हार्मोनल चेंजिंग
प्रीति पूनम
अक्सर पुरुषों की टोली जो 60 साल के ऊपर हैं अपने स्वास्थ्य को लेकर बड़ी-बड़ी बातें करते आसानी से मिल जाते हैं। पार्कों में, सोसाइटी में, कहीं भी- मैं योग करता हूं… घूमता हूं… बहुत फिट हूं।
बहुत अच्छी बात है आप अपने हेल्थ को लेकर सचेत और केयरिंग हैं। पर अगले ही पल जब आप सब अपनी पत्नी को लेकर शिकायतें करने लगते हैं… बहुत लापरवाह है, कुछ नहीं करती, अपना ध्यान नहीं रखती ये सब बीमारियां हैं…
पर जनाब आपने कभी गौर किया है कि उनके हेल्थ इश्यू आपसे ज्यादा क्यों है… आपके शरीर का क्या यूज हुआ है… कुछ भी नहीं… औरतों ने सृजन करने में अपने शरीर की शेप, साइज और हेल्थ सब चौपट कर लिया…
12 से 14 की उम्र आते ही वह हर महीने हार्मोनल चेंजिंग से गुजरती है। महीने के वो पांच दिन फिजिकल ही नहीं मेंटल ट्रॉमा से गुजरना पड़ता है। उसके बाद प्रेगनेंसी के वो नौ महीने फिर से हार्मोनल, फिजिकल और मेंटल प्रेशर झेलना पड़ता है। वेट को लेकर या दूसरे हेल्थ इश्यू जैसे कभी शुगर लेवल बढ़ जाना किसी का थाइराइड बिगड़ जाना तो किसी की बीपी का ऊपर-नीचे हो जाना। मूड स्विंग तो औरतों के लिए नॉर्मल बात है। ये चैलेंज यहीं खत्म नहीं होता… मदरहुड या फीडिंग लेडी के हार्मोनल चेंजेज के साथ रुटीन लाइफ का प्रभावित होना ये सब चलता ही रहता है।
पीरियड की वजह से हार्मोनल चेंजिंग वो हर महीने झेलती है। फिर 45 से 50 की होते-होते मेनोपॉज की वजह से होने वाले चेंजिंग….
एक जिंदगी, एक शरीर और शरीर में इतने सारे हार्मोनल चेंजिंग एक औरत ही झेल सकती है। और आप पुरुष को चाहिए कि उनकी छोटी-छोटी बातों को इग्नोर कर प्यार और सपोर्ट दें। उनसे कभी ये ना कहें कि तुम रोज बीमार रहती हो… मैं फिट हूं… उनको प्यार से अपने साथ एक्सरसाइज कराएं… दिमाग में ये रखते हुए कि उसने अपने शरीर में कितने चेंजेंज सहे हैं… फिर खुद ही आप उसका सपोर्ट करेंगे।
एक जेंट्स का हेल्थ इश्यू अलग होता है… आई शाइट, एज का असर जो कि औरतें एक्ट्रा झेलती हैं। इसलिए वुमेन या वोल्ड वुमेन को सबसे ज्यादा अपने जीवन साथी की जरुरत होती है जो उसे समझने वाला हो। उम्र के इस पड़ाव में दोनों एक दूसरे के रग-रग से वाकिफ होते हैं… तो फिर आप हार्मोनल चेंजिंग को नजरअंदाज क्यों करते हैं।