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तमाम बंधन के जकड़ को तोड़,
मुक्त होना चाहती हूं…..
नहीं चाहती – कोई समाज, कोई परिवार
ना चाहती हूं परिचय मेरा ….
या कोई परिभाषा खुद की….
किसी की प्रेयसी होना,
बेटी होना या किसी भी रिश्ते का बंधन
बस अबोध खिलखिलाहट में लिप्त हो,
मासूमियत और निश्चलता से खिलखिलाना चाहती हूं…….
मुक्त हो जाना चाहती हूं समझदारी से…
भूल जाना चाहती हूं अपना विवेक, अपना व्यवहार
बस वह करना चाहती हूं जो मेरा मन करे….
वह बोलना चाहती हूं जो बोलना चाहती हूं…
बिना फरेब, बिना झूठ के….
सिर्फ और सिर्फ सच….
नहीं चाहती कोई किताबी ज्ञान!
नहीं चाहती पीना सत्य और असत्य का पैमाना
नहीं जानना चाहती कोई शब्द का समंदर,
या फिर कोई खूबसूरती की परिभाषा
बस मुक्त होना चाहती हूं-
इस फिक्र से कि कैसे दिखती हूं मैं!
होना चाहती हूं बिल्कुल अबोध…
खिलखिलाती हुई उन्मुक्त….
पूरी तरह से चाहती हूं स्वतंत्रता….
अपनी खिलखिलाहट
चाहती हूँ उस मासूम बच्चे की तरह,
जिसे कुछ भी ज्ञात नहीं होता…
Tags: beauty, behavior, bond, calmness, conscience, Family, free, freedom, galbahiyan, giggle, independent, innocence, innocent, kid, knowledge, poem, Poetry, relationship, society, understanding