WhatsApp Image 2023-08-25 at 11.55.19 AM

वो मेरी बीवी से ना तो ज्यादा खूबसूरत थी और ना ज्यादा समझदार ही। या यूं कहें हर मायने में कमतर थी। छोटी उम्र, छोटी सोच फिर भी जानें क्यूं उसकी तरफ खींचता जाता था। हां एक प्रोफेशनल कोर्स के दौरान वह कम उम्र की लड़की मेरी पत्नी की दोस्त बनी और उसका मेरे घर आना-जाना शुरू हो गया। वो जब भी मेरे घर आती मैं बाथरूम की ओर भागता। अपने बाथरूम के मिरर में खुद को संवारता और फिर बाहर निकलता। ऐसा लगता मैं फिर से जवान हो रहा हूं। कितनी बार मैं उसे एकटक देखता ही रह जाता। उसके नैन-नक्स मुझे बहुत आकर्षित करते, उसकी शोखियां, अल्हड़ता देखकर मैं मचल जाता। मैं ये जानता था कि वो बहुत खूबसूरत नहीं है, उम्र में काफी छोटी है फिर भी मैं उसके बारे में सोचता रहता। मेरा मन चाहता उसके सामने बैठकर उसे देखता रहूं। मैं इनसब से अनजान की पत्नी को सब समझ आ रहा है खुद में मस्त था। वो भी जाहिर नहीं करती कि मेरी आशिकी वह बेहतर समझ रही है। कहते हैं ना प्रेम अंधा होता है वाकई मेरा ये प्रेम था या आकर्षण जिसमें पड़कर मैं अंधा हो जाता था। सामने खड़ी मेरी पत्नी, मेरे बच्चे सबको भूलकर जानें किस सम्मोहन से बंधा मैं उसकी तरफ खींचता जा रहा था।

दूसरी तरफ पल्लवी भी ये समझ रही थी कि मैं उसे पसंद करता हूं। वह मुझे कभी छेड़ती, कभी मजाक करती तो कभी अकेले में मुझसे डर भी जाती। पल्लवी की भावनाएं और विचार मेरे प्रति बदलती रहती पर मेरी भावनाएं उसके लिए कभी नहीं बदली। सच कहूं तो उसके शरीर की दुर्गंध भी मुझे किसी फूल से कम नहीं लगती। उसकी हर बात, उसका डांट देना या मुझे अपशब्द कह देना भी मुझे भाता। उसकी कोई बात मुझे बुरी नहीं लगती उसके अक्षम्य अपराध को भी मेरा बावरा मन क्षमा कर देता। और पत्नी की छोटी-छोटी गलतियां भी मुझे भी नागवार गुजरती। ऐसा लगता मेरे अंदर की ज्वालामुखी दहल रही है। जब भी पत्नी को देखता उसके लिए हजारों नकारात्मक ख्याल एक साथ उबलने लगते। जी चाहता कहीं भाग जाऊं। पर जब कभी मैं अपनी पत्नी को रोता देखता उसकी बेचारगी पर दया भी आती और पल भर के लिए मैं उसका पति बन जाता और सोचता बेवजह ही इतना गुस्सा किया इस सोच के साथ मैं अपनी शारीरिक जरूरत पूरी करता।

धीरे-धीरे पल्लवी का मेरे घर आना कम हो गया पर फिर भी मेरी आंखों को उसका इंतजार रहता। एक दिन बातों ही बातों में मैंने अपनी पत्नी श्वेता से पल्लवी के बारे पूछा तो श्वेता की आंखें बड़ी हो गईं। वो थोड़ी देर चुप रही फिर किसी कैमरे की तरह अपनी आंखे मेरे चेहरे पर टिका कर बताने लगी कि उसकी शादी तय हो गई है। ये सुनते ही मेरे अंदर कुछ टूट सा गया। उस टूटे टुकड़े के दर्द की ऐसी टीस उठी कि श्वेता आगे क्या-क्या कहा मैं कुछ नहीं सुन पाया। खैर धीरे-धीरे सामान्य हो गया और मेरा वैवाहिक जीवन भी। मैं कभी-कभी खुश होता कि अच्छा हुआ पल्लवी की शादी हो गई। परंतु कभी-कभी दिल के किसी कोने में जानें कौन सा बसंत खिल जाता कि उसकी याद आ जाती और मुझे बेचैन करती।

मैं महसूस करता था कि उसके प्रति एक मोह है मेरे अंदर…बहुत अंदर तक जिससे मैं निकल नहीं पा रहा हूं। एक दिन अचानक एक व्हाट्सएप ग्रुप में मैं जोड़ दिया गया जहां मेरे कॉलेज के बहुत सारे फ्रेंड्स थे। उस ग्रुप में मैं अपने बेस्ट फ्रेंड को देखकर उछल पड़ा मैंने बिना देर किए उसके नंबर पर फोन किया। बहुत लंबी बातें हुई हमारी… कहां हो, क्या कर रहे हो, पत्नी-बच्चे सबकुछ। एक सांस में मैं सब जान लेना चाहता था। पर वो उतना खुश नहीं था। मैंने पूछा भी…अबे गधे इतने दिन बाद बात कर रहा हूं केवल हूं-हां ही क्यों कर रहा है कुछ बोलता क्यों नहीं। थोड़ा बिजी हूं बोलकर उसने बात टाल दी।

एक दिन मैं दफ्तर से आया ही था कि उसका फोन आ गया उसने पूरे अधिकार के साथ कहा कि तू अपना एड्रेस भेज मैं तुम्हारे घर एक घंटे में पहुंचता हूं। मैं बहुत खुश हो गया। मैंने श्वेता को बताया कि वो तैयार हो जाए मेरा दोस्त अपनी फेमिली के साथ आ रहा है। वो तैयार हो गई और मेहमानों के नाश्ते, ड्रिंक आदि की मेन्यू भी उसने तैयार कर ली। उसने मुझसे डिसकस किया कि वो क्या-क्या सर्व करनेवाली है। मैंने भी यथासंभव उसकी सहायता की और बेचैनी से अपने दोस्त का इंतजार करने लगा। मैं सोफे पर बैठा ही था कि कॉलबेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोला। मेरा दोस्त अर्णव मेरे सामने था खड़ा था उसके साथ ही खड़ी थी पल्लवी। मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। मैंने खुद को नॉर्मल करते हुए कहा- नमस्ते भाभी जी….

मैंने गौर से पल्लवी को देखा वो बहुत निखर गई थी। माथे पर छोटी सी बिंदी, कानों में टॉप्स और हाथों पर काले मोतियों का ब्रासलेट मंगलसूत्र… उसकी गोरी कलाइयों पर कुछ ज्यादा ही फब रहा था। वो बहुत ही मॉडर्न लग रही थी। अभी हम सोफे पर बैठे ही थे कि अर्णव की गोद में सोया बच्चा रोने लगा। अर्णव उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था। बेचारा वो उसे लेकर इधर-उधर टहल रहा था। तब ही श्वेता बोली- इसे भूख लगी है पल्लवी… दूध पिला दो। पल्लवी ने अपनी आंखें बड़ी करते हुए कहा.. पर ये तो फॉर्मूला दूध पीता है। मैं फीड नहीं कराती। अर्णव…बोतल कहां है…दूध पिला दो… उसने अपने पति को कहा।

मैंने गौर किया पल्लवी की ममता बच्चे के प्रति उदासीन है उसे बच्चे के रोने से कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। बच्चा रो-रोकर बेहाल हो रहा था तब ही श्वेता अंदर से भागती हुई आई और बोली- क्या हुआ क्यों रो रहा है इतना…श्वेता ने बच्चे को अपनी गोद में ले लिया। अर्णव दूध की बोतल ले आया और बच्चा दूध पीकर सो गया।

हम खाना खाकर लीविंग रूम में आकर बैठ गए। तब ही अर्णव बोला- मैं शौर्य को देखकर आता हूं। मैं भी उसके पीछे-पीछे गया हमने देखा अब भी शौर्य आराम से सो रहा है। मैंने धीरे से गेस्टरूम की बॉलकनी खोली और अर्णव को इशारा किया- यहीं आ जाओ। हम वहीं पड़ी कुर्सी पर बैठ गए। थोड़ी देर इधर-उधर की बातें करने के बाद मैंने कहा- तू तो परफेक्ट फादर हो गया है। अर्णव थोड़ा उदास हो गया, फिर उसने बताया- पल्लवी अपने रंग-रूप के प्रति बहुत ही सतर्क है। अपनी फिगर, अपने नेल्स, आंखों के डार्क सर्कल… इन सबसे बचने के लिए उसने अपनी ममता खो दी है। उसकी खूबसूरती का मोह उस पर इस कदर हावी है कि मानों वो हमेशा जवान ही रहेगी। कहीं से भी थोड़ा भी ऊंच-नीच उसे पसंद नहीं। जिसके कारण मैं और शौर्य उपेक्षित रह जाते हैं।

मेरा दोस्त अर्णव तो चला गया पर आज अचानक मुझे श्वेता का कद बहुत ही बड़ा और विशाल लगने लगा। उसके प्रति मैं खुद को कृतज्ञ महसूस करने लगा और वो टीस जो आकर्षण के रूप में कभी-कभी मुझे बेचैन करती थी उसके प्रति मैं वितृष्णा से भर उठा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *