ना तोलें रिश्ते को पैसों से…

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जिस प्रकार पेड़ की सारी पत्तियाँ समान नहीं होती।
हमारे हाथों की सारी उँगलियाँ समान नहीं होती, ठीक उसी प्रकार किसी भी इंसान के सारे रिश्तेदार एक समान नहीं होते।
कुछ तो बहुत पैसे वाले होते हैं कुछ की सिर्फ जरूरत ही पूरी हो पाती है।
कुछ विदेश में, कुछ महानगर में तो कुछ गाँव में रहते हैंं क्योंकि असमानता प्रकृति का नियम है।
इतनी छोटी सी बात जाने क्यों लोगों के समझ में नहीं आती। महानगर या शहर में रहने वाले लोग अपने गाँव में बसे रिश्तेदार को, अपने परिचित या दोस्तों से मिलाना नहीं चाहते, उन्हें शर्मिंदगी महसूस होती है। हम इंसानों की सोच इतनी छोटी क्यों है? हम दिल के रिश्तों को तवज्जो क्यों नही देते? सच्चे मन और अच्छाई को सर आंखों पर क्यों नहीं बिठाते? क्यों शर्माते हैं अपने ही रिश्तेदार से, अपनी ही धरातल से, अपनी नींव से, अपने भाई बहन से, अपने माता-पिता से, या फिर बिहारी होने से। क्योंकि हम वास्तविक( रियल) नहीं है…. !
हम खोखले हैं… हम भीड़ में चलना जानते हैं… । हमारा खुद का, अकेले का कोई वज़ूद नहीं….क्युंकी हममें ज्ञान की कमी है, ठहरिए और अपना ज्ञान बढ़ाईए।
अमीरी, गरीबी, शहरी जीवन और ग्रामीण जीवन यह सब हिस्सा है हमारी जिंदगी का,…. अगर आपके भी रिश्तेदार बहुत पैसे वाले हैं और आपसे मिलने मिलाने में शर्मिंदगी महसूस करते हैं तो आपको भी उस पर फक्र करने की जरूरत नहीं, क्यूंकि जिसके लिए आप बेवजह शर्मिंदगी का विषय हैं वह आपके लिए फख्र कैसे हो सकता है यह सोचनीय है

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