इश्क कुछ जानता नहीं कहानी भाग

बात खत्म करके वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली,
“शुक्रिया, आपने मेरी इतनी मदद की, अपना कीमती वक्त हमें दिया। आप चाहो तो घर जा सकते हो, आपको ऑफिस भी जाना होगा।”
मैं कुछ कहता, इससे पहले ही मेरी नजर सामने से आती हुई एक महिला पर पड़ी, जो हू-ब-हू पलक जैसी थी। वह सीधे पलक के पास आई और उसे गले लगाकर पूछने लगी,
“मान्या कैसी है?”
पलक की आंखों में हल्की सी नमी तैर गई। उसने कहा-
“अब ठीक है। डॉक्टर ने कहा है दो दिन बाद डिस्चार्ज कर देंगे, अगर सब ठीक रहा तो।”
फिर मेरी ओर देखते हुए बोली,
“यह है धृति, मेरी जुड़वां बहन।”
मैंने ध्यान से देखा — दोनों की कद-काठी में कोई अंतर नहीं था। दोनों के बाल और चेहरे में भी कोई फर्क नहीं था। बहुत ध्यान से देखने पर धृति का रंग थोड़ा कम था और आंखें भूरी थीं।
धृति बोल उठी,
“ऐसे क्या देख रहे हो? धृति मतलब छाया। मैं पलक की छाया हूं और यह मुझसे 10 मिनट बड़ी है।”
पलक गंभीर थी और धृति चंचल, बातूनी और चुलबुली।
तभी एक नर्स बाहर आई और बोली,
“अब आप सब मान्या से मिल सकते हैं।”
हम तीनों अंदर मिलने गए। अपनी मां और मासी को देखकर मान्या सुकून महसूस कर रही थी। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।
धृति उसका माथा चूमते हुए बोली,
“लव यू… एंड ऑल द बेस्ट बच्चा, जल्दी से घर आ जा।”
पलक बोली,
“तुम दोनों घर चली जाओ, तुम भी थकी होगी।”
हम दोनों जब वेब से घर आ रहे थे तो बातचीत के दौरान पता चला कि धृति एक मॉडल है, जिसे ज़्यादातर समय घर से बाहर, अलग-अलग शहरों में रहना पड़ता है। यहां वह मुश्किल से हफ्ते-दो हफ्ते ही रुक पाती है, बाकी समय भाग-दौड़ में लगी रहती है।
अगली सुबह, सुबह 6:00 बज रहे थे। फिर से वही संगीत की ध्वनि मेरे कानों में आने लगी। मैंने तकिया अपने कान पर रख लिया। मुझे लगा मैं ख्वाब देख रहा हूं पर आवाज आती रही। मैं उठकर जैसे ही बालकनी में गया, वह योगा कर रही थी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरा आकर्षण पलक नहीं, धृति है।
धृति के आने से वह बालकनी, वहां के पौधे ही नहीं — मेरी जिंदगी भी गुलजार हो गई थी।
बजी। उसने फोन रिसीव किया और धीरे-धीरे बात करने लगी। उसकी बातों से ऐसा जाहिर हो रहा था कि कोई बहुत ही करीब का है जिससे वह बात कर रही है। वह मान्या से जुड़े सारे अपडेट दे रही थी। वह बात करते हुए मान्या के रूम के पास पहुंच गई। मैं भी दूरी बनाकर चुपचाप उसके पीछे चल रहा था।
बात खत्म करके वह मेरी तरफ मुड़ी और बोली,
“शुक्रिया, आपने मेरी इतनी मदद की, अपना कीमती वक्त हमें दिया। आप चाहो तो घर जा सकते हो, आपको ऑफिस भी जाना होगा।”
मैं कुछ कहता, इससे पहले ही मेरी नजर सामने से आती हुई एक महिला पर पड़ी, जो हू-ब-हू पलक जैसी थी। वह सीधे पलक के पास आई और उसे गले लगाकर पूछने लगी,
“मान्या कैसी है?”
पलक की आंखों में हल्की सी नमी तैर गई। उसने कहा-
“अब ठीक है। डॉक्टर ने कहा है दो दिन बाद डिस्चार्ज कर देंगे, अगर सब ठीक रहा तो।”
फिर मेरी ओर देखते हुए बोली,
“यह है धृति, मेरी जुड़वां बहन।”
मैंने ध्यान से देखा — दोनों की कद-काठी में कोई अंतर नहीं था। दोनों के बाल और चेहरे में भी कोई फर्क नहीं था। बहुत ध्यान से देखने पर धृति का रंग थोड़ा कम था और आंखें भूरी थीं।
धृति बोल उठी,
“ऐसे क्या देख रहे हो? धृति मतलब छाया। मैं पलक की छाया हूं और यह मुझसे 10 मिनट बड़ी है।”
पलक गंभीर थी और धृति चंचल, बातूनी और चुलबुली।
तभी एक नर्स बाहर आई और बोली,
“अब आप सब मान्या से मिल सकते हैं।”
हम तीनों अंदर मिलने गए। अपनी मां और मासी को देखकर मान्या सुकून महसूस कर रही थी। उसके चेहरे पर खुशी के भाव थे।
धृति उसका माथा चूमते हुए बोली,
“लव यू… एंड ऑल द बेस्ट बच्चा, जल्दी से घर आ जा।”
पलक बोली,
“तुम दोनों घर चली जाओ, तुम भी थकी होगी।”
हम दोनों जब वेब से घर आ रहे थे तो बातचीत के दौरान पता चला कि धृति एक मॉडल है, जिसे ज़्यादातर समय घर से बाहर, अलग-अलग शहरों में रहना पड़ता है। यहां वह मुश्किल से हफ्ते-दो हफ्ते ही रुक पाती है, बाकी समय भाग-दौड़ में लगी रहती है।
अगली सुबह, सुबह 6:00 बज रहे थे। फिर से वही संगीत की ध्वनि मेरे कानों में आने लगी। मैंने तकिया अपने कान पर रख लिया। मुझे लगा मैं ख्वाब देख रहा हूं पर आवाज आती रही। मैं उठकर जैसे ही बालकनी में गया, वह योगा कर रही थी।
मुझे समझते देर नहीं लगी कि मेरा आकर्षण पलक नहीं, धृति है।
धृति के आने से वह बालकनी, वहां के पौधे ही नहीं — मेरी जिंदगी भी गुलजार हो गई थी।