वो निकलता है हर सुबह
सज धज कर…
पर वापस निढाल आता है।
सोचकर जाता है कि लेकर आएगा
परिवार के सवालों का हल,
पर वह तो बेहुदे सवालों के साथ आता है…
मानो घिस आया हो अपना पूरा वजूद
इस कदर बदहाल आता है…
जाने किस मिट्टी से बना है वो
कि उसके अंदर नहीं कोई उबाल आता है...
nice poem if you want i could publish it in magzine