June 28, 2025

इश्क कुछ जानता नहीं.. (कहानी) भाग – 1

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अभी दो दिन पहले ही मैं अपने नए फ्लैट में शिफ्ट हुआ। फ्लैट काफी बड़ा था और अच्छा भी। उस हिसाब से उसका रेंट कम था इसलिए मेरे मन के किसी कोने में शक घर कर गया था। अच्छी चीजें अगर सस्ते दामों में मिल जाए या किसी का दिया अच्छा गिफ्ट भी हमेशा शक के दायरे में ही रहता है। मैं वहां की हर चीज को शक भरी नजरों से देखता हुआ बालकनी में गया। सोसाइटी अच्छी थी। सामने की बालकनी में पौधे अटे पड़े थे। बहुत सारे अलग-अलग तरह के प्लांटर और हैंगिंग डेकोरेटिव आइटम, दो-तीन तरह की आवाजें भी आ रही थीं विंड चाइम की। हवा के झोंके के साथ मानो वहां संगीत उत्पन्न हो रहा है। मुझे ये समझते देर ना लगी कि यहां रहने वाला शख्स बहुत ही शौकीन होगा या यूं कहें बालकनी अपने आप में संपूर्ण थी। मैं भी शुरू से ही प्रकृतिप्रेमी रहा हूं इसलिए मेरे मन में वहां के लिए एक सम्मोहन जाग गया। मन में दबी एक इच्छा थी कि कभी मौका मिले तो उस बालकनी में जाकर उसे भरपूर नजरों से देख पाऊं। बहुत सारे उथल-पुथल के साथ मैं रात करीब साढ़े 10 तक सो गया।
सुबह के 6 बज रहे होंगे मेरी नींद चिड़ियों के मधुर कलरव के साथ खुल गई। आदतन मैं इतनी जल्दी जागता नहीं इसलिए अभी मैं जागना नहीं चाह रहा था। मैं करवट बदलते हुए फिर सोने की कोशिश करने लगा। इतने में विंडचाइम की ध्वनि के साथ कुछ संगीत के स्वर भी मेरे कानों में आने लगी। मैं झल्लाता हुआ बरबस बोल पड़ा- पता नहीं ये कैसी सोसाइटी है कोई सोने भी नहीं देता। बालकनी में निकला- पता नहीं कितना शोर है। मुझे मेरे बालकनी के सामने सिर्फ खड़ी गाड़ियां ही दिख रही थीं। यह ध्वनि तो बगल वाली बालकनी से आ रही है। जब कानों ने ये महसूस किया तो मैं उस तरफ देखने लगा। वहां एक खूबसूरत सी लड़की तल्लीनता से योगा कर रही थी। उसका चेहरा तो मैं नहीं देख पा रहा था पर उसके सुडौल शरीर की बनावट के साथ उसका योगा करना उसके शरीर की लचक, उसके हाथों का अलग-अलग पोज के साथ अलग-अलग मुद्राएं करना सबकुछ बहुत ही खूबसूरत था जो मेरी आंखों को सुकून दे रहा था। काले लोअर के साथ पहनी गई उसकी स्लीवलेस टॉप के बाहर चमकती पसीने की बूंद उसके शरीर पर मोती की तरह चमक रहे थे। संगीत के साथ बजते विंडचाइम की एक अलग धुन मानो सब तालमेल करने की चेष्टा में मेरे नींद के दुश्मन बने बैठे थे। एक पल को गुस्सा से भर उठा मेरा मन। खुद का स्वास्थ्य बना रही है तो क्या दूसरे की नींद खराब करेगी। मन हुआ जाकर पूछूं उससे- पर हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सारी गतिविधियां वो अपने अधिकार क्षेत्र में कर रही थी। मैं दखलअंदाजी नहीं कर सकता था। यह सोचते हुए मैं अपने कमरे में आ गया। पर नींद अब आंखों में थी नहीं इसलिए मैं अनमने मन से किचन में घुस गया। वहां चाय बनाई, एक कुर्सी बालकनी में खींची और वहीं चाय की चुस्कियां लेने लगा। कभी-कभी चोर निगाहें मेरी उसे देख भी लेती थी। अब गाना बंद हो चुका था। मैंने उधर देखा, वह जा चुकी थी उसका योगा खत्म हो गया था। पर वो फिर मुझे आती हुई दिखी अब वो अपने पौधों को पानी दे रही थी। उसके चेहरे पर खुशी का भाव था। वात्सल्य और प्रेम के साथ वह पौधों को सींच रही थी। ऐसा लग रहा था मानों एक-एक पौधे से बातें कर रही हो। तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं। कुछ पौधों की खराब हुई पत्तियों को निकालते हुए उन्हें सहला भी रही थी। उसकी तल्लीनता और पौधों के प्रति प्रेम देखकर मेरा गुस्सा तो छोड़ो एक आकर्षण सा हो गया था उसके प्रति… कितनी अच्छी है और अपने कामों के प्रति कितनी समर्पित।
शाम को सोसाइटी की लिफ्ट में वो मुझे दिख गई। मैंने गौर से उसको देखा। दमकता चेहरा, तीखे नैन-नक्श, बड़ी-बड़ी आंखें, सीधे बाल जिसकी कुछ लटों को उसने करीने से लाल कर रखा था। जो उसकी खूबसूरती को और भी निखार रहा था। उसके साथ छोटी सी बच्ची भी थी मैं बच्ची की तरफ देखकर मुसकुराया। बच्ची झट से मां के पीछे छुप गई। मैं समझ गया बच्ची से दोस्ती करना मुश्किल है और बच्ची की मम्मी समझ गई कि मेरी कुछ हरकत की वजह से बच्ची मां का सूट खींच रही है। वह मेरी तरफ देखने लगी, मैंने अपनी नजरें दूसरी तरफ घुमा ली।

जब भी मैं दफ्तर से घर आता अमूमन रोज ही वो दोनों मुझे लिफ्ट में मिल जाते। बच्ची मुझे देखती रहती और मैं भी उसे देखता रहता। एक दिन लिफ्ट में मैंने बच्ची से हलो कहा- वह मुस्काई… मैं अपने पॉकेट से चॉकलेट निकालकर उसे देने लगा। वो झट से अपनी मम्मी से चिपक गई। अब उसकी मम्मी मेरी तरफ देखने लगी तो मैंने मुस्काते हुए हौले से कहा- हाय! बहुत प्यारी बच्ची है। मैं उसके लिए चॉकलेट लाया था। वो कुछ नहीं बोली- मैंने आगे कहा- आपके सामने वाले फ्लैट में रहता हूं। 10 दिन पहले ही शिफ्ट किया है। उसने हाथ बढ़ाकर चॉकलेट से लिया और थैंक्यू बोलकर दूसरी तरफ मुड़ गई। मैं भी चुपचाप खड़ा रहा क्योंकि उसने बातचीत के सारे दरवाजे बंद कर दिए थे, पर अभी भी मैं बच्ची को कभी-कभी देख लेता। वो भी कभी-कभी मां के पीछे से मुझे देखती। इस बार उससे नजर मिलते ही मैंने बड़ी सी मुस्कान ओढ़ ली। बच्ची के होठों पर भी मुस्कान खिल गई। मुझे गुंजाइश दिख रही थी कि चॉकलेट से दोस्ती की जा सकती है। ये स्माइल का सिलसिला हमारा चल निकला। दो दिनों बाद मैं फिर चॉकलेट ले आया। इस बार लिफ्ट में जब मां-बेटी दिखी तो मैंने चॉकलेट बच्ची की तरफ बढ़ाया। इस बार बच्ची ने चॉकलेट पकड़ ली और धीरे से स्माइल के साथ थैंक्स कहा।

अब मैं रोज सुबह 6 बजे जगने लगा। सुबह जागता, चाय बनाता और बालकनी में कोई मैगजीन या अपना लैपटॉप लेकर बैठ जाता और चोर निगाह से उसकी ओर देखता रहता। उसे योगा करते देखना मुझे बहुत भाता। अब यह मेरे रूटीन का हिस्सा बन चुका था और उसे देखना मेरी आदत। आखिर चोर नजर से कब तक अपने चोर मन को समझाता रहता। एक दिन मन में ख्याल आया क्या वही सिर्फ मेरी आदत बन गई है। मैं उसकी आदत बन पाया हूं या नहीं यह ख्याल आते ही दिमाग में एक शैतानी आइडिया जन्म ले चुका था और मेरे होठों पर मुस्कराहट तैर गई थी। अब मैंने बालकनी में बैठना छोड़ दिया, सामने के रूम में बैठता और शीशेवाले दरवाजे के पीछे से उसे देखता रहता टकटकी लगाकर। अब चोरी-चोरी देखने की वजह नहीं रही क्योंकि सिर्फ मैं उसे देख पाता था वो मुझे नहीं देख पाती थी। मेरी ये तरकीब रंग ला रही थी। वह जिस तन्मयता से योगा किया करती थी वह एकाग्रता अब उसमें नहीं थी। उसकी नजरें बार-बार मेरी बालकनी की तरफ उठ जाती। दो दिन तक तो वह सामान्य रहने की कोशिश करती रही पर तीसरे दिन उसका एक घंटे का योगा आधे घंटे में निपट गया। उसकी नजरें अब बेचैन सी रहतीं मानो किसी को ढूंढ़ रही हैं। पौधे में पानी देते वक्त भी वह इधर-उधर देखती रहती उसकी ये बेचैनी मुझे बहुत सुकून दे रही थी। अब मैं जानबूझकर दफ्तर से देर से निकलता कि लिफ्ट में उससे ना टकराऊं। अभी एक हफ्ता ही हुआ था कि एक दिन किसी कारणवश मुझे अपने दफ्तर से सही टाइम पर निकलना पड़ा। मैंने देखा वो गार्ड से कुछ बात कर रही है। मुझे ऐसा महसूस हुआ कि वह कुछ मेरे ही बारे में पूछ रही है। मेरी सोच कितनी सही थी मैं ये नहीं जानता पर बच्ची ने मुझे देखते ही मेरी तरफ मेरी उंगली उठाकर मां का कुर्ता खींच दिया। उसकी उठती नजरों के साथ ही पल भर के लिए हमारी नजरें टकरा गईं। वह थोड़ी देर तक मुझे देखती रही पर मैंने नजरें नीची कल लीं।
बहुत दिनों बाद हम फिर लिफ्ट में साथ-साथ थे। पर एक गहरी खामोशी पसरी हुई थी।
इस घटना के बाद उसका बालकनी में आना लगभग बंद सा हो गया। ना वो योगा करने बालकनी में आती ना ही प्लांट में पानी देने। इतना बड़ा परिवर्तन वाकई सोचनीय था। उसने एक मेड रख लिया था जो अब उसके पौधों में पानी डालती। मेरी तरकीब मुझपर ही उल्टी पड़ गई थी। अब मैं उसे नहीं देख पाता था। मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मेरी नजरें कुछ ढूंढती सी रहतीं। एक खालीपन सा हमेशा घेरा रहता। दिल में एक मीठा-मीठा सा दर्द बना रहता। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। जी चाहता जोर-जोर से चीखूं, चिल्लाऊं, रोऊं या भागकर उसके दरवाजे पर पहुंच जाऊं। यह कैसी बेचैनी थी। घर काटने को दौड़ता मुझे, मैं बाहर निकल जाता पर यह क्या कहीं भी चैन नहीं था। आंखों को कुछ भी नहीं भा रहा था। और मन का घोड़ा बार-बार उसके दरवाजे पर दस्तकर देकर वापस आ जाता। मानो किसी ने सुकून छीन लिया हो और कलेजे में बेचैनी भर दी हो। मेरी हालत दोपहरी की लू की भांति सांय-सांय हो रही थी। मैं उठा और एक फैमिली पैक चॉकलेट खरीद लाया और सीधे उसके दरवाजे पर पहुंच गया। अभी कॉलबेल बजाने को उंगलियां स्वीच को छूने ही वाली थीं कि मेरे अंदर से आवाज आई- नहीं…! और उल्टे पैर मैं अपने घर आकर धम्म से सोफे पर बैठ गया। मैं अवाक् था अपनी हरकतों पर। शर्मिंदा था खुद की बेवकूफी पर और खुश भी कि बच गया।

थोड़ी देर आत्ममंथन करने के बाद मैं उठा और सीधे अपने एक रिलेटिव के घर जा पहुंचा और शाम तक वहीं रूका। अपने सारे रिश्तेदारों और दोस्तों की लिस्ट को खंगाल डाला जो इस शहर में रहते थे। और मन ही मन तय कर लिया कि जब भी बेचैनी होगी किसी ना किसी के घर पहुंच जाऊंगा। मैंने अपने बीमार दिल के लिए पूरी लिस्ट बना लीक कि खुद को कैसे और कहां-कहां बिजी रखना है। सारी प्लानिंग के साथ मैं घर वापस आया। रात का खाना खाया और सो गया। सुबह देर तक सोता रहा। मैं खुद को पहले की तरह बदल रहा था। देर तक सोना, दफ्तर जाने से एक घंटे पहले जागना आदि-आदि। मैं दफ्तर जाने की तैयारी कर ही रहा था कि दरवाजे की घंटी बजी।

मैंने दरवाजा खोला देखा एक अनजान आदमी खड़ा था। मैं कुछ सवाल पूछता उससे पहले ही मेरी नजर उस आदमी की उंगली थामे खड़ी मासूम बच्ची पर पड़ी। अरे! यह तो सामने के घर में रहने वाली बच्ची है। मैं कुछ बोलता इसके पहले ही वह अधेड़ सा दिखने वाला सांवला और मोटा आदमी बोला- हैलो! मैं आनंद… और ये मेरी बेटी मान्या…. मैं सामने के फ्लैट में रहता हूं। आप नए आए हो… मान्या बता रही थी अंकल बहुत अच्छे हैं पर आजकल दिखते नहीं हैं।
मैं मुस्काते हुए बोला- आजकल दफ्तर में काम ज्यादा है इसलिए बिजी हो गया हूं। कोई नहीं आप दफ्तर से शाम तक घर तो आ जाएंगे ना… आज मान्या का बर्थडे है…जरूर आइएगा हमें अच्छा लगेगा… ये कहते हुए आनंद ने आमंत्रण कार्ड मेरी ओर बढ़ा दिया। जी….! मैं बस इतना ही कह पाया। बहुत सारे उधेड़बुन के साथ तैयार होकर मैं दफ्तर पहुंचा। बाद में मैंने पार्टी में जाना तय किया और गिफ्ट लेकर सीधे घर पहुंचा। उसके घर जाने के ख्याल से जो चेहरा मैं भूल जाना चाहता था वो बार-बार मेरी आंखों के सामने आने लगा। इनविटिशन कार्ड डेरेमोन थीम पर आधारित था तो जाहिर था मुझे उसी हिसाब से तैयार होना था। मैं ब्लू शर्ट पहनकर तैयार हो गया। और खुद को भिनी-भिनी खुश्बू से सराबोर कर पार्टी के लिए निकला।
वहां ज्यादा लोग तो नहीं थे लेकिन डेकोरेशन देखते ही बनता था। तभी हॉल में डेरेमोन के सारे कैरेक्टर से घिरी मान्या व्हाइट फ्रील फ्रॉक और क्राउन पहने आती दिखाई दी। उसकी दाईं तरफ आनंद व्हाइट शर्ट, ब्लू ब्लेजर और पैंट में अच्छा दिख रहा था और बाईं ओर उसकी मम्मी ब्लू गाउन के साथ पर्ल सेट पहने आसमां की परी सी प्रतीत हो रही थी। दमकता चेहरा उस पर बिखरी लटें और बालों में खिलता उजला गुलाब के साथ पहना गया उसका पर्ल सेट बहुत जंच रहा था। उसका धीरे-धीरे कदमों से उसका फॉग के बीच से आना मैं सुध-बुध खोकर उसे अपलक देखता ही रह गया। मैं सबकुछ भूलकर उसकी ओर बढ़ने लगा। अभी दो कदम बढ़ा ही था कि मेरी तंद्रा टूटी… जब आनंद ने कहा- शुक्रिया पलक तुमने इतनी प्यारी गुड़िया दी मुझे… इस आवाज के साथ मान्या के जन्म की कुछ तस्वीरें वहां प्रजेक्टर पर चलने लगीं। फिर बारी-बारी से मान्या की तस्वीर आती रही, हंसती-खिलखिलाती शरारतें करती मान्या स्क्रीन पर किसी डॉल की तरह लग रही थी। केक कटिंग के बाद सभी पेयर डांस करने लगे,… पलक और आनंद एक-दूसरे की बांहों में झूम रहे थे और मैं सामने कुर्सी पर बैठा दोनों को देख रहा था। पलक कभी-कभी मेरी तरफ भी देख लेती। आनंद की बाहों में झूमती पलक मुझे अच्छी नहीं लग रही थी। तभी एक लड़की ने मुझे डांस करने के लिए पूछा। मैं चुपचाप उसका हाथ पकड़े डांस करने लगा। डांस पार्टनर बदलने के दौरान थोड़ी देर पलक के साथ डांस करने का मौका मिला मुझे। उसकी खुशबू मेरी सांसों के सारे तार झनझना गए। मैं उस खुशबू में मानो मदहोश सा खो गया। वो खुशबू….वो हाथों का स्पर्श अभी मैं पूरी तरह समझ पाता इसके पहले ही वो मेरी हाथों से छिटककर आगे बढ़ गई पर मैं वहीं रह गया। उसी खुशबू के भंवर में फंसा। उन्हीं कोमल हथेलियों की छुअन में खोया हुआ घर वापस आ गया।
सुबह फोन के रिंगटोन से मेरी नींद खुली। मेरे कलिग का फोन आया कि अभी तक मैं दफ्तर क्यों नहीं पहुंचा? मैंने कहा- मेरी तबीयत ठीक नहीं है इसलिए देर तक सोता रह गया और छुट्टी के लिए ई-मेल कर दिया। मैं खुद को संभालने की तमाम कोशिश कर रहा था। एक हफ्ता बीता ही था कि एक दिन..

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