ममता (कहानी) अंतिम भाग

यह दस दिन पलक झपकते ही बीत जाता,
ऐसा नहीं था की बच्चे साल के बीच में नहीं आते थे, पर पूरा परिवार तो बस दशहरा में ही इकट्ठा हो पाता था, इसलिए ममता को दशहरा अति प्रिय था।
वह सुबह तड़के जग जाती मां दुर्गा की पूजा करती, आरती गाती, भोग लगाती, अपने बच्चों का थाल सजाती और सबको खिलाने के बाद वह आखिर में खाती।
समय कब थमा है, किसी के लिए वह तो अपनी गति से बस चलता ही जाता है और वक्त के साथ चलता जाता है संसार और संसार की सारी चल और अचल वस्तुएं।
साल बीतते गए। हर साल की तरह इस साल भी दशहरा अपनी धूम के साथ आया, सब जगह चहल पहल, आज दशहरे की नवमी है। सब नए कपड़े पहने, श्रृंगार से लदे – लदे, हजारों ख्वाहिश दिल में सजा, मेले की तरफ भाग रहे हैं,
पर आज सुबह से ही ममता को जाने क्यों, घबराहट सी हो रही थी, रात को भी बुरे – बुरे सपने और ख्यालों ने ममता को सोने नहीं दिया था। वह बेसब्री से हर आने जाने वाले पर नजर टिकाए हुई थी, तभी ममता के दरवाजे पर एक गाड़ी आकर रुकी, ममता भागती हुई आई उसे लगा, उसका विशाल आ गया है। हाँ!
वह विशाल ही था, वह विशाल जिसे दो लोग स्ट्रेचर से उतार रहे थे, ये देखते ही ममता के पैरों में जान नहीं रहा, वह लड़खड़ा के वही गिर पड़ी और बेहोश हो गई।
कुछ लोग उसे उठाकर आंगन में ले आए, एक तरफ विशाल का शरीर पड़ा था और दूसरी तरफ ममता बेहोश पड़ी थी। बहुत मुश्किल से ममता को होश आया वह रोए जा रही थी, दहाड़े मार मार कर रो रही थी, ममता को ऐसा लग रहा था कि मानो अभी उसके मुंह से प्राण निकल जाएगें, नहीं, नहीं मुंह से नहीं, अभी सीना फट जाएगा उसका, असहनीय पीड़ा हो रही थी उसे, वह छाती पीठ- पीठ कर रो रही थी की फट जाए छाती और कम हो जाए उसकी पीड़ा! निकल जाए छाती से उसके प्राण! अभी! क्यों जीएगी वह…. और किसके लिए…. पर असंभव कैसी विडम्बना है यह, कि उसे जीना पड़ेगा, काश! की अपना प्राण निकालकर वह अपने प्रिय लाडले के मृत शरीर में डाल पाती, काश कि वह अपने पुत्र को जीवन दे पाती।
उसके चारों पुत्र मेहनती, शरारती और हंसमुख थे। परंतु दूसरा बेटा विशाल सबसे ज्यादा समझदार, होशियार, और शरारती था।
विशाल किसी भी चिंतित और परेशान व्यक्ति को चुटकियों में अपनी चुहल और वाचाल शब्दों से हंसा देता, उसका यह अंदाज उसके खिलते चेहरे के साथ खूब जंचता। होठों पर खिलती मुस्कान के साथ ऐसी बातें करता कि किसी की भी हंसी छूट जाए उसकी किसी भी चूहलपन में फुहड़पन और भद्दी बातों के लिए जगह नहीं थी, हमेशा सम्मानित और आदरणीय शब्दों का चुनाव करके सबको हंसाता, जहां से गुजरता लोग खड़े होकर उसकी बातें सुनने लगते और तरोताजा हो जाते।
मजाकिया तो था ही पर किसी की भावनाओं को भी खूब समझता था। बातुनी इतना की सामने वाले की बातें खत्म होती नहीं कि उसका मजेदार उत्तर तैयार रहता था। किसी भी गंभीर बात को भी बहुत ही हल्के और मजेदार अंदाज में कहता जो साधारण इंसान के बस की बात नहीं…. सामाजिक इतना की हर गली, चौराहे पर उसके दोस्त और परिचित मिल जाते,
या यूं कहें कि जिधर से निकलता उसे गुलजार करता जाता। उसकी इस अदा का ही प्रभाव था की ममता बड़े होने के बाद भी घंटे उसे अपनी गोद में सुलाए रखती उस से दुनिया भर की बातें करती ममता के सारे दुख दर्द पल में छूमंतर हो जाते। ममता का रिश्ता अब विशाल के साथ मां बेटे से ज्यादा दोस्त का था ममता अपना दिल खोल देती और विशाल उसकी हर चोट पर अपनी बातों का मरहम लगाता जाता वह अपनी मां को बहुत प्यार करता था इसलिए तो उसके सारे तकलीफ का हल भी कहीं ना कहीं से ढूंढ लाता मानो, ममता की हर तकलीफ को दूर करने की कसम खाई हो, समस्या चाहे छोटी हो या बड़ी मां की हर समस्या का साझेदार, और समाधान बड़े जतन से करता ममता बलाईयां लेना ना भुलती, वह विशाल जैसे बेटे को पाकर खुद को धन्य मानती और फूली नहीं समाती, उसे लगता भगवान ने बेटे के रूप में एक फरिश्ता भेजा है उसके लिए।
हर साल की तरह इस साल भी ममता को दशहरे का बेसब्री से इंतजार था। उसके तीनों बेटे आ चुके थे। पर विशाल नहीं आया था, विशाल का फोन आया कि इस साल वह नहीं आ पाएगा, मेडिकल एंट्रेंस की परीक्षा में वह चयनित हो गया है।
कॉलेज की कुछ औपचारिकता पूरी करनी है, कुछ कागजात जमा करवाने है, वह सब काम खत्म करके एक-दो दिन के लिए मां से मिलने आएगा , उसके लिए सुंदर सी साड़ी लेगा, मां के पास किस कलर की साड़ी नहीं है उस रंग की साड़ी खरीदेगा….
अपनी सफलता के लिए मां दुर्गा को धन्यवाद अर्पण करने, और मां के लिए खरीदी साड़ी मां दुर्गा को नवमी के दिन चढ़ाने गया था।
वहीं मंदिर में….. भीड़ में, मची भगदड़.. चीख.. पुकार….
अपनी जान की रक्षा के लिए भागते भक्त….
मां दुर्गा की शरण से वापस नहीं आ पाए….
ममता को जब भी होश आता वह खुद को नुकसान पहुंचाने लगती या कोसने लगती।
उसे बेहोशी के इंजेक्शन लगाए जाते,
15 ही दिन बीते की वह बिस्तर से जा लगी, खाना, पीना सब छोड़ कर बस आंसू से रिश्ता जोड़ लिया,
प्रकृति के क्रूर अत्याचार और चिंता की शिकार ममता को चिता तक जाने में ज्यादा देर नहीं लगी।
महीने भर के अंदर ममता दुनिया छोड़ जा चुकी थी। हमारी सरकार ने तो भगदड़ में मरने वालों की संख्या पहले ही कम बताई थी..
पर क्या ममता की मौत का जिम्मेदार भी भगदड़ नहीं था, यह तो कोई नहीं बता सकता?
पर किसी का परिवार उजड़ गया था, किसी घर की लक्ष्मी हमेशा के लिए सब से रूठ गई थी… तीन युवा बेटे से उसकी मां छीन गई थी… या यू कहें पूरा परिवार अनाथ हो गया था, बिखर गया था…
Priti kumari