मुझे कुछ कहना है

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कुछ कहना चाहती हूं तुमसे कुछ नहीं, बहुत कुछ….

पर एक तुम हो, जो सुनना ही नहीं चाहते.., तुम्हारे पास बहुत बहाने हैं… अपनी जिम्मेदारियों के! पर मेरे पास तो बस तुम हो…

तुम्हारी यादें हैं, तुम्हारी प्यास है, तुम्हारे आने की आस है… मैं तो चाहती हूं बस देखती रहूं तुम्हें… सुबह से शाम तक… बताती रहूं जो पल गुजारे हैं बचपन से अब तक… और तुम मेरी शरारत की कहानियों पर ठठाकर हंसो… मेरी बेवकूफी भरी बातें सुनकर, मुझसे चुहल करो…

मेरे श्रृंगार रस के क्रश पर, टिप्पणियां करो… तुम्हारी आंखों में देखना चाहती हूं

अपना जिया हुआ हर दिन….

और चाहती हूं कि तुम भी मुझे हर दिन

बढ़ता हुआ देखो अपनी कल्पना शक्ति से… इसलिए तो कह देना चाहती हूं

हर एक कहानी… पहला दोस्त…पहला प्यार… पहला खिलौना.. पहला श्रृंगार…

पहली बरसात, अपना यौवन, मेरे आशिक और उसके प्रपोजल…

चाहती हूं अपनी यादों का पिटारा ठूंस दूं तेरे जेहन में… फिर देखूँ तुम्हारे चेहरे के पल-पल बदलते रंग…

कभी तुम्हारे सवालों की झड़ी. कभी मेरे आशिकों के प्रति तुम्हारा गुस्सा.. पर तुम्हें है मेरी बेचैनी का भान नहीं… है मेरे अरमानों का ज्ञान नहीं…

चलो, चलो ना… कहीं दूर चलते हैं किसी जंगल में… वहां एक झोपड़ा बनाएंगे… मिट्टी से आंगन लिपते हुए संग-संग गुनगुनाएंगे… उन्हें बस फूल पत्ती से सजाएंगे.. और शहर से कुछ कृत्रिम घोसला भी मंगवाएगे… मिट्टी से बना एक पलंग

बोतल में भरकर जुगनू अपने घर का अंधेरा मिटायेंगे… सुबह घड़ी के अलार्म से नहीं, चिड़ियों के कलरव से जग जाएंगे… और अपने आंगन में तरह-तरह के कंद-मूल उगाएंगे… जिसे खाकर अपने पेट की भूख मिटायेंगे… क्या चाहिए जिंदगी के लिए

सिर्फ- तुम्हारा साथ… संग तुम्हारे

सारी आधुनिकता भूल जाएंगे…

आओ… चलो ना! आओ….

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