कविता पीर कही ना जाए Priti Prakash February 22, 2023 0 आंखों के समंदर में जो है, दर्द सी मछलियां… मची है खलबली कि अब है आतुर बाहर आने को….. कांटों सा फंसा है हलक में बेचैनी, चाहता है मन जोर-जोर से चिल्लाने को…. सिसकियां निकलती है होठों से मगर, मध्यम है…. यह दर्द कहां रुकता है लाख चाहे रोके जाने को….. Tags: anxious, comfortless, confused, pain, sobbing, tear, wistful Post Navigation Previous हौसलाNext सपने में बुलाते हो मुझे…! More Stories कविता तीन दशक Priti Prakash October 1, 2024 0 कविता बूंद Priti Prakash October 1, 2024 0 कविता एक सच Priti Prakash September 30, 2024 0 Leave a Reply Cancel replyYour email address will not be published. Required fields are marked *Comment * Name * Email * Website Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment.