नारी तेरी यही कहानी…

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पूरा घर सो जाता है जब मैं बिस्तर पर जाती हूं

सुबह सपनों में डूबा सारा घर और किचन में घुस जाती हूं

कुछ खाना चाहूं.. चटोर हूं पर सबके दिल में पेट के रास्ते ही जाती हूं..

लड़ जाती हूं पूरी दुनिया से पर खुद के लिए ही नहीं लड़ पाती हूं..

उमड़ती-घुमड़ती भावनाएं मेरी किसी से नहीं कह पाती हूं..

उलझी इस कदर परिवार में मैं कि खुद को नहीं सुलझा पाती हूं

 

ख्वाब देखता है वो किसी और के क्योंकि मैं दो बच्चों की मां कहलाती हूं…

रोता है किसी और की बाहों में क्योंकि मैं छोटी बातों पर       विक्षिप्त हो जाती हूं..

सहती रहूं चुप्पी के साथ क्योंकि मैं उम्मीद उससे बहुत ज्यादा कर जाती हूं…

प्रीति पूनम

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