“जिम्मेदारी या बोझ”
शब्दों का मायाजाल है संसार, जिससे बनती है जीत हार, धागे यह मोह के ना...
शब्दों का मायाजाल है संसार, जिससे बनती है जीत हार, धागे यह मोह के ना...
तुम दिन व दिन बड़े होते गए मेरे अंदर फैलती गई जड़े तुम्हारी खिला दिए...
हुई ऐसी तलब तुम्हारी, की धड़कनें थमने सी लगी… कभी घबराई, कभी बेचैनी बढ़ने लगी…...
यह दस दिन पलक झपकते ही बीत जाता, ऐसा नहीं था की बच्चे साल के...