“तलब “

हुई ऐसी तलब तुम्हारी,
की धड़कनें थमने सी लगी…
कभी घबराई, कभी बेचैनी बढ़ने लगी…
उतर आया आंखों में नमकीन पानी..
चाहा कह दूं खुदा से ही अपनी व्यथा ..
वहां भी खुदा की जगह तेरा नाम बुदबुदाई..
लड़खड़ाते कदमों से पहुंची खुदा के दर ,
वहां भी मूरत में दिखी तेरी ही परछाई…
उठाया हाथ इबादत में तो..
लगा बाहों में तू है समाया. .
हुई ऐसी तालाब तुम्हारी
की धड़कने थमने सी लगी..
कभी घबरायी, कभी बेचैनी बढ़ने लगी..