ओ मेरे प्रेम

तुम दिन व दिन बड़े होते गए मेरे अंदर
फैलती गई जड़े तुम्हारी
खिला दिए तुमने अनगिनत रंग-बिरंगे फूल
मानो जीवन बसंत हो गया है
फैलने लगी भीनी भीनी खुशबू
जिसमें हो गई मदहोश मेै और तुम भी
ओ मेरे सूरज,
रोैशन सा उगता तुम्हारा प्रेम
फैलता गया मेरे अंदर शाश्वत होती गई मैं
चौंधिया गई आंखें मेरी और तुम्हारी भी…
कैसे दिखता तुम्हारे बिना कोई और मुझे
या तुम्हें मेरे सिवा कोई और
जुड़कर तुमसे जुड़ गया अभिमान ,
जुड़ गई गरिमा,
जुड़ गया सम्मान!