June 29, 2025

इश्क कुछ जानता नहीं कहानी भाग

0
WhatsApp Image 2025-06-05 at 09.03.36_527547fa
एक हफ्ता बीता ही था कि एक दिन मान्या के रोने की आवाज से मेरा ध्यान उस तरफ खींच गया। पलक भी जोर-जोर से चीख रही थी। अब मुझसे रुका नहीं गया। मैं भागकर पलक के दरवाजे पर गया और बदहवास सा कॉलबेल बजाने लगा। उधर से घबराई हुई पलक ने दरवाजा खोला वो फोन पर किसी से बात कर रही थी। उसने दरवाजा खोला और हाथों से अंदर आने का इशारा किया। मैं घर के अंदर आ गया उसने बैठने का इशारा किया और वो अंदर चली गई। जब वो बाहर आई उसके साथ एक डॉक्टर भी थे। डॉक्टर मान्या को अस्पताल में एडमिट करवाने के लिए कह रहे थे। पलक घबराई हुई सी बोली- जी डॉक्टर बस अभी आती हूं। डॉक्टर के जाने के बाद मैंने पलक से पूछा- क्या हुआ मान्या को? वो भर्राई आवाज के साथ बोली लगता है इसे फूड प्वाइजनिंग हो गई है। हीमोग्लोबीन भी कम है, तुरंत एडमिट करना पड़ेगा। मैं पूछ बैठा- मैं साथ चलूं? वो थोड़ी देर ठिठकी फिर बोली- अगर आप चलोगे तो कैब बुलाने की जरुरत नहीं पड़ेगी। ये कहते हुए उसने कार की चाबी मुझे दे दी और मान्या के कमरे की ओर बढ़ी… मैं भी उसके पीछे-पीछे आया… आप हटो मैं मान्या को उठा लेता हूं… ये कहते हुए मैंने मान्या को गोद में उठा लिया। मैं गाड़ी ड्राइव कर रहा था… वो मान्या का सिर गोद में लिए पीछे बैठी थी। उसकी आंखों में आंसू थे कभी-कभी मान्या का सिर सहलाते हुए उसके आंसू उसकी आंखों का साथ छोड़ उसके गाल पर मोती की तरह लुढ़क जाते।
वहां अस्पताल में मान्या के कई टेस्ट हुए। सारी रिपोर्ट देखने के बाद पता चला कि उसे अपेंडिसाइटिस है लिहाजा ऑपरेशन जरूरी है। ये सब पलक को अंदर ही अंदर तोड़ रहा था पर वो खुद को संभाले हुए थी। मान्या को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया जहां करीब 2 घंटे ऑपरेशन चला। डॉक्टर ने बाहर आकर कहा कि ऑपरेशन सफल रहा। पलक फफककर रो पड़ी और वहीं पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। थोड़ी देर रोती रही फिर उठी अपना चेहरा साफ किया और मुझसे बोली आप घर चले जाओ। थैंक्स… आपने मेरी इतनी मदद की…. मैं पलक को बस अपलक देख रहा था। मुझे उसमें एक ऐसी मां नजर आ रही थी जो कभी टूटती, कभी बिखरती तो कभी सारे जतन कर खुद ही संभल जाती। मैं बोला- कोई नहीं मैं यहीं रूक जाता हूं…अगर आप कहें तो कैंटीन चलकर कुछ खा लें? उसने अनमने से सिर हिलाया और हम कैंटीन की ओर बढ़ चले। वहां खाना ऑर्डर किया… खाना आते ही मैं टूट पड़ा क्योंकि मुझे बहुत तेज भूख लगी थी। खाते हुए जब मैंने पलक की ओर देखा तो वो अनमने ढंग से खा रही थी। मैंने पूछा- कुछ और मंगाऊं…? वो कुछ नहीं बोली…तब ही उसके फोन की घंटीतब ही उसके फोन की घंटी बजी। उसने फोन रिसीव किया और धीरे-धीरे बात करने लगी। उसकी बातों से ऐसा जाहिर हो रहा था कि कोई बहुत ही करीब का है जिससे वह बात कर रही है। वह मान्या से जुड़े सारे अपडेट दे रही थी। वह बात करते हुए मान्या के रूम के पास पहुंच गई। मैं भी दूरी बनाकर चुपचाप उसके पीछे चल रहा था।

बात खत्म करके वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली,
“शुक्रिया, आपने मेरी इतनी मदद की, अपना कीमती वक्त हमें दिया। आप चाहो तो घर जा सकते हो, आपको ऑफिस भी जाना होगा।”

मैं कुछ कहता, इससे पहले ही मेरी नजर सामने से आती हुई एक महिला पर पड़ी, जो हू-ब-हू पलक जैसी थी। वह सीधे पलक के पास आई और उसे गले लगाकर पूछने लगी,
“मान्या कैसी है?”

पलक की आंखों में हल्की सी नमी तैर गई। उसने कहा-
“अब ठीक है। डॉक्टर ने कहा है दो दिन बाद डिस्चार्ज कर देंगे, अगर सब ठीक रहा तो।”

फिर मेरी ओर देखते हुए बोली,
“यह है धृति, मेरी जुड़वां बहन।”

मैंने ध्यान से देखा — दोनों की कद-काठी में कोई अंतर नहीं था। दोनों के बाल और चेहरे में भी कोई फर्क नहीं था। बहुत ध्यान से देखने पर धृति का रंग थोड़ा कम था और आंखें भूरी थीं।

धृति बोल उठी,
“ऐसे क्या देख रहे हो? धृति मतलब छाया। मैं पलक की छाया हूं और यह मुझसे 10 मिनट बड़ी है।”

पलक गंभीर थी और धृति चंचल, बातूनी और चुलबुली।

तभी एक नर्स बाहर आई और बोली,
“अब आप सब मान्या से मिल सकते हैं।”

हम तीनों अंदर मिलने गए। अपनी मां और मासी को देखकर मान्या सुकून महसूस कर रही थी। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।

धृति उसका माथा चूमते हुए बोली,
“लव यू… एंड ऑल द बेस्ट बच्चा, जल्दी से घर आ जा।”

पलक बोली,
“तुम दोनों घर चली जाओ, तुम भी थकी होगी।”

हम दोनों जब वेब से घर आ रहे थे तो बातचीत के दौरान पता चला कि धृति एक मॉडल है, जिसे ज़्यादातर समय घर से बाहर, अलग-अलग शहरों में रहना पड़ता है। यहां वह मुश्किल से हफ्ते-दो हफ्ते ही रुक पाती है, बाकी समय भाग-दौड़ में लगी रहती है।

अगली सुबह, सुबह 6:00 बज रहे थे। फिर से वही संगीत की ध्वनि मेरे कानों में आने लगी। मैंने तकिया अपने कान पर रख लिया। मुझे लगा मैं ख्वाब देख रहा हूं पर आवाज आती रही। मैं उठकर जैसे ही बालकनी में गया, वह योगा कर रही थी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरा आकर्षण पलक नहीं, धृति है।

धृति के आने से वह बालकनी, वहां के पौधे ही नहीं — मेरी जिंदगी भी गुलजार हो गई थी।
बजी। उसने फोन रिसीव किया और धीरे-धीरे बात करने लगी। उसकी बातों से ऐसा जाहिर हो रहा था कि कोई बहुत ही करीब का है जिससे वह बात कर रही है। वह मान्या से जुड़े सारे अपडेट दे रही थी। वह बात करते हुए मान्या के रूम के पास पहुंच गई। मैं भी दूरी बनाकर चुपचाप उसके पीछे चल रहा था।

बात खत्म करके वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली,
“शुक्रिया, आपने मेरी इतनी मदद की, अपना कीमती वक्त हमें दिया। आप चाहो तो घर जा सकते हो, आपको ऑफिस भी जाना होगा।”

मैं कुछ कहता, इससे पहले ही मेरी नजर सामने से आती हुई एक महिला पर पड़ी, जो हू-ब-हू पलक जैसी थी। वह सीधे पलक के पास आई और उसे गले लगाकर पूछने लगी,
“मान्या कैसी है?”

पलक की आंखों में हल्की सी नमी तैर गई। उसने कहा-
“अब ठीक है। डॉक्टर ने कहा है दो दिन बाद डिस्चार्ज कर देंगे, अगर सब ठीक रहा तो।”

फिर मेरी ओर देखते हुए बोली,
“यह है धृति, मेरी जुड़वां बहन।”

मैंने ध्यान से देखा — दोनों की कद-काठी में कोई अंतर नहीं था। दोनों के बाल और चेहरे में भी कोई फर्क नहीं था। बहुत ध्यान से देखने पर धृति का रंग थोड़ा कम था और आंखें भूरी थीं।

धृति बोल उठी,
“ऐसे क्या देख रहे हो? धृति मतलब छाया। मैं पलक की छाया हूं और यह मुझसे 10 मिनट बड़ी है।”

पलक गंभीर थी और धृति चंचल, बातूनी और चुलबुली।

तभी एक नर्स बाहर आई और बोली,
“अब आप सब मान्या से मिल सकते हैं।”

हम तीनों अंदर मिलने गए। अपनी मां और मासी को देखकर मान्या सुकून महसूस कर रही थी। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।

धृति उसका माथा चूमते हुए बोली,
“लव यू… एंड ऑल द बेस्ट बच्चा, जल्दी से घर आ जा।”

पलक बोली,
“तुम दोनों घर चली जाओ, तुम भी थकी होगी।”

हम दोनों जब वेब से घर आ रहे थे तो बातचीत के दौरान पता चला कि धृति एक मॉडल है, जिसे ज़्यादातर समय घर से बाहर, अलग-अलग शहरों में रहना पड़ता है। यहां वह मुश्किल से हफ्ते-दो हफ्ते ही रुक पाती है, बाकी समय भाग-दौड़ में लगी रहती है।

अगली सुबह, सुबह 6:00 बज रहे थे। फिर से वही संगीत की ध्वनि मेरे कानों में आने लगी। मैंने तकिया अपने कान पर रख लिया। मुझे लगा मैं ख्वाब देख रहा हूं पर आवाज आती रही। मैं उठकर जैसे ही बालकनी में गया, वह योगा कर रही थी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरा आकर्षण पलक नहीं, धृति है।

धृति के आने से वह बालकनी, वहां के पौधे ही नहीं — मेरी जिंदगी भी गुलजार हो गई थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *