कन्यादान… अनाथ होती बेटियां
कन्यादान एक ऐसी रस्म है जिसमें माता पिता अपनी पुत्री का कन्यादान करते हैं। दान का मतलब तो जानते होंगे आप लोग। मतलब वह चीज जो अपनी थी अब परायी हो गई।
बेटी का कन्यादान भी उतना ही बड़ा सच है- कुछ माता-पिता ऐसे होते हैं जिन्हें शादी के बाद अपनी बेटी के दुख दर्द से कोई मतलब नहीं होता। वह यह मानकर चलते हैं कि तुम्हारा दुख तुम्हारी किस्मत है, तुम्हारे साथ जो हो रहा है गलत या सही, वह तुम्हारा भाग्य है।
तुम वापस मायके नहीं आ सकती यहां तुम्हारा कोई अधिकार नहीं। तुम्हारे वापस आ जाने से समाज क्या कहेगा, तुम्हारे भाई कि जिंदगी पर इसका असर होगा।
जाने कैसे ममतामयी माता-पिता यह भूल जाते हैं कि शादी के बाद भी उन्हीं की संतान है वह। यही वह बेटी है जिसके गिर जाने मात्र से उन्हें तकलीफ होती थी, उनके दर्द से उन्हें भी दर्द होता था। इतना बड़ा परिवर्तन मात-पिता के हृदय में कैसे हो जाता है? यह मैं नहीं जानती पर यह बहुत दुखदायी है। इसलिए शादी के बाद बेटियाँ अनाथ हो जाती हैं ये सच है।
ससुराल में प्रताड़ित होती बेटियां अपने मां-बाप से कुछ नहीं कह पातीं, कितनी बार तो ऐसा होता है या तो वो आत्महत्या तक कर लेती है क्योंकि हमारे समाज में प्रचलित कहावत है कि बेटी की डोली मायके से उठती है और अर्थी ससुराल से… इस कहावत को सच करने के लिए बेटियां आत्महत्या कर लेती हैं पर अपने माता-पिता को कुछ नहीं कहतीं क्योंकि वह जानती है कि उसका कन्यादान हुआ है। कन्यादान यह शब्द छोटा भले ही है पर सही मायने में कितनी बेटियों का हत्यारा है।
आईए आज दान और बलिदान में अंतर समझते हैं। दान वो होता है जिसमें दान लेने वाले का ज्यादा फायदा होता है।
और बलिदान से पूरे समाज का भला होता है। तो क्यों ना हम कन्यादान जैसी प्रथा के बलिदान को एक मुहिम का रूप दें और इस प्रथा का विरोध करें।
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