स्वतंत्रता या रिश्तों में दूरी….

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               स्वतंत्रता के नाम पर एकल परिवार का बढ़ता क्रेज, परिवार के सदस्यों का अपना फ्रेंड सर्कल और अपनी मस्ती। कितना मजेदार है। कितनी ऊंची सोच है, सब स्वतंत्र हैं कोई किसी पर बंदिश नहीं लगा रहा सबको अपनी स्वतंत्रता प्यारी है।

घर का पुरुष अपने मित्रों के साथ अपनी छुट्टियां प्लान कर रहा है। उनकी अपनी मस्ती है, पार्टी है, फ्रेंड सर्कल है।
और घर की महिलाएं अपनी मित्रों के साथ किट्टी पार्टी, मूवी, शॉपिंग जा रही है। बच्चे अपने जन्मदिन की पार्टी अपने दोस्तों के साथ सेलिब्रेट कर रहे हैं। ये सब हमें मॉर्डन और एडवांस दिखाता है और बिना सोचे-समझे हम सब इसे फॉलो करते जाते हैं।

          कभी सोचा है ये स्वतंत्रता के नाम पर की जाने वाली मस्ती हमारे परिवार में अलगाव या दूरी पैदा कर रही है। इसी दौरान एक दूसरे की नकल हमें हमारे बजट को बिगाड़ती और जीवनसाथी से दूर करती है।

                   खुशी का कोई भी कारण हो हम पूरे परिवार एक साथ इक्ट्ठे होकर सेलिब्रेट क्यों नहीं कर सकते? परिवार के साथ खुशियां बांटने से हमारी स्वतंत्रता का कहां हनन हो रहा है। अलग-अलग पार्टी करने की हमें जरुरत क्यों है। जब हम अपना दुख-दर्द परिवार के साथ साझा करते हैं तो अपनी खुशियां दोस्तों के चकाचौंध के बीच क्यों गंवा देते हैं।                  

                              खुशी का कोई भी मौका हो अपने बजट के हिसाब से छोटी या बड़ी पार्टी आयोजित करें। जिसमें पूरी फैमिली शामिल हो, चाहें तो फ्रेंड की पूरी फैमिली को शामिल करें। परिवार को तोड़कर किसी एक को पार्टी में बुलाकर इन्जॉय करना मेरी नजर में सही नहीं है। आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में वैसे भी वक्त कम है तो जहां जाएं पूरे परिवार के साथ जाएं और खूब मस्ती करें।

 

 प्रीति पूनम 

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