ताज और मेरा चांद

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अंधेरे में खड़ी एक आकृति बहुत देर से मुझे अपनी तरफ आकर्षित कर रही थी। कुछ ही दूरी पर येलो सूट और मैरून दुपट्टे में एक युवती खड़ी थी। पैरों में गोल्डन मोजरी, हाथों में गोल्डन कड़े और कलाई पर बंधी गोल्डन घड़ी, जो चांदनी रात में चमक-चमक कर मानो यह बता रहा हो कि मैं मैरून दुपट्टे के बॉर्डर से मैचिंग हूं।

मैं धीरे-धीरे उसके पास चलता गया करीने से ड्रेसअप,सधे हाथों से किया हल्का मेकअप, और इन सबके बीच अनसुलझे उसके बाल, बहुत ही अजीब लग रहे थे। अब मैं उसके बहुत पास आ गया था। वह चुपचाप कोने में खड़ी लगातार अपने फोन देख रही थी। जब मैंने उसको पास से देखा तो पाया कि उसके यह अनसुलझे बाल तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं।

बार-बार उसके बाल हवा के साथ अठखेलियां कर रहे थे अब  वह फोन देखते हुए मेरी तरफ एकदम से मुड़ी तो अनायास ही मेरे मुंह से निकल पड़ा अरे तू! वह हड़बड़ाते हुए फोन छोड़कर मेरी तरफ अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से देखने लगी। माथे पर थोड़ा बल देकर बोली एक्सक्यूज मी… अरे! पहचाना नहीं मैं सौरव… मैं बोल पड़ा।

नाम सुनकर वह और हड़बड़ा गई और धीरे से उसने हां में अपनी गर्दन हिलाई। बिना देरी किए मैंने अगला सवाल पूछ लिया कैसी हो? उसने धीरे से कहा ठीक हूं, और तुम? मैं भी बढ़िया हूं। फिर अगला सवाल उसने पूछा, यहां कैसे? मैंने अपनी आंखें उस पर गड़ा दी और बताने लगा- ऑफिस के काम से आया था। सोचा चांदनी रात में ताजमहल का दीदार कर लूं।

उसके चेहरे का रंग पल-पल बदल रहा था और नजरें मानो पल में सारी दुनिया देख लेना चाहती हो। मैं बावला चाह रहा था की वह मेरी नजरों में नजर डालकर मेरा जवाब सुने पर वह मुझे देखने की बजाए लगातार इधर-उधर देख रही थी। मैंने पाया कि उम्र के इस पड़ाव में भी वह बेहद खूबसूरत दिख रही थी।

पर हां जिस चेहरे पर हमेशा शरारत अल्हड़ता और अदाओं का जलवा था वहां आज परिपक्कता और गंभीरता ने डेरा डाल लिया है। पहले जो हाथ बात बात में हवा में उठ जाया करते थे उसे स्वरूपा ने कसकर बांध रखा है। दोनों हाथ कभी आगे की तरफ बंध जाते तो कभी पीछे की तरफ, थोड़ी देर बाद मैंने पूछा और तुम यहां? वह भी अकेले… मेरे सवाल ने उसके चेहरे का रंग बदल दिया और वह बोली बस ऐसे ही थोड़ा बोर हो रही थी तो सोचा आगरा घूम आऊं।

कहां हैं तुम्हारे पति और बच्चे.. मिलाओ उनसे। वह दीवार की तरफ मुंह करके खड़ी हो गई और कहा- अकेली आई हूं। मेरे मुंह से निकल पड़ा झगड़ा हुआ है तुम्हारा वह बिना मुड़े ही बोली नहीं बस ऐसे ही थोड़ा हॉट टॉक हो गया था।

ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ बार-बार उसके बाल उसके गाल पर आ रहे थे वह परेशान हो बार-बार उसे झटक रही थी। जी चाह रहा था उसके उस अनसुलझे वालों को एक बार अपने हाथों से सुलझा दूं। मेरा आवारा मन, और भी बहुत कुछ चाह रहा था कि कह दूं मेरी आंखों में आंखें डाल कर बात करो। आओ तुम्हारे बाल सुलझा दूं। पर मेरी परिपक्वता सख्ती से मेरे मन को रोके जा रही थी।
मैंने हाथ बढ़ाकर कंधे पर थपकी देना चाहा पर वह धीरे से सरकती हुई मेरी तरफ मुड़ गई। मैंने कहा चलो, चलते हैं.. वहां बैठकर बातें करेंगे.. वह मेरे पीछे-पीछे चल पड़ी। बार-बार मेरे अंतर्मन में दबा मेरा प्यार मुझे धिक्कार रहा था, आज पूछ डालूं अपनी दबी हुई चिंगारी.. मैंने चलते-चलते ही पूछ लिया तुम्हें पता है मैं यहां क्यों आया हूं? पहली बार वह थोड़ा मुस्कुराई और कहा- नहीं, तुम बताओ तो पता चले। चलो पहले बैठें उस बेंच पर फिर बताता हूं और मैं नहीं निढाल सा उसके सामने बैठ गया ताकि उसके चेहरे का हर भाव पढ़ सकूं। फिर मैंने कहना शुरू किया, मेरी एक दोस्त थी कॉलेज के दिनों में, उसे चांदनी रात में ताजमहल देखने का बड़ा मन था सो जब ऑफिस के काम से आगरा आना हुआ और चांदनी रात भी थी तो सोचा उसके साथ ना सही अकेले ही ताज देख आऊँ।
और देखो तुम यहीं मिल गई।  मैं थोड़ा कुटिलता से मुस्कुराता हुआ बोला। मैं जैसा सोच रहा था ठीक उसके विपरीत वह मुझे लगातार घूर रही थी। यह वही आंखें थी जिसे मैं चाह रहा था कि थोड़ी देर के लिए मेरी नजरों से मिले और मैं उसमें डूब जाऊं पर अब वही आंखें मुझे डरा रही थीं।  उसने लगातार घूरते हुए पूछा तुम्हारी वाइफ कैसी है? और तुम्हारे बच्चे, सब ठीक हैं? पर मैं जैसा चाहता था वैसी नहीं है।

मतलब? अरे यार समझो ना, क्या? कहो तो।

तुम बिल्कुल नहीं बदले आज भी वैसे ही डरपोक हो, वह थोड़ा मुस्कुराते हुए बोली उसकी मुस्कान ऐसी थी, मानो मैं फिर से कॉलेज के दिनों का उसका दीवाना हो गया हूं।

अंतर्मन चीख-चीख कर कह रहा था तुम्हारी एक झलक पाने के लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया? कितना चाहा तुझे.. कितना इंतजार किया.. सब बता दूं.. आखिर तुम्हें पता होना चाहिए और एक तुम थी,  ना मेरी चाहत ठुकराई ना कुछ बताया..

और चुपचाप किसी और से शादी कर ली, मेरा इंतजार नहीं किया। दो साल रुक जाती बस दो साल…. तुम्हारी शादी के दो साल बाद ही तो मेरी जॉब लग गई थी।

पता है तुम्हारी शादी के बाद मैंने वह शहर हमेशा के लिए छोड़ दिया, काटता था वह शहर मुझे, जहां गूंजती थी तेरी हंसी। वह सुना हो गया था। डरपोक शब्द ने मानो मेरे हौसले के सारे तार झनझना दिए। पांच  साल तो सिर्फ तुम्हारी हां का इंतजार किया, फिर पता चला कि तू भी पसंद करती हो मुझे। पर खुद कभी स्पष्ट कुछ कहा नहीं तुमने और मैं डरपोक…
जब मैं अपनी सोच से बाहर आया तो बोला मेरी पत्नी वैसी नहीं है जैसा मैं चाहता था। तुम तो जानती हो ना मुझे कैसी लड़की पसंद थी।उसके अगले शब्द ने मानों मुझे नींद से जगा दिया।

वह पूछ बैठी- मैं? कैसे जानूंगी तुम्हारे बारे में, हमारी तो बात भी पहली बार हो रही है ना, कॉलेज के दिनों में तो हमारी कभी कोई बात ही नहीं हुई। उफ्फ! यह क्या कह रही हो तुम.. जिससे बातें करते-करते मैं थकता नहीं था, जिसकी बातों में खोया मैं दिन और रात भूल जाता था खैर! मैं हकीकत की जमीन पर आ गया और पूछा छोड़ो! यह बताओ तुम अपने पति के साथ खुश तो हो ना?

उसके होठों पर बहुत बड़ी सी हंसी खिल गई और आंखों में मानो प्यार का समंदर तैर गया, उसने बोलना शुरू किया- मेरा पति तो मानो मेरे ख्वाबों के राजकुमार से भी अच्छा है इस जन्म का तो नहीं पता पर पिछले जन्म मैंने कोई पुण्य का काम किया होगा जो वो मेरा पति है,  और मेरे बच्चे.. पूछो मत- जान छिड़कते हैं मुझ पर, वह सिर्फ अच्छे पति ही नहीं बहुत अच्छे इंसान भी हैं।

कॉलेज के दिनों में मेरे व्यक्तित्व की कितनी तारीफ होती थी और मैं खुद उनके व्यक्तित्व के बारे में सोचती हूं तो मेरा व्यक्तित्व बौना  लगता है।

मुझे गुस्सा तो बहुत आ रहा था खुद पर, यह क्या बेहूदा सवाल पूछ लिया मैंने, यह तो पति-पुराण गाने लगी। काश! कि मैं बहरा हो जाऊं। मैं आज भी अपनी पत्नी में इसके अक्श ढूंढता हूं। अपनी किस्मत को कोसता हूं, यह क्यों नहीं मिली? भगवान से विनती करता हूं। मैंने अपनी पत्नी की बुराई कर दी इसके सामने, इसको जाहिर किया कि मैं खुश नहीं हूं, पर यह तो यह जाहिर कर रही है कि इसे मुझे खोने का कोई अफसोस नहीं… फिर बहुत हिम्मत करके मैंने उससे पूछा- कॉलेज के दिनों से एक सवाल था मेरे मन में- फिर तुम मिलो ना मिलो तो- क्या मैं पूछ सकता हूं?

वह थोड़ी देर तक चुप हो गई..फिर बोली हां पूछो। मैंने कहा- क्या तुम मुझे पसंद करती थी? वह चुप थी और मैं भी चुप था। थोड़ी देर तक वहां सन्नाटा पसरा रहा। फिर उसने बोलना शुरू किया- हां! मैं पसंद करती थी तुम्हें उन दिनों में और यह भी जानती थी तुम मुझे पसंद करते हो पर तुम कभी सामने नहीं आए , कभी खुद आगे बढ़कर यह हिम्मत नहीं दिखाई जो आज दिखा रहे हो और मैं यह भी जानती हूं तुम्हें भी पता था मेरी चाहत का जिस लड़के की जुबान मेरे सामने नहीं खुली वह दुनिया समाज और मां-बाप से कैसे कहता मेरे बारे में।

प्यार के दुश्मन जमाने से कैसे लड़ता? मेरे लिए… मैं जानती थी तुम यह सब नहीं कर सकते हो, डरपोक हो, तुम्हें फिक्र  है अपने मां-बाप की और मुझे भी फिक्र थी अपने मां-बाप की, फिर उस रास्ते पर चलने का क्या मतलब जहां हमारे कदम हमारा साथ ही ना दें। जहां हमारे पैर में मां-बाप के प्रति जिम्मेदारियों का बंधन हो जिसकी कोई मंजिल ही नहीं हो उस रास्ते के कांटों को बेवजह अपने पैरों में क्यों चुभोती मैं?

यह कहते हुए उसकी आंखों से आंसू की कुछ बूंदें टपक पड़ीं। एक गहरी सांस छोड़ते हुए फिर उसने कहना शुरू किया- पर मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा सच यह है कि मैं अपने पति के साथ खुश हूं, बहुत खुश। गलती से भी मुझे तेरी याद नहीं आती है और हां तुम्हें बुरा लगेगा पर यह सच है कि हर बात में वो तुम से बेहतर है।

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