December 23, 2025

जिम्मेदारियां

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जिम्मेदारियों ने धर दबोचा है कुछ इस तरह,
की हास्य पर भी आंसू निकल आते हैं।
चाहता हूं पेश आऊ मोहब्बत से, पर बात – बात में भड़ास उमड़ आती है।
अपनी जरूरत की तो उड़ी है धज्जियां…
शौक और सपने तो धूमिल नजर आते हैं।
बेबसी की फटी चादर लपेटे खड़ा हूं इस कदर,
कि सुई धागा भी कहीं नजर नहीं आता है।
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