चांद पा लेने की चाह
ना मैं पाषाण
ना ही पत्थर की मूर्ति हूं
मेरे अंदर की भावनाएं भी
उछाल मारती हैं पर…
चांद पा लेने की पीपासा व्यर्थ है,
उसकी शीतलता और स्नेह को
सिर्फ दूर से महसूस कर सकते हैं हम…..
हवा जिंदगी है हमारी
उसे छू लेने की चाहत व्यर्थ है,
उसको सिर्फ एहसास कर सकते हैं हम….
किसी खूबसूरत पत्थर को
आंखों में बसा सकते हैं
पर गले का हार बनाकर,
नहीं जी सकते हैं हम..
मृगतृष्णा में फंस कर भटकना व्यर्थ है,
सिर्फ उसे मन की आंखों में
पा सकते हैं हम…
जहां कोई मंजिल नहीं
उस रास्ते पर भटक कर,
बोलो क्या पा सकते हैं हम…