HIV

जेठ की चिलचिलाती धूप और छायाविहीन पेड़ के नीचे बैठा वह शख्स। मानो दोनों के व्यक्तित्व का लेखनकर्ता एक ही हो। पेड़, पत्तियों के साथ होते हुए भी पीला पड़ चुका है और उसके नीचे बैठा आदमी भी शरीर में दौड़ते खून और सांसों के होते हुए भी जीवन से हार चुका है।

बढ़ी हुई दाढ़ी यत्र-तत्र बिखरे बाल जगह-जगह से शरीर दिखाता उसका वस्त्र, मैं खुद प्यास से व्याकुल तेज स्कूटी चलाती हुई ठिठक गई। उसने भी अपनी दृष्टि उठाकर मेरी तरफ निरीह भाव से देखा। उसके आंखों की मासूमियत ने मेरे कदमों में सम्मोहन की जंजीर डाल दी। मैं खुद-ब-खुद उस तक जा पहुंची और मैं चौंक गई, अरे! अंकल आप? इस हालत में… मेरे बढ़े हाथों को अपने शरीर तक पहुंचने से पहले ही वह पूरी ताकत से चिल्ला उठे… नहीं… मत छुओ मुझे… वरना तुम्हारी हालत भी मेरी जैसी ही हो जाएगी.. पर क्यों अंकल? मैं पूछ बैठी.. मुझे एड्स है बेटा और वह सुबक पड़े.. मैंने उनके कंधों को छूकर कहा आप भी अंकल इतने पढ़े लिखे होकर इन बातों पर विश्वास करते हो? वो आक्रमक हो गए.. क्यों छुआ तूने मुझे? क्यों? जाओ यहां से… कौन हो तुम? क्यों आई हो? जाओ… मैं घबरा कर खड़ी हो गई और मेरी आंखों के आगे बिहार के भागलपुर शहर के खंजरपुर मोहल्ले का सबसे शानदार घर मेरी आंखों के आगे घूम गया।

क्या ठाठ थे उस घर के…चौकीदार, नौकर-चाकर वह घर सबके लिए आकर्षण का केंद्र था। उसके मालिक की यह दुर्दशा… पर वह तो बहुत शरीफ नेक और इज्जतदार थे। सबों की भलाई करते थे इनका परिवार इनको बहुत प्यार करता था और लोग इनके परिवार की मिसाल दिया करते थे। एक प्रोफेसर भला यह कहे छूने मात्र से एड्स हो जाएगा कितनी हास्यास्पद बात है ये… मेरी तंत्रा तब टूटी जब वह धीरे से बोले तुम धूप में क्यों खड़ी हो? जाओ वरना बीमार पड़ जाओगी। मेरी सोच को सार्थकता मिल गई इस हालत में भी मुझसे ऐसा स्नेह और मेरी फिक्र है इन्हें। मेरी इंसानियत इन्हें यहां कैसे छोड़ सकती है भला… मैंने कैब बुक किया और उन्हें समझाया आप फिक्र मत करो हम आपको खुद पर बोझ नहीं बनने देंगे।

आप मेरे साथ चलो तो सही… वह थोड़े से ना-नुकूर के बाद मान गए। हमने उन्हें वृद्धा आश्रम में डाल दिया.. एक अच्छे डॉक्टर से उनका इलाज शुरू करवा दिया हर रविवार मैं भी उनसे मिलने जाती रही, जब भी उनसे मिलने जाती वह हमारा एहसान जताना ना भूलते, ज्यादा वक्त वह खामोश ही रहते पर मेरे चंचल और बातूनी स्वभाव ने उन्हें मुझसे खुलकर बात करने को मजबूर कर दिया।

उन्होंने मुझे जो भी बताया वह बहुत ही आश्चर्यजनक था एक हादसे में उनके शरीर का बहुत सारा खून बह निकला वह शहर के सबसे बड़े हॉस्पिटल में भर्ती हुए पर बदकिस्मती से अस्पताल में खून ना होने के कारण कुछ लोगों से ब्लड ग्रुप मैच करके उनको खून चढ़ाया गया जिसमें से कोई एचआईवी पॉजिटिव था। आनन-फानन में दी गई जिंदगी हर पल मौत का मंजर लेकर आई उनके लिए। आगे जांच के दौरान यह बात सबके सामने आ गई की अंकल एचआईवी पॉजिटिव हैं।

इस रिपोर्ट ने मानो उनकी जिंदगी के मायने ही बदल डाले। प्राण से प्यारी पत्नी उन पर शक करने लगी। 40 बसंत साथ रहने के बाद भी यह अविश्वास उनके लिए असहनीय था और उनके बच्चे उनके साथ उपेक्षित व्यवहार करते जीवन अजीब सी मजाक बन गई थी। उन्हें उस गलती की सजा मिल रही थी जो उन्होंने की ही नहीं थी। उस घर में दम घुटता था उनका।

उनको छूने मात्र से बहू बेटे बार-बार हाथ धोते जो नौकर उनकी जी हजूरी करते नहीं थकते थे वह भी बड़ी बेचारगी से भयभीत होकर उनके कमरे में आते और डॉक्टर से बार-बार प्रश्न करते मुझे एड्स तो नहीं होगा डॉक्टर साहब?

बाकी नौकर भी उनके साथ अछूत सा व्यवहार करते। जब उनके खून के रिश्ते ही अपने ना हो सके तो वह तो मजबूर नौकर थे। जब जन्म-जन्म तक साथ निभाने वाली पत्नी ही उनके शरीर से घृणा करने लगी तो उस घर में उनका रहना दूभर हो गया इसलिए उन्होंने घर छोड़ दिया ऐसा प्रतीत होता था जैसे उस घर की ईंट भी उन्हें घूरती हो, उन पर शक करती हो, इस असहनीय पीड़ा से मुक्त होने के लिए उन्होंने वह घर ही छोड़ दिया।

अभी हम उन्हें ठीक से समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि एक दिन अचानक मेरे भैया का फोन आया। उन्होंने मुंबई में एक लड़की पसंद कर ली है और शादी परिवार वालों की मर्जी से यहीं बोधगया में होगी क्योंकि ऐतिहासिक गया अपने धार्मिक वजह से लोगों के आकर्षण का केंद्र है। लोग यहां आना चाहते हैं। मैं यह सब सुनकर खुश थी मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं। मैंने शादी के लिए गया के सबसे बढ़िया रिजॉर्ट बुक किया यहां की खास और प्रसिद्ध मिठाई और बनारसी पान की व्यवस्था की। अच्छी बात तो यह रही कि मायानगरी मुंबई के लोगों को सब बहुत पसंद आया सब बहुत खुश हुए। सब बार-बार तारीफ कर रहे थे और मैं फूली नहीं समा रही थी खैर यह सब करते-करते कब 3 महीना बीत गया मुझे पता ही नहीं चला।

 

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शादी खत्म होते ही जब मैं अपने रूटीन लाइफ में लौटी तो मुझे अंकल का ख्याल आया। अब मैं संडे का इंतजार नहीं कर सकती थी इसलिए एक दिन ऑफिस से समय निकालकर मैं अंकल को सरप्राइज देने वृद्धाश्रम पहुंची पर वहां बहुत बड़ा सरप्राइज मेरा इंतजार कर रहा था। अंकल तो पहचान में ही नहीं आ रहे थे खिलता-मुस्कराता चेहरा, ठहाके लगाते वहां के बाकी सदस्य और उन सबकी अगुवाई करते मेरे अंकल… वहां का माहौल ऐसा था मानो कोई पार्टी ऑर्गेनाइज की जा रही हो मैंने अंकल को नमस्ते कहा अभी सवाल करने ही वाली थी कि एक आंटी मेरे सिर पर हाथ फेरने लगी और आशीर्वाद की झड़ी लगा दी। यह देवता कहां से लाई हो बेटा तुम इन्होंने हम बूढ़ों की जिंदगी बदल दी। मुझे वहां के सदस्यों ने घेर लिया और सब बारी-बारी से अंकल के बारे में बताने लगे।

जब सब चले गए तो अंकल ने मुझे पर्चा थमाया। मैंने गौर से पर्चा देखा तो पाया कि यो तो एड्स के प्रति जागरूकता अभियान चलाने की पूरी तैयारी थी ताकि घर-घर लोग एड्स के बारे में जान और समझ पाएं।उनके पास पूरा प्लान था एक के बाद एक… हम लोगों को जागरूक करेंगे कि ये छूआछूत का रोग नहीं है। इसका इलाज बेहतर कहां हो सकता है, कैसे फैलता है, इसको कैसे रोका जा सकता है… वो ये सब बहुत उत्साह से कह रहे थे। बितते वक्त के साथ अंकल की मेहनत भी रंग ला रही थी तो दूसरी तरफ वो दिनों-दिन कमजोर होते जा रहे थे। उनकी पीड़ा बढ़ती जा रही थी। उनके चेहरे पर बेचैनी फिर से बढ़ने लगी थी। एक दिन मुझे फोन डायरी में मुझे उनके घर का नंबर मिल गया। मैंने फोन किया और इत्तेफाक से फोन उनकी पत्नी ने ही उठाया। मैंने कहा- मुझे प्रोफेसर साहेब से बात करनी है…मैं उनकी शिष्या बोल रही हूं। उधर से आवाज आई- वो अब यहां नहीं हैं। एक दिन किसी अखबार में उनका फोटो आया था अब शायद वो गया में हैं। मैं बोल पड़ी- हां वो मेरे साथ ही हैं। उधर से चौंकती आवाज के साथ सिसकियां भी आने लगी। उनकी पत्नी प्रायश्चित करना चाहती थीं, उनसे एक बार मिलना चाहती थीं। मैंने उनको पता नोट करवाया। वो सपरिवार उनसे मिलने आईं। वो घड़ी ऐसी थी मानों अंकल की सांसें इसी पल के लिए अटकीं थीं। उनके चेहरे पर संतोष का भाव था। उन्होंने अपनी आखिरी सांस अपनी पत्नी की गोद में ली और अपनी आंखें बंद कर लीं सदा-सदा के लिए।

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