December 23, 2025
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प्रीति कुमारी

 

(यह कहानी किसी भी जाति, धर्म या वर्ण व्यवस्था विशेष पर नहीं है, यह कहानी धार्मिक और वैज्ञानिक परिकल्पना की अनोखी उड़ान है)

गांव का सबसे बड़ा और आलीशान घर, चार भाइयों में सबसे छोटी पूरे खानदान की एकलौती और लाडली गायत्री। जिसे सभी पलकों पर बिठाकर रखते थे। दादी की आंखों का तारा या दादी की मानें तो उनके सालों के पूजा-पाठ का फल थी। गायत्री और दादी का ज्यादा वक्त एक साथ ही गुजरता। दोनों का कमरा पहली मंजिल पर आमने-सामने था और उसी गैलरी में था एक बड़ा सा मंदिर। दोनों साथ जागतीं, नहाती, सजती-संवरती और पूजा की तैयारी में लग जातीं। दादी रोज नियम से पाठ करतीं और गायत्री अपनी मधुर और सुरीली आवाज में भजन गाती या यूं कहें ब्राह्मण परिवार में पली बढ़ी गायत्री बेहद पारंपरिक परिवेश में पल रही थी। उसे बचपन से ही पूजा-पाठ, छुआ-छूत, जाति व्यवस्था औरत की हद और सीमा की शिक्षा दी जा रही थी। उसे मोबाइल से दूर रखा गया था। गायत्री को शिक्षा तो दी जा रही थी पर विज्ञान की नहीं संस्कार और धर्म की। यूं तो गायत्री सुंदर और समझदार थी पर आधुनिकता और आधुनिक शिक्षा से कोसों दूर। उसके मन के अनगिनत, अनसुलझे सवालों को अशुभ और आस्था पर किए जाने वाला शक के बंधन में जकड़कर उसे खामोश कर दिया गया था। उसका हंसता-खिलखिलता रुप लावण्य, मधुर आवाज ऐसी थी कि कोई भी मंत्रमुग्ध होकर उसकी ओर आकर्षित होकर उससे दोस्ती करना चाहता पर छुआ-छूत और जाति-व्यवस्था जैसे संकीर्ण सोच की वजह से अपने घर काम करनेवाली हमउम्र लड़कियों को भी हिकारत और गुस्से से देखती। गायत्री को लगता छोटी जाति के लोग कीड़े-मकोड़े और धरती पर बोझ की तरह हैं। इसे इसके पूर्व जन्म के पाप कर्मों के चलते छोटे कुल में जन्म लेना पड़ा है। वह साधु और पुण्यात्मा है इसलिए ब्रह्मण जैसे श्रेष्ठ कुल में जन्मी है।

पाप-पुण्य जैसे मायाजाल में फंस चुकी गायत्री भक्ति और भय का मिश्रण थी बेल की तरह तेजी से बढ़ती गायत्री कब शादी योग्य हो गई, यह तो गायत्री को भी तब पता चला, जब उसकी दादी ने बताया कि उसके लिए एक लड़का पसंद कर लिया गया है। जल्द ही उसकी शादी होने वाली है।

गायत्री की शादी एक आधुनिक विचारधारा वाले युवक से तय की गई थी। जो वैज्ञानिक था और ज्योतिष में भी उसकी रुचि थी परंतु वो खगोलिय विज्ञान के दृष्टिकोण से ज्योतिष को देखता था। वह नासा से जुड़ी परियोजना में काम कर चुका था साथ ही दूसरी परियोजनाओं के लिए कई दूसरे विषयों पर शोध कर रहा था। बहुत ही धूम-धाम से दोनों की शादी हुई।

गायत्री के लिए वह जगह ही नई नहीं थी बल्कि नया घर, नया परिवेश, नया वातावरण और काम करने के अबूझ और अनसुलझे तरीके से उसका दिमाग चकरा जाता। घंटों में होने वाला काम यहां एक स्विच दबाने मात्र से खत्म हो जाता। आर्यन के तकनीकी ज्ञान और आधुनिक सोच समझ के कारण उसकी जिंदगी बहुत ही सुलझी हुई थी,

पर यही सब गायत्री की जिंदगी का उलझन बन गया था। पर आर्यन के प्रेम और हौसला-आफजाई के साथ-साथ गायत्री का सब्र और तेज दिमाग ने ऐसा जादू किया कि दो महीने में ही गायत्री निपुण और तकनीकी का इस्तेमाल भलिभांति सीखा गई । दोनों की जिंदगी हंसी-खुशी गुजर रही थी कि एक दिन आर्यन कंप्यूटर पर बैठा काम कर रहा था तबही गायत्री अपना काम खत्म करके जब वहाँ आई। आर्यन अक्सर काम करते हुए अपना हेडफोन पहने रहता था पर आज हेडफोन कंप्यूटर टेबल पर पड़ा था और गायत्री के कानों में आवाज आ रही थी मोक्ष का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं, प्रकृति जानती है विनाश और निर्माण, जिसका निर्माण हुआ है उसका विनाश भी होगा और जो विनाश हुआ है उसका निर्माण भी होगा। प्रकृति उसकी प्रवृत्ति उसका रूप रंग भले ही नया कर दे पर निर्माण होना अटल सत्य है इसलिए मोक्ष जैसा कोई भी शब्द असंभव प्रतीत होता है।

 

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इसके आगे गायत्री कुछ भी सुन नहीं पाई गायत्री को जैसे काठ मार गया हो वह भय और आश्चर्य के कारण कुछ बोल नहीं पा रही थी। उसके कदम लड़खड़ा गए वह धम्म से जमीन पर बैठ गई तभी आर्यन को अपने पीछे किसी के होने का एहसास हुआ, वह पीछे मुड़ा उसने देखा, गायत्री बुत सी जमीन पर बैठी है। वह उसके पास आया और बोला, गायत्री तुम ठीक तो हो…क्या हुआ तुम्हें? बताओ? उसका शरीर कांप रहा था वह कुछ बोल नहीं पा रही थी ।

उसे लग रहा था कि वह अस्तित्वहीन हो गई है। उसकी आस्था, उसका विश्वास, उसके इतने सालों के कर्म और पूजा पाठ को पल में किसी ने उसके शरीर से खींच कर अलग कर दिया है उसके मन में करोड़ों सवाल एक साथ उठ खड़े हुए।

तभी पास खड़ा रोबोट पानी से भरे गिलास के साथ वहां खड़ा हो गया, आर्यन ने पानी लेते हुए कहा, – “एलेक्सा गो टू स्लीप मोड विथ ऑल फ्रेंड” .

ओके सर”! की आवाज के साथ वहां के सारे रोबोट स्लीप मोड में चले गए पर एलेक्सा अभी भी ऑन था,

आर्यन ने फिर कहा, – “एलेक्सा टर्न ऑफ” एलेक्सा से आवाज आई, “योर फ्रेंड नीड माय हेल्प सर!”

आर्यन ने कहा, ओके हेल्प,

एलेक्सा बोला – मैम, आप अपना सवाल पूछो

गायत्री का हाथ थामे आर्यन भी जमीन पर बैठा था, गायत्री का सर आर्यन के कंधे पर टिका था।

धीरे-धीरे गायत्री जब सामान्य हुई तो उसने सवाल किया, – “धर्म क्या है” ?

एलेक्सा से जवाब आया, – धर्म जीवन जीने का एक तरीका मात्र है, नैतिक सिद्धांतों का, प्रथाओं का समूह है, जो हमें दृष्टिकोण प्रदान करता है।

धर्म का मतलब वह आचरण, विचार, उसूल, मूल्य और सिद्धांत, जो धारण करने योग्य हो, वही धर्म है।

गायत्री ने अगला सवाल पूछा,” जाति क्या है”?

अलेक्सा से आवाज आई, यह एक जटिल और विवादास्पद विषय है जो समाज को समूह में विभाजित करता है दरअसल यह एक सामाजिक व्यवस्था थी, जिसका मकसद समाज को योग्यता और कर्म के आधार पर बांटना था।. …

थोड़ी देर तक वहां शांति पसरी रही।

अचानक ही अलेक्सा से” ओम , ओम” जैसी ध्वनि निकलने लगी।

आर्यन हड़बड़ा गया उसके चेहरे पर डर साफ झलक रहा था।

आर्यन- नहीं मत करो,

गायत्री! रुको, अलेक्सा! रुको, गायत्री!

तुम्हें पिछले जन्म के बारे में क्यों जानना है, वर्तमान की बात करो,.. गायत्री के चेहरे पर बेचैनी स्पष्ट दिख रही थी, आर्यन तारों और तकनीक से बात करने वाला वैज्ञानिक,

उसकी आंखों में नमी उतर आयी पर अलेक्सा उस नमी को नहीं पढ़ पा रहा था।

वह गायत्री से कह रहा था, पिछले जन्म की स्मृतियां तुम्हें छलनी कर देगी, भविष्य में जीना है, पीछे क्यों देखना है तुम्हें.. , गायत्री!

गायत्री की आंखों में ठहरे आंसू गालों पर लुढ़क आए, उसने कहा, मुझे खुद को जानना है…

अपने अधूरेपन को जानना है.. मैंने अपनी उम्र का एक बहुत बड़ा हिस्सा दादी के साथ रहकर मोक्ष के मोह में गुजारी है.. हमेशा अपने सवालों से भागती आई हूं.. पर आज, आर्यन.. मुझे मेरे सवालों को जान लेने दो.. नहीं तो मेरी बाकी उम्र भी अज्ञानता में गुजर जाएगी… मुझ पर रहम करो, आर्यन.. उसने हाथ जोड़ते हुए, आर्यन की आंखों में देखते हुए कहा- मुझे देखो! आर्यन.. कितनी अधूरी हूं मैं..

यह कहकर वह फफक कर रो पड़ी।

आर्यन की आंखों में भी आंसू थे, उसने गायत्री को अपनी सुपर कंप्यूटर के पास बिठाया, धीरे-धीरे कुर्सी नीचे की तरफ खिसकती गई, वह एक आरामदायक कुर्सी बन गई थी। जहां गायत्री का शरीर और मस्तिष्क दोनों ही रिलैक्स मोड में पहुंच गया।

तब कंप्यूटर स्क्रीन से दो रोशनी निकली , एक उसके हार्ट पर फोकस थी तो दूसरी दोनों आइब्रो के बीच ललाट पर…

सुपर कंप्यूटर की स्क्रीन पर झलमिलाती तस्वीरें उभरने लगी….

कोड, ग्राफ, ब्रेनवेव्स….

और फिर-

एक मंदिर सफेद पत्थरों से बना, सूरज की किरणें में चमकता,

सोने जैसा।

और वहां एक पाँच साल की छोटी मासूम बच्ची दूब से भी नरम हाथ, पाँव, भोली आंखों में सवाल और कौतूहल, मन में श्रद्धा वह मंदिर के गर्भ गृह की सीढ़ियों पर खड़ी थी हाथ जोड़कर उस सुंदर मूर्ति की ओर देख रही थी

मां दुर्गा की आभा से दमकती हुई अलंकृत( श्रृंगार किया हुआ) मूर्ति बच्ची ने धीरे से एक पग आगे बढ़ाया पर तभी किसी ने झटक कर उसे पीछे कर दिया। “

अरे! अछूतों को अंदर जाने की इजाजत नहीं!”

तू छूएगी तो अपवित्र हो जाएगा मंदिर!” बच्ची की आंखों में आंसू थे, पर उसने किसी से कुछ नहीं कहा।

वह वही सीढ़ियों के नीचे बैठ गई, हाथ जोड़कर दूर से ही पूजा करने लगी।

गायत्री की आंखों से आंसू बह रहे थे। तभी स्क्रीन पर बच्ची उठी और चलने लगी वह जहां पहुंची वह शायद उसकी बस्ती थी, कच्चा घर, हवा में एक दुर्गंध, सड़ी हुई नाली।

उसकी मां कुछ दूर पर झुकी हुई है, जगह-जगह से उसकी साड़ी और चोली फटी हुई है।

हाथ में एक लोहे की बाल्टी और लकड़ी की करछी, वह मैला साफ कर रही है।

उस गड्ढे से मैला निकाल कर दूर ले जा रही है।

उसकी मां के हाथ फफोलों से भरे हुए हैं।

वह अपनी मां के पास जाती है और पूछती है – “मुझे मंदिर जाना है मां!” “देवी को देखना है”, पर गांव के पंडित ने कहा, कि मेरे छूने से वह मंदिर अपवित्र हो जाएगा मां! “

माँ ने उसकी तरफ देखा, बिना कुछ बोले ही बाल्टी उठा ली, गायत्री की आंखों से लगातार आंसू बहे जा रहे थे।

आर्यन ने लपककर कंप्यूटर बंद कर दिया।

गायत्री ने अपनी आंखें बंद कर ली, उसका शरीर कांप रहा था।

थोड़ी देर तक उसकी आंखों से आंसू बहते रहे। आर्यन ने उसे बाहों में भर लिया। अब तुम जहां चाहो, वहां जा सकती हो, क्योंकि इस जन्म में तुम्हें कोई नहीं रोक सकता, ना जाति, ना पंथ, ना कोई डर, गायत्री आर्यन की तरफ देखते हुए बोली – “आज मुझे समझ में आया, क्यों मेरा मन मंदिर की सीढ़ियों पर अटकता रहा हमेशा..

मैं वह लड़की थी.. जिसकी मां ने मैला उठाया…

और मैं मंदिर के बाहर भूखी बैठी रही… पूजा नहीं कर पायी…

समाज ने मुझे अपवित्र, अशुद्ध कहा..

कोई खुद को पूरा नहीं जानता…

कोई नहीं जानता कि उसकी आत्मा ने क्या-क्या कष्ट सहे हैं …

सब अधूरे हैं..

सबका ज्ञान अधूरा है..

कोई खुद को पूरा नहीं समझ पाया…

आर्यन ने उसके होंठ पर अपनी उंगली रख दी, बस, अब और नहीं…

इन सवालों में मत उलझो क्योंकि इसका कोई तर्क, कोई विज्ञान नहीं जो किसी की इस पीड़ा को मिटा सके बस

इंसानियत का ज्ञान ही एकमात्र उपाय है इसका..

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