सीता और मंदोदरी

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सोने के महल में रहने वाली मंदोदरी भी अपना पत्नी धर्म निभा रही थी और राम के साथ वन में दर-दर भटकने वाली सीता भी, पर सवाल यह है कि दोनों स्त्रियों में ज्यादा सुखी कौन थी?

आज भी इतिहास बदला नहीं है, मैं आज बुरी लगती हूं आपको, आपको मेरे सफेद बाल और चेहरे की झुर्रियां दिखती हैं। उस वक्त कहां थे आप… जब महीनों मेरे भौंहें बेतरतीब ढंग से बढ़े होते थे, मेरे आंखों के नीचे काले गड्ढे, हाथ में विवाइयां और बालों में शैंपू तक नहीं कर पाती थी मैं। क्योंकि ना तो मुझे अपने घर के काम से फुर्सत थी और ना ही आपको ऑफिस से। पर हां! मैं खुश थी.. बहुत खुश..क्योंकि मेरा रोहित मेरी आंखों के आंसू अपनी आंखों में ले लेता था। मेरे सामने चट्टान की तरह हमेशा अडिग था कि दर्द और दुख की हवा ना छू पाए मुझे।
हम अमीर नहीं थे, बहुत पैसे नहीं थे मेरे पास पर प्यार तो था, मेरा रोहित तो था, नहीं जानती थी जो सपने तुम्हारे साथ देख रही हूं उसकी कीमत तुम्हें खो कर चुकानी पड़ेगी।
खुश थी मैं बहुत खुश हमारी जरूरत पूरी हो जाती थी और बाकी के वक्त अपनी समस्या और परेशानी शेयर करने में पर तेरा वक्त मेरे नाम तो था। हमारी छोटी-छोटी परेशानियां हमें एक दूसरे से पास तो लाती थीं। पर आज ऐसा लगता है मैं तुम्हें जानती ही नहीं, पहचानती ही नहीं, कौन हो तुम.. मेरे पति नहीं.. कोई और हो तुम। डर लगता है तुमसे, तुम्हारी इच्छा से। जाने कब क्या कह डालो और मैं पूरा ना कर पाऊं। बहुत कोशिश की तुम्हारी इच्छाएं पूरी करूं, पर तुम्हारी इच्छाओं ने पल-पल मारा मुझे, हर पल मरी मैं… वह औरत मरती गई जो मेरे अंदर थी.. मैं अब मैं नहीं रही, बस तुम्हारी इच्छा पूरी करने वाली मशीन हो गई हूं। तुम्हारा स्टेटस बहुत ऊंचा है और मैं साधारण सी स्त्री…

एक वक्त था जब मैं आपको हर रूप में सुंदर लगती थी मेरे रूप की तारीफ करते आप अघाते नहीं थे… मेरी गोद में सिर रखकर आपकी सारी थकान मिट जाती थी। पर आज मेरी गोद की जगह शराब की बोतल ने ले ली। अब मेरी गोद का सुकून आपको बाजारों में मिल जाता है, मेरा शर्माना अब आपको गंवारपन लगता है.. कितने बदल गए हो आप, बेबाक नहीं हूं मैं और चाहकर भी नहीं हो सकती। कितनी भी कोशिश कर लूं.. क्लास ज्वाइन कर लूं पर मैं सबके सामने आपकी बाहों में नाच नहीं सकती… हां गवार हूं मैं क्योंकि यह शादी के 24 साल आपने ऐसे ही गुजारे हैं मेरे साथ.. मैं समझती थी.. जानती थी.. आपको मेरी बाहों में झूमना पसंद था पर अकेले कमरे में… पर आज लगता है कि मैं कभी आपको समझ ही नहीं पाई। ऊंची-नीची राहों पर आपसे कदम मिलाकर चली मैं। ऑफिस की हर परेशानी को आपने मुझसे साझा किया मेरी राय मांगी और अपने घर की हर परेशानी आपसे छुपाती रही। आप खुद ही परेशान हो क्योंकि हमारे बच्चों के उज्ज्वल भविष्य, हमारी छोटी-छोटी ख्वाहिशों को पूरा कर पाने के लिए सपने सिर्फ आपकी आंखों ने नहीं देखे थे मैं भी आपके साथ थी।

आपको पता है… लोग हंसते हैं मुझपर.. इस उम्र में जब मैं
अपने होठों पर लालिमा लगाती हूं… इंडियन कपड़े छोड़कर वेस्टर्न की राह पकड़ती हूं पर मैं किसी की परवाह नहीं करती।
हर चुभती नजर को नजरअंदाज करती हूं जानते हो क्यों… बस तुम्हारी नजर में प्यार देखने के लिए। क्योंकि मेरी पूरी दुनिया तो तुम ही हो.. मेरे बच्चे और तुम ही तो है मेरा संसार… बाकी दुनिया मुझ पर फब्तियां कसे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता… पर आज तुम्हें किसी पराई औरत की बाहों में देख टूट गई हूं मैं।

पर आज… हे भगवान! हे राम! काश! की राम सिर्फ आप पति होते.. राजा नहीं, अपनी पत्नी की फिक्र होती है समाज की नहीं। पर हे पुरुषोत्तम मैं सीता नहीं, तुम संभालो अपनी गद्दी राज-पाठ… पर मैं अपना लव-कुश तुम्हें नहीं दूंगी, तुम खुश रहो अपने समाज में, अपनी दौलत के मझधार में, पर लव-कुश मेरा है… और ना ही मैं मंदोदरी की तरह परस्त्री के लिए तुम्हारी नजर में प्यार, शादी के लिए प्रस्ताव, यह सब नहीं कर पाऊंगी इसलिए जा रही हूं अपने लव-कुश के साथ, तुम्हें मुबारक हो तुम्हारी दुनिया।।

 

 

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