“तुझ में नयापन”
वह रेशमी कुर्ता जो बहुत पसंद था मुझे,
वक्त के साथ-साथ नापसंद हो गया…
अलमारी के कोने में कहीं खामोश पड़ा है।
वह गाने जो दिल में उतर जाते थे,
अब बस यादों में गूंजते हैं….
वह स्वाद जो मन को बहुत भाता था कभी,
अब फीका सा लगने लगा है….
वो राहें जिन पर मन बेकाबू सा चलता था,
उन मोड़ों से गुजरना भारी है…
वो चेहरे जो कभी रोशनी बिखेरते थे,
उनमें भी कुछ धुन्ध सी छा गई है.. ..
वक्त ने सब कुछ बदल दिया।
हर एहसास ने एक नया चेहरा ले लिया।
पर तू….
मेरे हमसफर,
मेरे चित चोर,
तुझ में नयापन,
तेरा नयापन और भी नायाब होता जा रहा है….
तू वक्त के साथ-साथ और भी गहरा होता जा रहा है…
तू रेशम से भी मुलायम है..।
तेरी मुस्कान मिठास से भी मीठी है..। वक्त की हर परत में अपना होता जा रहा है..
क्यों तु पुराना नहीं होता?
क्यु तुझसे जी नहीं भरता?