सरस्वती पूजा
बुद्धि, ज्ञान और विद्या की देवी मां सरस्वती श्वेत वस्त्रों को धारण किए श्वेत हंस पर सवार अत्यधिक ही मनमोहक और आकर्षक लगती हैं। आज हम जानेंगे कि मां सरस्वती की पूजा-अर्चना कैसे की जाती है?
सरस्वती पूजा हर साल बसंती पंचमी के दिन धूम-धाम से मनाई जाती है। यह त्योहार बसंत ऋतु की शुरुआत को दर्शाता है। बसंत का अर्थ है मौसम और पंचमी का मतलब है पांचवां दिन।
कला-ज्ञान और सद्भाव की देवी मां सरस्वती
मां सरस्वती कला और सद्भाव का प्रतीक हैं। उनके हाथ में जो वीणा है वो बताती है कि वीणा के सुर जिस तरह सुसंवादित हैं उसी तरह हमारे कार्य भी अगर सुसंवादित हों तो हमारे जीवन में भी संगीत होगा। मां सरस्वती के धवल वस्त्र हमें बताते हैं कि मन, वाणी और कर्म से हमें शुद्ध होना चाहिए। मां सरस्वती श्वेत कमल पर विराजमान होती हैं अर्थात् हमें विशुद्ध चरित्र का होने को प्रेरित करती हैं। जिस तरह कमल कीचड़ में रहकर भी मलीन नहीं होता उसी तरह हमें समाज में फैले भ्रष्टाचार से मुक्त रहना है।
मां सरस्वती के साथ मोर क्यों?
चित्रों में ज्यादातर मां सरस्वती को नदी किनारे बैठा हुआ दिखाया जाता है। जिससे ये समझाया गया है कि उनका अस्तित्व नदी से जुड़ा हुआ है। मोर सुंदरता का प्रतीक माना जाता है। मोर के माध्यम से ये बताने की कोशिश है कि हमें बाहरी सुंदरता से ज्यादा भीतरी सुंदरता को निखारने की जरुरत होनी चाहिए।
मां सरस्वती का मंत्र?
मूल मंत्र
ओम ऐं ह्रीं क्लीं महासरस्वती देव्यै नमः
सूक्त मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु विद्यारुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
क्या करें क्या ना करें?
पीले या सफेद वस्त्र धारण कर पूजन करें।
माता सरस्वती को पीले या सफेद फूल चढ़ाएं।
संभव हो तो चमेली का फूल मां सरस्वती को जरूर चढ़ाएं।
छात्रों को इस दिन किताबों की पूजा करनी चाहिए।
अगर आप किसी कला से संबंध रखते हों तो उससे संबंधित विद्या की पूजा करें।