्ता खत्म कर एक नया रिश्ता बना लिया था पूरे मन से। मैं उस रिश्ते के लिए तैयार थी जो पापा चाहते थे। पर अचानक शादी की तारीख के साथ-साथ लड़के वालों का डिमांड बढ़ने लगा। रोज नई-नई मांग करने लगे। इतना तक तो ठीक था, संजय भी रोज मुझे फोन पर नीचा दिखाता।
इंगेजमेंट में मिले सामान की बुराई करता उसे कुछ भी पसंद नहीं था। अंगूठी, कपड़े सबकी बुराई करता मैं फिर भी चुप थी।
शादी की तारीख पास आने की वजह से हमारे परिवार में शॉपिंग बढ़ गई थी। लगभग रोज बाहर जाना हो रहा था और आते जाते रमन मुझे फॉलो करता परिवार वाले अनजान थे पर मेरी नजर से वह किसी भी दिन बच नहीं पाता।
मैं उसे रोज देखती उसका उदास चेहरा मुझे रोज दुखी करता, उसका यूं रोज-रोज मिल जाना। अब मेरे दिमाग ने रमन और संजय में समानताएं और विषमताएं ढूंढना शुरू कर दिया। एक संजय था जिसकी बातें मुझे तीर सी चुभती थी पर उसे चुपचाप सुनना मेरी मजबूरी थी और दूसरा रमन था जो चुपचाप मुझे सुनता था।
मेरी हर बात को महत्व देता इन सब बातों ने मेरी रातों की नींद उड़ा दी। एक रात अचानक रमन खिड़की के पास आ गया। उसे देख कर मेरी साहस इतनी बढ़ गई कि मैं सब कुछ छोड़-छाड़ मात्र दो जोड़ी कपड़े लेकर उसके साथ हो ली।
कपड़ों में एक शादी का जोड़ा भी था और कुछ जेवर जो एक सुहागन के लिए जरूरी होता है। रमन खुद ही आवाक था। मैंने उसका हाथ थामा और दूर तक उसके साथ भागती रही। यह वह बदनसीब पल था जब मैं ना जाने किस जादू में बंधी थी। होश में थी भी या बेहोश, मैं नहीं जानती। क्या हुआ था मुझे, क्या कर रही थी मैं, यह तंद्रा तो तब टूटी जब मेरे कदमों ने जवाब दे दिया। यह क्या किया मैंने? जो गलती मैंने की थी वह अक्षम्य थी और वापस जाने का कोई रास्ता नहीं था मेरे पास। मुझे अपने चुने राह पर अब बस आगे बढ़ना था यही नियति थी मेरी। मैंने रमन से शादी कर ली वह मुझे अपने गांव ले आया पर मैं शहर में पली-बढ़ी लड़की यहां तालमेल नहीं बैठा पा रही थी। वहां का रहन-सहन, खान-पान कुछ भी रास नहीं आता था मुझे। पर मैं किससे कहती? क्या कहती? यह जिंदगी तो मैंने खुद ही चुनी थी। मेरे बहुत जिद करने पर रमन ने पास के शहर में एक किराए का घर ले लिया पर यह खुशी भी ज्यादा दिन तक नहीं ठहरी क्योंकि एक दिन पोस्टमैन ने एक लेटर लाकर दिया मुझे।
वह कागज का टुकड़ा जब मैं पढ़ी मानो मेरे पैर के नीचे की जमीन खिसक गई हो। वह रमन के तलाक का पेपर था, तो क्या रमन पहले से शादीशुदा है… मेरी उससे दूसरी शादी हुई है?
जब रमन घर आया मैंने सवालों की झड़ी लगा दी। तुमने मुझे बताया नहीं, धोखा दिया… तुम्हारी शादी पहले हो चुकी है, वह थोड़ी देर खामोश रहा फिर उसने बताया कि 10वीं कक्षा में था जब उसने किसी लड़की से शादी की थी। उसे घर से भगा लाया था, पर इस बार तो मैंने भगाया है उसको। वह लड़की एक महीने तक उसकी पत्नी रही पर पुलिस ने खोज निकाला दोनों को और जेल की सजा भी हुई थी रमन को। मेरे दिमाग की नस फटी जा रही थी उसका पहला प्यार नहीं हूं, मैं उसकी पहली पत्नी नहीं हूं. यह सब बातें उसने मुझसे छुपाई, क्यों? उसने अपनी जिंदगी के इतने बड़े राज़ से अनजान रखा मुझे। काटो तो खून नहीं…
मुझे सब याद आने लगे- मेरे माता-पिता, मेरे दोस्त, सबसे ज्यादा कमी तुम्हारी लगी थी उस वक्त मुझे। जिन सबको मैं ना जाने किस नशे में छोड़ आई थी। अपनी गलती का एहसास था मुझे पर, मैं कुछ नहीं कर सकती थी सिवाय रोने के…
और रमन वह क्यों समझता मुझे या मेरे दर्द को, उसे तो सब वापस मिल गया था- उसका घर, परिवार, दोस्त, यार इज्जत। पर दहलीज लांघने की गलती जो मैंने की थी वो सजा मैं आज भी भुगत रही हूँ।
काश! कि कोई एक बार मेरा अपना बनकर मुझसे पूछता घर छोड़ने का, अपने मां-बाप को छोड़ने का दर्द क्या होता है? वो एक पल था जिसमें मैंने गलत कदम उठा लिया पर उस पल के बाद का हर पल मैंने प्रायश्चित किया है, माफी मांगी है और दुआ मांगी है अपने माता-पिता के लिए। खुद को कोसा है पर मैं कुछ भी कर लूं मेरे पाप का प्रायश्चित संभव नहीं है। एक बार दूर से देखना चाहती हूं, गले लगाना चाहती हूं, माफी मांगना चाहती हूं पर यह इतना आसान नहीं। मैं जानती हूं हमारे समाज में इस गलती की माफी नहीं है चाहे मैं कुछ भी करूं।