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प्रीति पूनम
किसी दिन एक कोरे काग़ज़ पर लिख देना,
अपने ‘हूँ’और ‘हाँ’ के सारे पर्यायवाची शब्द!
जैसे कोई विरासत लिखता है अपने हमसफर के नाम,
संभाल कर उसे रख लूँगी अपनी संदूक में…..
और मौका मिलते ही खोजूंगी, अपने हज़ारों सवालों के जवाब –
जो इतने वर्षों से ‘हूं’ और ‘हाँ’ में तब्दील हुए पड़े हैं अबतक.

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